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मई 26, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"सपनों की दौड़ में गुम होता जीवन: राणा समाज पर आधारित मोंटू सिंह राणा की कहानी"

"सपनों की दौड़ में गुम होता जीवन: राणा समाज पर आधारित मोंटू सिंह राणा की कहानी" :नवीन सिंह राणा की कलम से       उत्तराखंड के तराई भावर में बसे राणा समाज के गांव में मोंटू सिंह राणा का जन्म हुआ था। मोंटू की उम्र केवल 19-20 वर्ष की थी, जब उसकी ज़िन्दगी ने एक ऐसी करवट ली जिसने न केवल उसकी बल्कि उसके पूरे परिवार की खुशियों को तहस-नहस कर दिया। मोंटू एक सीधा-साधा और मेहनती लड़का था, लेकिन युवा होने के कारण उसके मन में बड़े सपने देखे जाने की लालसा थी।        मोंटू के गांव में एक दिन एक अजनबी आया, जिसने गांव के कई युवाओं को बड़े-बड़े सपने दिखाए। उसने मोंटू को बताया कि एक ऐसी कंपनी है जिसमें काम करके वह करोड़ों कमा सकता है। मोंटू के मन में लालच और उम्मीद की लौ जल उठी। उसने अपने माता-पिता की सलाह की अनदेखी करते हुए उस अजनबी की बातों में आकर उस कंपनी में काम करने का निर्णय लिया। मोंटू को उस समय यह अहसास नहीं था कि वह अपने और अपने परिवार के लिए कितनी बड़ी मुसीबत को गले लगाने जा रहा है।        कंपनी के झांसे में आकर मोंटू ने अपनी पढ़ाई छोड़...

*"समर्पण और संघर्ष: एक पिता का अटूट प्रेम"**

**"समर्पण और संघर्ष: एक पिता का अटूट प्रेम"** :नवीन सिंह राणा की 🖋️ से  यह कहानी है एक ऐसी बच्ची और उसके माता-पिता की, जिनका जीवन संघर्ष एक मिसाल है। यह कहानी हृदय को द्रवित कर देती है और हमें सिखाती है कि सच्चा संघर्ष और समर्पण क्या होता है। साल 2009 की बात है। नंद राज राणा दिल्ली में अपने संघर्ष की कहानी बुन रहा था। उसी अक्टूबर में, उनके गांव में उनकी बेटी का जन्म हुआ। बेटी से मिलने की चाहत ने नंद राज को गांव की ओर खींच लिया। बेटी ठीक थी, स्वस्थ थी, और वैसे ही हंस रही थी जैसे बच्चे करते हैं। नंद राज की खुशी का ठिकाना नहीं था।    कुछ दिनों बाद, नंद राज दोबारा दिल्ली वापस चला गया, लेकिन जैसे ही वह दिल्ली पहुंचा, उसे सूचना मिली कि उसकी गुड़िया की तबियत ठीक नहीं है। पीलीभीत के अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया, और आईसीयू में 10-12 दिन बाद जब उसकी स्थिति थोड़ी सुधरी, तो उसे घर ले आए।      अब कुछ दिन सब ठीक था, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। दोबारा चेकअप कराने पर पता चला कि बच्ची को जलशीर्ष नामक बीमारी है, जिसमें दिमाग में पानी भरने से सिर का आकार बढ़ने लगता...

**"मेहनत और सफलता की यात्रा: हंसवाहिनी कोचिंग की कहानी"**

**"मेहनत और सफलता की यात्रा: हंसवाहिनी कोचिंग की कहानी"** नवीन सिंह राणा की कलम से (इस प्रस्तुति में लेखक ने हंसवाहिनी के कोच श्री अवतार सिंह राणा जी के संघर्ष की कहानी को उन्ही के शब्दो में लिखने का प्रयास किया है।)      मैं अवतार राणा (हंसवाहिनी), आपकी सेवा में उपस्थित हूँ। आज मैं आपको अपनी कोचिंग के सफर की कहानी सुनाना चाहता हूँ, जो 2016 में शुरू हुई थी। यह कहानी है संघर्ष, मेहनत और सफलता की, जो हमारे छात्रों ने अपनी कड़ी मेहनत से लिखी है। #### शुरुआत 2016 में, मैंने दिल्ली में UPSC की कोचिंग के बाद प्रयागराज का रुख किया। मैंने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश PCS दोनों के मुख्य परीक्षाएँ दीं, लेकिन इंटरव्यू तक नहीं पहुँच सका। UPSC की प्रारंभिक परीक्षा में भी सफल नहीं हो पाया और SSC CGL के मुख्य परीक्षा में भी असफल रहा। इस दौरान मैंने और कोई परीक्षा नहीं दी।       इन असफलताओं ने मुझे निराश नहीं किया बल्कि मुझे सिखाया कि सही दिशा में कड़ी मेहनत और अनुशासन से ही सफलता पाई जा सकती है। इस सोच के साथ मैंने 2016 में अपनी कोचिंग शुरू की। #### पहला परिणाम   ...

स्वीकृति का सुख": राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी :नवीन सिंह राणा की कलम से

 "स्वीकृति का सुख": राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी  :नवीन सिंह राणा की कलम से       राणा थारू समाज के एक छोटे से गाँव में, सिया नाम की एक लड़की रहती थी। सिया राणा का परिवार मेहनती और ईमानदार था, लेकिन आर्थिक दृष्टि से उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता था। सिया ने बचपन से ही अपने माता-पिता को कठिन परिस्थितियों में काम करते देखा था, परंतु उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी। क्योंकि गांव का जीवन और वह भी छोटी मोटी खेती जीवन को और मुस्किल बना देता है।   सिया राणा के गाँव में ही एक और परिवार था, जो काफी संपन्न था। उस परिवार की बेटी, अन्वी राणा, सिया राणा की सहपाठी थी। अन्वी के पास हर वह चीज थी जो सिया को एक सपने की तरह लगती थी – सुंदर कपड़े, महंगे खिलौने, और सुख-सुविधाओं से भरा जीवन। सिया के मन में अक्सर यह सवाल उठता कि क्यों उनके पास वह सब नहीं है जो अन्वी के पास है।      एक दिन, सिया राणा अपनी माँ के साथ खेत में काम कर रही थी। थकावट और निराशा ने उसे घेर लिया। उसने अपनी माँ से कहा, "माँ, क्यों हम इतने गरीब हैं? क्यों हमारे पास वो स...

"जीवन की विविधता का सम्मान: संतुलन और स्वीकार्यता का मार्ग"

"जीवन की विविधता का सम्मान: संतुलन और स्वीकार्यता का मार्ग" :नवीन सिंह राणा की कलम से  जीवन की अद्वितीयता और उसमें समाहित सुख-दुःख, प्रेम, पैसा और सम्मान की विविधता को समझना और स्वीकारना हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस संसार में जो भी जीव जन्म लेता है, उसे प्रकृति ने अपनी अनमोल भेंट के रूप में विविध अनुभवों से नवाजा है। हर किसी का जीवन पथ अलग है, और इसमें मिलने वाले अनुभव भी अनन्य होते हैं। सुख और दुःख, जीवन के दो पहलू हैं जो एक-दूसरे के पूरक हैं। किसी का जीवन निरंतर सुख से भरा हो, यह न तो संभव है और न ही व्यावहारिक। दुःख के बिना सुख की महत्ता को समझ पाना कठिन है। जैसे अंधकार के बिना प्रकाश की अनुभूति अधूरी है, वैसे ही दुःख के बिना सुख का अनुभव अधूरा है। इसलिए, हमें अपने और दूसरों के सुख-दुःख को सम्मान देना चाहिए।  पैसा और प्रेम भी जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, परन्तु इनका महत्व व्यक्ति-विशेष के नजरिये पर निर्भर करता है। एक व्यक्ति के लिए पैसा महत्वपूर्ण हो सकता है, जबकि दूसरे के लिए प्रेम। कोई तीसरा व्यक्ति सम्मान को सर्वोपरि मानता है। हर व्य...

जन्म भूमि की मिट्टी की महक: हमारे अस्तित्व की नींव**

**जन्म भूमि की मिट्टी की महक: हमारे अस्तित्व की नींव** :नवीन सिंह राणा  हर व्यक्ति के जीवन की कहानी उसकी जन्म भूमि से शुरू होती है। गाँव की गलियों में खेलते हुए, मिट्टी के कच्चे घरों में रहने का अनुभव, और बचपन के उन मासूम पलों की स्मृतियाँ, हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं। जीवन की इस यात्रा में चाहे हम कितनी भी ऊंचाइयों को छू लें, अपने गांव, बचपन के लोग, और पुरानी स्थिति को कभी भूलना नहीं चाहिए।गांव की वो सुबहें, जब सूरज की पहली किरण हमारे आंगन को छूती थी, और गाँव के बुजुर्गों का आशीर्वाद, जो हमारी सफलता की नींव रखते थे। वो छोटे-छोटे पल, जब हम दोस्तों के साथ खेलते थे, या जब गांव के मेले में मस्ती करते थे, ये सारी यादें हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा हैं। सफलता की ऊंचाइयों को छूने के बाद भी, हमें उन लोगों का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिन्होंने हमारे जीवन की शुरुआत में हमारा साथ दिया। हमारे गांव के लोग, जो अपने छोटे-छोटे साधनों से भी हमारी मदद करते रहे, उनके भले के लिए कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए। हमारे आधार, हमारे लोग, और हमारे गांव का विकास हमारी जिम्मेदारी है।गाँव का विकास सिर्फ भौतिक संसाध...

"प्रकृति की गोद में बसा राणा थारू समाज: एकता और सौहार्द की अद्वितीय गाथा"

"प्रकृति की गोद में बसा राणा थारू समाज: एकता और सौहार्द की अद्वितीय गाथा" :नवीन सिंह राणा         तराई भावर की हरी-भरी घाटियों में बसे राणा थारू समाज के गांव, एक जादुई दुनिया के समान प्रतीत होते हैं। सदियों से, इन गांवों ने संयुक्त परिवारों की परंपरा को बनाए रखा है, जहां हर सदस्य एक दूसरे के साथ मिलकर सुखी जीवन व्यतीत करता है।       गांव के एक छोर पर, एक बड़ा सा घर खड़ा है, जिसे चार पीढ़ियों ने मिलकर संवारा है। इस घर में पचास लोग एक साथ रहते हैं। घर के मुखिया, दादाजी, हमेशा बच्चों को अपने अनुभवों की कहानियां सुनाते हैं। उनका मानना है कि संस्कार युक्त वातावरण में ही बच्चे सही मायनों में विकसित हो सकते हैं।  एक सुबह, घर के आंगन में चहल-पहल थी। सभी सदस्य अपने-अपने काम में व्यस्त थे। पुरुष खेतों में काम करने के लिए तैयार हो रहे थे, महिलाएं सुबह का खाना बना रही थीं, और बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयारी कर रहे थे। हर कोई मिल बांटकर काम करता था, जिससे कोई भी काम भारी नहीं लगता था। दोपहर को, जब सभी खेतों से लौटे, तो घर का माहौल और भी जीवंत हो गया। बच्चे...

"प्रकृति की गोद में राणा थारू समाज: संयुक्त परिवार की समृद्धि और सौंदर्य"

"प्रकृति की गोद में राणा थारू समाज: संयुक्त परिवार की समृद्धि और सौंदर्य" By Naveen Singh Rana  राणा थारू समाज के गांवों का वर्णन एक आदर्श ग्रामीण जीवन का प्रतिबिंब है, जो सदियों से तराई भावर क्षेत्र की प्राकृतिक गोद में बसे हुए हैं। यह क्षेत्र अपनी हरी-भरी वादियों, घने जंगलों और समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहां के लोग, विशेष रूप से राणा थारू समाज, संयुक्त परिवारों में एक साथ रहते आए हैं, जो उनके जीवन को सुखी और संतुलित बनाता है। संयुक्त परिवार प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बच्चों की परवरिश संस्कार युक्त वातावरण में होती है। यहां बच्चे अपने दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची और अन्य रिश्तेदारों के साथ रहते हैं, जिससे उन्हें विभिन्न संस्कार और परंपराओं का ज्ञान होता है। इस वातावरण में बच्चे न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी मजबूत बनते हैं। वे जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझते हैं और उनमें सामूहिकता की भावना का विकास होता है। गांव के सभी काम मिल-बांट कर किए जाते हैं, चाहे वह खेतों में काम हो, घर की सफाई हो, या त्यौहारों की तैयारी हो। इस आपसी सहय...

""परम्पराओं की पहिचान ""राणा थारू समाज की पारंपरिक वस्त्रों व त्यौहार पर आधारित कहानी

""परम्पराओं की पहिचान "" Published by Naveen Singh Rana  उत्तराखंड की तराई क्षेत्र के एक छोटे से गांव में, जहाँ हरे-भरे खेतों की महक और चहचहाते पक्षियों की ध्वनि वातावरण को मंत्रमुग्ध कर देती थी, वहीं राणा थारू समाज की समृद्ध संस्कृति और परंपराएँ अपनी अद्वितीय छटा बिखेरती थीं। इस गांव में, एक घर में दादी-नानी की कहानियों के संग जिया करते थे देवू और सीमा, दो भाई-बहन, जिनके ह्रदय में अपने समाज की परंपराओं के प्रति गहरी आस्था थी। क्योंकि उनके पिता जी और मम्मी उन्हे संस्कार युक्त जीवन देने में  लगे थे, भले ही बड़े बड़े खेत उनके नही थे, ऊंची ऊंची अट्टालिका नही है, फिर भी सुकून के साथ घर में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे थे। #### कहानी की शुरुआत     गांव में हर साल की तरह इस बार भी तीज महोत्सव की तैयारियाँ जोरों पर थीं। यह वह समय था जब पूरा गांव एक साथ मिलकर अपने पारंपरिक वस्त्र और आभूषणों में सजा हुआ नजर आता था। देवू और सीमा भी इस महोत्सव का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, क्योंकि इस साल उनके माता-पिता ने उन्हें नई पारंपरिक पोशाकें दिलाने का वादा किया था।  #### दादी की शिक...

**"राणा थारू समाज के पारंपरिक व्यंजन: सांस्कृतिक धरोहर की सुगंध और स्वाद"**by Naveen Singh Rana

**"राणा थारू समाज के पारंपरिक व्यंजन: सांस्कृतिक धरोहर की सुगंध और स्वाद"** :नवीन सिंह राणा की कलम से          राणा थारू समाज की सांस्कृतिक धरोहर न केवल उनके परंपराओं और रीति-रिवाजों में बसती है, बल्कि उनके विशेष व्यंजनों में भी रची-बसी है। यह समाज अपनी पारंपरिक भोजन शैली के लिए प्रसिद्ध है, जो न केवल उनके खानपान के तरीकों को दर्शाती है, बल्कि उनके जीवनशैली, कृषि एमएम पद्धतियों और स्थानीय सामग्री के उपयोग को भी प्रदर्शित करती है।       राणा थारू समाज के व्यंजनों की सूची में से कई आज दुर्लभ होते जा रहे हैं, जबकि इनमें से प्रत्येक व्यंजन का अपना अनूठा स्वाद और महत्व है। बेसन के कतरे और सीओ और  पके कतरे की झोरी एक ऐसा ही व्यंजन है, जिसे विशेष अवसरों पर बनाया जाता है। बेसन को विशेष तरीके से तैयार कर, इसे सीओ या पके कतरे की झोरी भात के साथ परोसा जाता है, जो खाने में अत्यंत लजीज होता है। इसी तरह मिसोला, जो आनंदी चावल को भाप में पका कर तैयार करते हैं और उसमे गुड, सूखे मेवे, देशी घी आदि मिलाकर स्वाद को बेहतरीन बनाते हैं, जिसका सम्बन्ध बरोसी में...

आमंत्रण पत्र बाटने हेतु रणनीति

राणा थारू युवा मंच द्वारा आयोजित मेधावी छात्र-छात्रा सम्मान समारोह के लिए अतिथियों को आमंत्रण पत्र देने के लिए एक सुविचारित रणनीति अपनानी चाहिए। यहाँ कुछ कदम दिए गए हैं जो इस कार्य को प्रभावी ढंग से संपन्न करने में मदद करेंगे: ### 1. **अतिथियों की सूची तैयार करना**    - **मुख्य अतिथि**: किसी प्रमुख व्यक्ति, जैसे राज्य या क्षेत्र के महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता, उच्च सरकारी अधिकारी, या प्रसिद्ध शिक्षाविद् को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करें।    - **विशिष्ट अतिथि**: समाज के सम्मानित सदस्य, शिक्षाविद्, सामाजिक कार्यकर्ता, और अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित करें।    - **स्थानीय नेतृत्व**: स्थानीय नेताओं, पंचायत प्रमुखों, और समुदाय के प्रभावशाली व्यक्तियों को भी आमंत्रित करें। ### 2. **आमंत्रण पत्र की डिजाइन और सामग्री**    - **आकर्षक डिज़ाइन**: आमंत्रण पत्र को आकर्षक और पेशेवर ढंग से डिज़ाइन करें। इसमें संगठन का लोगो, कार्यक्रम का नाम, तारीख, समय, और स्थान शामिल होना चाहिए।    - **सभी आवश्यक जानकारी**: कार्यक्...

राणा थारू युवा मंच के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपनाई जा सकने वाली रणनीति

Written and published by Naveen Singh Rana  राणा थारू युवा मंच का शीर्ष नेतृत्व यदि प्रभावी रणनीतियों को अपनाता है, तो वह थारू समाज में बेहतर कार्य कर सकता है और अपनी पैठ मजबूत बना सकता है। यहाँ कुछ प्रमुख रणनीतियाँ दी गई हैं जो नेतृत्व को अपनानी चाहिए: 1. **समुदाय के साथ गहरा जुड़ाव**:    - **सक्रिय संवाद**: नियमित रूप से समुदाय के सदस्यों के साथ संवाद करें, उनकी समस्याओं और आवश्यकताओं को समझें।    - **स्थानीय दौरे**: विभिन्न गाँवों और कस्बों का दौरा करें और स्थानीय मुद्दों को सीधे सुनें और समाधान के प्रयास करें। 2. **शिक्षा और रोजगार के अवसर**:    - **शिक्षा अभियान**: थारू समाज के बच्चों और युवाओं के लिए शिक्षा के महत्व पर जागरूकता अभियान चलाएँ। स्कूलों और कॉलेजों के साथ सहयोग करके छात्रवृत्ति और शैक्षिक सहायता प्रदान करें।    - **कौशल विकास कार्यक्रम**: युवाओं के लिए कौशल विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करें जिससे उन्हें रोजगार के अधिक अवसर मिल सकें। 3. **स्वास्थ्य और कल्याण**:    - **स्वास्थ्य शिविर**: नियमित स्वास्थ्य शिविर...

राणा थारू युवा मंच को कैसा नेतृत्व चाहिए

Written and published by Naveen Singh Rana  राणा थारू युवा मंच को थारू समाज में अपनी मजबूत पैठ बनाने के लिए प्रभावी और करिश्माई नेतृत्व की आवश्यकता है। नेतृत्व के चयन में निम्नलिखित गुण और योग्यताओं का होना आवश्यक है: 1. **थारू समाज से गहरा जुड़ाव**: नेतृत्व करने वाला व्यक्ति थारू समाज की संस्कृति, परंपराओं, और समस्याओं को भली-भांति समझता हो। वह समाज के साथ घनिष्ठ संबंध रखता हो और समाज का विश्वास जीत चुका हो। 2. **शिक्षित और जागरूक**: एक प्रभावी नेता शिक्षित और समाज की मौजूदा समस्याओं और समाधान के बारे में जागरूक होना चाहिए। वह अपने समुदाय के विकास के लिए आवश्यक नीतियों और योजनाओं को समझता हो। 3. **सामाजिक कार्यों में अनुभव**: नेतृत्व करने वाले व्यक्ति का सामाजिक कार्यों में अनुभव होना चाहिए। उसने पहले भी समाज सेवा, सामुदायिक कार्यक्रमों, और कल्याणकारी योजनाओं में सक्रिय भूमिका निभाई हो। 4. **करिश्माई व्यक्तित्व**: एक प्रभावी नेता को करिश्माई व्यक्तित्व का होना चाहिए, जो लोगों को प्रेरित कर सके और उनके साथ जुड़ सके। उसकी उपस्थिति से लोग प्रभावित हों और उसके विचारों का सम्मान करें। ...

राणा थारू युवा मंच को समाज में पैठ बनाने हेतु रणनीति

Written and Published by Naveen Singh Rana  राणा थारू युवा मंच, अगर सही रणनीति अपनाता है, तो वह थारू समाज में अपनी मजबूत पैठ बना सकता है। कुछ प्रमुख कदम जो इस दिशा में मदद कर सकते हैं: 1. **सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ**: थारू समाज की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को प्रोत्साहित करना और उनका संरक्षण करना। यह मंच के प्रति समाज में गर्व और सम्मान की भावना उत्पन्न करेगा। 2. **शिक्षा और रोजगार**: थारू समाज के युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाना। इस उद्देश्य के लिए शिक्षा संस्थानों के साथ साझेदारी करना, छात्रवृत्ति प्रदान करना, और रोजगार मेलों का आयोजन करना महत्वपूर्ण हो सकता है। 3. **स्वास्थ्य और कल्याण**: स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान, स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन और स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों के साथ सहयोग करना। इससे समाज में मंच की सकारात्मक छवि बनेगी। 4. **नेतृत्व विकास**: थारू समाज के युवाओं में नेतृत्व कौशल विकसित करना। इसके लिए नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित करना आवश्यक है। 5. **सामाजिक न्याय और अधिकार**: थारू सम...

""नव प्रभात की पुकार""

""नव प्रभात की पुकार "" :नवीन सिंह राणा  निद्रा से उठो अब  प्रभात संग स्वप्न है लाया । चिड़ियों की ची-ची मधुर सुर,  आँगन में संगीत है सजाया ।। उठो, प्रभात की रश्मि निहारो, यह नव जीवन का संचार है। मंद शीतल बयार संग,  नव उमंग का आगाज है।। आलस छोड़ो, मंजिल निहारो, सपनों को साकार करो। परचम लहराने को हो तैयार, हर चुनौती को पार करो। सूरज ने भी जगकर पुकारा , उजियारे का संधान करो,  होगी  जीत की गाथा,  जग को नई पहचान दो। दुनिया को दिखाना है तुम्हें,  संघर्षों का परिणाम हो, तुम हो मेरी प्यारी बेटी,  हर बाधा का समाधान हो।। प्रकृति के इस सुंदर दृश्य में,  अपनी शक्ति पहचान लो। सपनों को हकीकत में बदलो,  अपने लक्ष्य को जान लो।। अब उठो, जागो, बढ़ चलो,  समय का सही उपयोग करो,  लाया सवेरा नई ताजगी  ,  सांसों में निर्मल पवन भरो।। उड़ो ऊँचाईयों की ओर,  हर पल को इतना उच्च बनाओ, तुम हो मेरी बेटी, गर्व से,  जीवन का नवल अलख जलाओ। :नवीन सिंह राणा 

दीपावली का सफर: नवराज की एक अधूरी स्नेह भरी कहानी

### दीपावली का सफर: नवराज की एक अधूरी  स्नेह भरी कहानी  :नवीन सिंह राणा द्वारा लिखित अपने दोस्त के साथ बिताए पल को संस्मरण के माध्यम से।     नवराज जो मेरा दोस्त, मेरे साथ ही डीएसबी कैंपस में पढ़ता था, वैसे तो वह मेरा पक्का दोस्त था लेकिन उतना नही की अपने मन की सारी बातें मुझे बता दे, लेकिन कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता है जब यादें जीने का सहारा हो जाती है तब एक दोस्त अपने दोस्त से कुछ छिपा नहीं पाता, ऐसा ही कुछ हुआ मेरे दोस्त नवराज के साथ, जिसने जब मुझे अपनी कहानी बतानी शुरू की तो बताते चला गया जब तक बात पूरी नही हुई उसकी बात कुछ यों थी : :  ""बीएससी 2nd वर्ष में पढ़ाई करते हुए, दीपावली की छुट्टियों में घर वापस आने का समय था। हल्द्वानी में बस बदलनी थी, लेकिन भीड़ इतनी अधिक थी कि सीट मिलना मुश्किल था। अल्मोड़ा डिपो की एक बस टनकपुर जाने के लिए खड़ी थी, पर वह बस यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी। मैंने सोचा कि अब इस बस में चढ़ना संभव नहीं होगा। तभी मैंने देखा कि एक लड़की, जो डीएसबी कैंपस में पढ़ रही थी, भी उसी बस में बैठने का प्रयास कर रही थी। लेकिन वह बस चली गई और वह लड़की ...

""गांव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल ""एक संस्मरण

### गाँव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल :नवीन सिंह राणा द्वारा लिखित संस्मरण जिसमे उन्होने अपने दोस्त के साथबिताए पलों को अनुभव के रुप में लिखने का प्रयास किया है  गाँव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल, जहाँ मनोज शर्मा ने अपने बचपन के अनमोल साल बिताए थे, और वहीं से प्राथमिक शिक्षा पूरी की। जहां की दीवारें और कक्षाएँ जैसे जीवंत इतिहास की किताबें थीं। यहाँ की हर ईंट और हर कोना अपनी एक अलग कहानी कहता था, जिसमें प्रेम, शिक्षा, और अनुशासन की गहराईयों का समावेश था। मनोज शर्मा, जो अब उसी विद्यालय में अध्यापक थे, बचपन में जब इस विद्यालय में विद्यार्थी थे, तो कभी-कभी बेसर्म की डंडी से पिटाई भी खाते थे।  कभी गलती के लिए, तो कभी बिना किसी गलती के भी। परंतु उन डंडियों की मार में भी एक अथाह प्रेम छुपा होता था, जिसे समय के साथ मनोज ने समझा। वह प्रेम, जो एक शिक्षक के हृदय से निकलता है और अपने विद्यार्थियों की भलाई के लिए हर संभव प्रयास करता है। मनोज के पिताजी, महेश प्रकाश शर्मा, उस समय इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक थे। वे एक कर्मठ और समर्पित शिक्षक थे, जो विद्यार्थियों को न केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा द...

आषाढ़ी का त्यौहार: राणा थारू समाज की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक

### आषाढ़ी का त्यौहार: राणा थारू समाज की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक : नवीन सिंह राणा की कलम से         उत्तराखंड के विविध समाजों में विभिन्न प्रकार के त्योहारों का आयोजन किया जाता है, जो उनकी संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं को दर्शाते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण त्योहार है आषाढ़ी, जिसे उत्तराखंड के तराई भावर में स्थित गांवो में रह रहे राणा थारू समाज के लोग बड़ी धूमधाम से मनाता है। यह त्योहार न केवल ईष्ट देव की पूजा का अवसर होता है, बल्कि सामाजिक सामंजस्य और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का भी माध्यम है। #### परंपराओं की पवित्रता     आषाढ़ी का त्यौहार राणा थारू समाज में विशेष महत्व रखता है। इस दिन समाज की महिलाएँ अपने घरों में और घर के बाहर ईष्ट देव के प्रतिमा रूपी थान की पूजा करती हैं। पूजा की तैयारी के लिए विशेष सामग्री जुटाई जाती है और विविध प्रकार के पकवान जैसे पूड़ी, लप्सी आदि बनाकर देवता को भोग लगाया जाता है। यह धार्मिक प्रक्रिया न केवल आध्यात्मिक संतोष देती है, बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को एकत्रित होकर सामूहिक प्रयास का अनुभव भी कराती है। #...

गांव की एकता और शान्ति की कहानी

गांव की एकता और शान्ति की कहानी  राणा थारू समाज का गांव 'उत्तराखंड की हरी-भरी भूमि तराई भावर के बीच बसा हुआ था। यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और वहां के लोगों की सादगी के लिए प्रसिद्ध था। गांव के लोग शान्ति प्रिय, भोले भाले, मेहनती और सज्जन किस्म के होते थे।  हर साल जब होली का त्योहार आता, तो गांव के हर कोने में रंगों की बारिश होती। छोटे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी इस त्योहार को हंसी-खुशी से मनाते थे। गांव की महिलाएं घर-घर जाकर गुलाल लगातीं, गीत गातीं और ढोलक की थाप पर नाचतीं। मर्द, खेतों में मेहनत करने के बाद भी ऊर्जा से भरपूर रहते और होली के महीने भर पूरा गांव एक रंगमंच सा बन जाता था। गांव में एक बच्चा था, नाम था राधेय सिंह राणा  के माता-पिता किसान थे और वह भी उनके साथ खेतों में काम करता था। राधेए सिंह राणा पढ़ाई में भी होशियार था और गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करता था।  एक बार, होली से कुछ दिन पहले  उस का छोटा भाई बीमार हो गया। परिवार बहुत चिंतित हो गया, क्योंकि गांव के पास कोई बड़ा अस्पताल नहीं था। रास्ता कच्चा था और गांव के नाले में पुल भी नहीं था गा...

""राणा थारू समाज की प्रेरणा दायक कहानी ""

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**राणा थारू समाज की प्रेरणादायक कहानी** : नवीन सिंह राणा       तराई के घने जंगलों से लगती हुई एक छोटी सी बस्ती, जो राणा थारू समाज का एक गांव था वहाँ प्रकृति के अद्वितीय सौंदर्य के बीच जीवन का एक अनमोल पाठ प्रतिदिन पढ़ाया जाता था। इस समाज में हर व्यक्ति जानता था कि जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है, जिसे कभी भी झुठलाया नहीं जा सकता। इसी सत्य को ध्यान में रखते हुए यहाँ के लोग धर्म और पुण्य का पालन करते थे। इस बस्ती में एक वृद्ध महिला, रमा देवी रहती थी। उसकी आँखों में जीवन का लंबा अनुभव और हृदय में अपार स्नेह था। वह हमेशा बच्चों को शिक्षा देती कि "हम इस संसार में जितने दिन भी रहें, हमें ऐसा कार्य करना चाहिए कि हमारे जाने के बाद दुनिया हमें याद रखे।" रमा देवी का जीवन अपने आप में एक प्रेरणा था। उसने अपने जीवन में हर मुश्किल का सामना हिम्मत और धैर्य से किया। आयुर्वेदिक उपचार चिकित्सा और आध्यात्मिक उपचार चिकित्सा द्वारा उसने समाज के हर व्यक्ति की मदद की और हमेशा उन्हें सच्चाई और ईमानदारी के मार्ग पर चलने की सलाह दी। एक बार, जब बस्ती में बाढ़ आई, तो रमा देवी ने अपनी ज...

"बलिदान की अमर गाथा: शहीद वीरेंद्र सिंह राणा"

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"बलिदान की अमर गाथा: शहीद वीरेंद्र सिंह राणा" नवीन सिंह राणा की कलम से   फरवरी 2019 का वो मनहूस दिन, जिसे भारत हमेशा एक काला दिवस के रूप में याद करेगा। इस दिन, जम्मू-कश्मीर के जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे पर अवंतीपोरा के पास गोरीपोरा में, सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकियों ने हमला किया था। इस हमले में सीआरपीएफ के 44 जवान बलिदान हो गए थे। उन्हीं वीर जवानों में से एक थे वीर शहीद वीरेंद्र सिंह राणा, जो उत्तराखंड के तराई भावर में स्थित सुंदर से गांव मोहम्मद पुर भुड़िया में जन्मे थे।  वीरेंद्र सिंह राणा का बचपन उसी गांव में बीता। उनका गांव, चारो ओर से हरी भरी फसलों से लहलाते खेतों की गोद में बसा हुआ, आम के बगीचों से भरपूर और प्रकृति की अद्वितीय सुंदरता से ओतप्रोत था। गांव की हरियाली, शांत वातावरण, और सरसों के पीले फूलों के बीच खेलते हुए उन्होंने देशभक्ति का जज्बा अपने दिल में संजोया। उनकी आंखों में हमेशा एक चमक और दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना स्पष्ट दिखाई देती थी। बचपन से ही वीरेंद्र सिंह राणा में देशभक्ति की एक अद्भुत ललक थी। उनके परिवार और समाज के लोग हमेशा...

"दृढ़ संकल्प की मिसाल: मनेंद्र सिंह राणा की प्रेरणादायक कहानी"

     "दृढ़ संकल्प की मिसाल: मनेंद्र सिंह राणा की प्रेरणादायक कहानी"(राणा थारू समाज के एक युवा की कहानी जिसने विकलांगता को अपनी मजबूती बना ली) : नवीन सिंह राणा की कलम से        उत्तराखंड की तराई भावर में बसा एक गांव, इलाबिर्दी, एक प्रेरणादायक कहानी का गवाह है। इस गांव का एक बालक, मनेंद्र सिंह राणा, जिसने बचपन से ही कठिनाइयों का सामना किया। हर रोज 8 से 10 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना उसकी दिनचर्या थी। मेहनत उसके रग-रग में बसी थी। उसके पिता गांव के पधना, एक किसान और सम्मानित व्यक्ति थे, जिनसे यह बालक अछूता नहीं था।       लेकिन एक दिन अचानक आई विपत्ति ने उसकी सुनने की क्षमता छीन ली। दिमागी बुखार ने उसे श्रवण बाधित बना दिया। इसके बावजूद, मनेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी पढ़ाई जारी रखी। जीवन यापन के लिए उसने कपड़े सिलने और इलेक्ट्रिकल का काम सीखा। परंतु, उसकी महत्वाकांक्षा यहीं नहीं रुकी। उसने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया, बिना सुने, सिर्फ इशारों के माध्यम से।      इसके बाद उसने संविदा पर सरकारी बिजली विभाग मे...

मेहनत और समर्पण: सुखदेव सिंह राणा की प्रेरणादायक यात्रा"

"मेहनत और समर्पण: सुखदेव सिंह राणा की प्रेरणादायक यात्रा" :नवीन सिंह राणा की कलम से   (सुखदेव सिंह राणा लंबे समय तक लेखक के साथ शिक्षा प्राप्त करने और संघर्ष में साथ रहे, उन्ही अनुभव को कलम बद्ध करने का प्रयास किया गया है) तराई भावर के पटपुरा गांव में एक किसान परिवार रहता था, जो अपने परिश्रम और मेहनत के लिए प्रसिद्ध था। यह परिवार खेती के साथ-साथ दूध डेयरी का भी काम करता था ताकि उनकी आय बढ़ सके। इस परिवार के मुखिया की मेहनत और दृढ़ता का असर उनके बच्चों पर भी पड़ा। उनका इकलौता बेटा, सुखदेव सिंह राणा, पढ़ने में बहुत होशियार था, और उसकी तीन बेटियां भी शिक्षा के क्षेत्र में तेज-तर्रार थीं। सुखदेव सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में पूरी की और फिर उच्च शिक्षा के लिए नैनीताल स्थित डीएसबी कैंपस में दाखिला लिया। वहां से स्नातक करने के बाद उसने मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (एमसीए) की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह अपने सपनों को साकार करने और बेहतर भविष्य की तलाश में न्यू देल्ही चला गया। दिल्ली में शुरुआत के दिन बहुत कठिन थे। उसे संघर्ष और मेहनत के बल पर कई छोटे-मोटे क...

संघर्ष से शिखर तक: राणा थारू समाज की सच्ची घटना पर आधारित कहानी

      संघर्ष से शिखर तक: राणा थारू समाज की सच्ची घटना पर आधारित कहानी  : नवीन सिंह राणा  तराई भावर के एक छोटे से गाँव में, जहाँ हर सुबह की ताजगी में प्रकृति का सजीव चित्रण होता था, वहाँ एक किसान परिवार रहता था। ये परिवार जिस गांव में बसा हुआ था वह गांव चंपावत जिले की सीमा से 8-10 किलोमीटर दूर दक्षिण में बीहड़ जंगल  की सीमा से लगा हुआ था। इस परिवार के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर गुजारा कर पाना मुश्किल था। उनके पास पाँच बेटे थे, और उनके लिए ऊँची शिक्षा प्रदान करना किसान के लिए किसी सपने से कम नहीं था। प्रकृति की गोद में बसा ये गाँव अद्वितीय सुंदरता का प्रतीक था। चारों ओर हरियाली से घिरे खेत, जिनमें किसान की मेहनत की बूंदें रोज़ाना सिंचाई करती थीं, एक अलग ही कहानी बयां करते थे। प्रेम सिंह राणा, जिसका दिल भी इन खेतों की तरह ही विशाल और मेहनती था, जिसने अपने बेटों को शिक्षा के महत्व का एहसास कराया। उनके बड़े बेटे ने कठिन परिश्रम के बाद सरकारी नौकरी प्राप्त की। इससे किसान को थोड़ी राहत मिली, पर उसकी असली चुनौती अभी बाकी थी। उसका चौथा बेटा अनुज सिंह राणा , जो स्व...

आत्मा की खोज

### आत्मा की खोज बहुत समय पहले एक छोटे से गाँव में एक युवक रहता था जिसका नाम अर्जुन सिंह राणा था। अर्जुन हमेशा से जीवन के गहरे अर्थ को समझने के लिए बेचैन रहता था। वह जानता था कि जीवन केवल खाने, सोने और काम करने के लिए नहीं है। उसे अपने भीतर एक अधूरी चाहत महसूस होती थी, एक आंतरिक आवाज़ जो उसे कुछ और ढूंढने के लिए प्रेरित करती थी। एक दिन, अर्जुन ने निर्णय लिया कि वह अपने जीवन का उद्देश्य खोजने के लिए एक लंबी यात्रा पर निकलेगा। उसने अपनी आवश्यकताओं का सामान बांधा और अपने परिवार को अलविदा कहकर जंगल की ओर चल पड़ा।  जंगल में चलते-चलते अर्जुन को एक बूढ़े साधु मिले। साधु का चेहरा शांति और संतोष से चमक रहा था। अर्जुन ने साधु से पूछा, "महात्मन, कृपया मुझे जीवन का अर्थ और आत्मा की वास्तविकता के बारे में बताएं। मैं इसे समझना चाहता हूँ।" साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, "बेटा, आत्मा की खोज कोई बाहरी यात्रा नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक यात्रा है। लेकिन अगर तुम सच में इसे समझना चाहते हो, तो तुम्हें ध्यान, सेवा, और स्वाध्याय के मार्ग पर चलना होगा।" अर्जुन सिंह राणा ने साधु की बातों को ध्...

*"परियों का साहसिक कारनामा: रिया, बंटी, और चिंकी की यात्रा"**

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परियों का साहसिक कारनामा: रिया, बंटी, और चिंकी की यात्रा"(बाल कहानी) :नवीन सिंह राणा       एक बार की बात है, परी लोक नाम की एक जादुई जगह थी। यह जगह नीले आकाश, चमकते तारे, और रंग-बिरंगे फूलों से भरी हुई थी। वहां छोटे-छोटे परियों के गांव थे, जिनमें हर तरह की परियाँ रहती थीं - कुछ के पंख तितलियों जैसे थे, कुछ के पक्षियों जैसे, और कुछ के तो झिलमिलाते थे जैसे आकाशगंगा के तारे।      परी लोक में एक छोटी सी परी रहती थी जिसका नाम था रिया। रिया के पंख गुलाबी और नीले रंग के थे, और उसकी मुस्कान से पूरा गांव रोशन हो जाता था। वह बहुत ही हिम्मती और दयालु थी। उसके सबसे अच्छे दोस्त थे - एक प्यारा सा खरगोश जिसका नाम था बंटी, और एक चतुर गिलहरी जिसका नाम था चिंकी।       एक दिन, परी लोक में एक बड़ी समस्या आ गई। परी लोक का जादुई पेड़, जिससे सभी परियों को उनकी शक्ति मिलती थी, अचानक सूखने लगा। सभी परियाँ बहुत चिंतित हो गईं और यह नहीं समझ पा रही थीं कि क्या किया जाए।        रिया ने अपने दोस्तों से कहा, "हमें कुछ करना ...

**"मेहनत का फल: बादाम सिंह की प्रेरणादायक गाथा"**

   **"मेहनत का फल: बादाम सिंह की प्रेरणादायक गाथा"** (नवीन सिंह राणा द्वारा लिखित राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी ) उत्तराखंड का सीमावर्ती गांव ,जो उत्तर प्रदेश की सीमा से लगता हुआ कुछ मील की ही दूरी पर, उस छोटे से गांव में स्थित एक किसान परिवार में पैदा हुए बादाम सिंह राणा ने अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए कड़ी मेहनत के बल पर एक सरकारी नौकरी हासिल की। उनके मन में हमेशा यह सपना था कि उनके तीनों बेटे भी एक दिन ऊँचाइयों को छुएं और अपने परिवार का नाम रोशन करें।       बादाम सिंह ने अपने बच्चों को मेहनत और अनुशासन का महत्व सिखाया। उन्होंने अपने बच्चों के शिक्षा और संस्कारों पर विशेष ध्यान दिया, जिससे वे जीवन में हर कठिनाई का सामना कर सकें। बादाम सिंह का मानना था कि सच्ची मेहनत और लगन से कोई भी सपना साकार हो सकता है।     उनकी कठिनाईयों और मेहनत का फल जल्द ही दिखने लगा। उनके तीनों बेटे बड़ी सरकारी नौकरियां हासिल करने में सफल हुए। यह बादाम सिंह की दृढ़ संकल्पना और बच्चों की अथक मेहनत का परिणाम था। सबसे छोटे बेटे ने अपनी मेहनत से ...

नशे पर विजय: राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं से प्रेरित कहानी

यह उत्तराखंड में राणा थारू समाज के सुंदर और शांतिपूर्ण गाँव की कहानी है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध था। घने जंगलों से घिरा यह गाँव, बहती नदियों और हरी-भरी वादियों का अद्भुत संगम था। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति के प्रति अत्यंत गर्वित थे। जीवन सरल था और खुशहाल। लेकिन समय के साथ कुछ बदलाव आने लगे, जो गाँव के भविष्य पर एक काला साया बनकर मंडराने लगे।     गाँव में पारंपरिक उत्सवों के दौरान शराब का सेवन एक सामान्य बात थी। बड़ों के लिए यह आनंद का एक साधन था और समाज इसे स्वीकार करता था। लेकिन जब शराब का यह सेवन सीमाओं को लाँघ गया, तो समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं। कुछ ही समय बाद, गाँव में चरस और गांजे का भी प्रवेश हो गया। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब समाज के युवाओं में स्मैक की लत फैलने लगी।       इसका सबसे बुरा असर महेश सिंह राणा और उसकी पत्नी सुधादेवी पर पड़ा। उनके दो बेटे, मोहन सिंह राणा और सुरेश सिंह राणा बचपन से ही होनहार थे। मोहन पढ़ाई में अव्वल था और सुरेश खेलकूद में। दोनों भाईयों का सपना था कि वे अपने माता-पिता का नाम रोशन करें। परंतु...

प्रेरणा से बदलाव : एक गांव की कहानी

""प्रेरणा से बदलाव"एक गांव की कहानी  नवीन सिंह राणा की कलम से    कुछ समय पहले की बात है, कुमाऊं के तराई भावर में राणा थारू समाज का एक गांव बसा हुआ था। यह गांव चारों ओर से बड़े बड़े खेतों और बाग बगीचों से घिरा हुआ था, जहाँ प्रकृति अपने पूरे शबाब पर थी। इस गांव का मुखिया पधान कहलाता था, जो पूरे गांव समाज को एक सूत्र में बांधे रखने का प्रयास करता था। पधान अपने ज्ञान और नेतृत्व कौशल से गांव को एकजुट रखता था, और सभी लोग उसकी बात मानते थे।       समय के साथ परिवर्तन आया और आधुनिकता ने अपने पंख फैलाने शुरू किए। गांव के लोग मुखिया को कम महत्व देने लगे, और एकता कमजोर पड़ने लगी। गांव में कुछ लोग ऐसे भी थे जो स्वार्थी थे और अपने फायदे के लिए गांव का माहौल खराब करने की कोशिश करने लगे। धीरे-धीरे स्थिति इतनी बिगड़ गई कि गांव के लोगों ने आपस में जमीन खरीदने-बेचने का खेल शुरू कर दिया, जिससे गांव की प्राकृतिक सुंदरता और समृद्धि को नुकसान पहुँचा।     ऐसे समय में, गांव का एक युवा जिसका नाम था कमल सिंह राणा, ने गांव की पुरानी एकता और सामंजस्य को फिर से स्थापित करने का...

**"धरोहर की रक्षा: राणा थारू समाज की कहानी"**.

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**"धरोहर की रक्षा: राणा थारू समाज की कहानी"**. नवीन सिंह राणा की कलम से       राणा थारू समाज के लोग पुराने समय में सीधे-सादे, भोले-भाले और खुशहाल जीवन जीते थे। उनके गाँव हरे-भरे जंगलों और कलकल करती नदियों के बीच बसे थे, जहाँ प्रकृति अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ फैली थी। यहाँ की हवा में एक अद्भुत सुकून था और इनकी संस्कृति और परंपराएँ इस शांतिपूर्ण जीवन का हिस्सा थीं।     समय के साथ, अन्य समाज के लोग भी थरुआट की इस धरती की सुंदरता और उपजाऊ जमीन की ओर आकर्षित होने लगे। वे लोग यहाँ आकर बसने लगे और धीरे-धीरे राणा थारू समाज की जमीन पर अपनी नजरें जमाने लगे। बाहर से आए लोग चालाक थे और उन्होंने राणा थारू समाज की सरलता का फायदा उठाना शुरू किया।    एक दिन, खासू सेठ नाम का एक चालाक व्यापारी गाँव में आया। उसने राणा थारू समाज के मुखिया, सूरजमल सिंह राणा से दोस्ती की। सूरजमल सिंह राणा एक नेक और सीधा-सादा व्यक्ति था, जिसने खासू सेठ बातों पर भरोसा कर लिया।  खासू सेठ ने सूरजमल से कहा, "भाई, मैं तुम्हारी जमीन को और उपजाऊ बनाने में मदद कर सकता हूँ। त...

धर्म की ज्योति: राणा थारू समाज का पुनरुत्थान

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धरोहर की जमीन: राणा थारू समाज की ज्वलंत घटना पर आधारित कहानी

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### **धरोहर की जमीन** नवीन सिंह राणा की कलम से  उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में बसे एक छोटे से गांव में, राणा थारू समाज के लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ शांतिपूर्वक जीवन बिता रहे थे। गांव के केंद्र में स्थित एक विशाल बरगद का पेड़ उन सभी के लिए धरोहर और एकता का प्रतीक था। इसी गांव में रहते थे वृद्ध किसान रघुनाथ सिंह राणा और उनका परिवार।       रघुनाथ सिंह राणा अपने परिवार के साथ एक छोटी सी जमीन पर खेती करते थे। उनकी जमीन पीढ़ियों से उनके पास थी और वह इसे अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मानते थे। उन्होंने हमेशा अपने बच्चों को भी यही सिखाया था कि जमीन ही हमारी असली धरोहर है और इसे बचाकर रखना हमारा कर्तव्य है।     लेकिन बदलते समय के साथ, गांव में भू माफियाओं का दबदबा बढ़ता जा रहा था। शहर के बड़े व्यापारी और बिल्डर गांव में आकर जमीन खरीदने की कोशिश करने लगे। वे किसानों को बड़े-बड़े वादे और मोटी रकम का लालच देकर उनकी जमीनें खरीदने की कोशिश करते थे। रघुनाथ सिंह के गांव में भी इन भू माफियाओं की नज़रें जम चुकी थीं। क्योंकि उनका गांव शहर...