*"समर्पण और संघर्ष: एक पिता का अटूट प्रेम"**
:नवीन सिंह राणा की 🖋️ से
यह कहानी है एक ऐसी बच्ची और उसके माता-पिता की, जिनका जीवन संघर्ष एक मिसाल है। यह कहानी हृदय को द्रवित कर देती है और हमें सिखाती है कि सच्चा संघर्ष और समर्पण क्या होता है।
साल 2009 की बात है। नंद राज राणा दिल्ली में अपने संघर्ष की कहानी बुन रहा था। उसी अक्टूबर में, उनके गांव में उनकी बेटी का जन्म हुआ। बेटी से मिलने की चाहत ने नंद राज को गांव की ओर खींच लिया। बेटी ठीक थी, स्वस्थ थी, और वैसे ही हंस रही थी जैसे बच्चे करते हैं। नंद राज की खुशी का ठिकाना नहीं था।
कुछ दिनों बाद, नंद राज दोबारा दिल्ली वापस चला गया, लेकिन जैसे ही वह दिल्ली पहुंचा, उसे सूचना मिली कि उसकी गुड़िया की तबियत ठीक नहीं है। पीलीभीत के अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया, और आईसीयू में 10-12 दिन बाद जब उसकी स्थिति थोड़ी सुधरी, तो उसे घर ले आए।
अब कुछ दिन सब ठीक था, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। दोबारा चेकअप कराने पर पता चला कि बच्ची को जलशीर्ष नामक बीमारी है, जिसमें दिमाग में पानी भरने से सिर का आकार बढ़ने लगता है। नंद राज तुरंत पीलीभीत से महाजन हॉस्पिटल पहुंचे, लेकिन उस दिन होली का त्योहार था। लोग रंगों में मस्त थे और किसी की परेशानी को नजरअंदाज कर रहे थे। नंद राज ने कितनी विनती की, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था।
बरेली से दिल्ली के AIIMS पहुंचने के बाद, दोस्तों और जानने वालों की मदद से बच्ची का ऑपरेशन कराया गया। उस वक्त बच्ची सिर्फ तीन महीने की थी। बच्ची की समस्याएं बनी रहीं, बीच-बीच में दौरे पड़ते रहते थे। नंद राज दिल्ली से उत्तराखंड के तराई भावर के गांव वापस आ गया था, अपने संघर्ष स्थल को छोड़ कर।
समय बीतता रहा और नंद राज को वहीं नौकरी मिल गई। बेटी बड़ी हो रही थी, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। बिटिया को बैठने, चलने, सुनने और बोलने में अक्षमता थी, जिससे उसकी देखभाल में दिक्कत बढ़ती रही। समय गुजरता गया, और बिटिया की हालत गंभीर ही बनी रही।
बारह साल, फिर चौदह और पंद्रह साल ऐसे ही निकल गए। जिन्दगी अपने हिसाब से चल रही थी, लोगों की बातें सुनकर और दुनिया के साथ कदम मिलाकर। क्योंकि दुनिया बहुत अजीब है, वह किसी की समस्याएं नहीं देखती, आपको ही दुनिया के साथ चलना होता है।
एक दिन अचानक बच्ची की तबियत और बिगड़ गई। काफी इलाज कराया, लेकिन स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ। इसी दौर में बच्ची की दृष्टि चली गई। इलाज के लिए वे AIIMS ऋषिकेश पहुंचे, लगातार दो-तीन ऑपरेशन कराने के बाद भी कोई खास सुधार नहीं हुआ। अब माता-पिता की दिक्कतें और बढ़ गई थीं।
लेकिन नंद राज और उसकी पत्नी ने अपनी लाडली की सेवा को ही ईश्वर की सेवा मान लिया। वे अब इसी में अपनी खुशी ढूंढ़ने लगे। उन्हें अब सिर्फ इतना चाहिए था कि वे हंसी-खुशी से जीवन यापन कर सकें।
यह कहानी नंद राज और उनकी पत्नी की अटूट संघर्ष और असीम प्रेम की दास्तान है। उन्होंने अपनी बेटी की सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर दिया, और यही उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा और शक्ति है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी सेवा
और प्रेम में ही है।
:नवीन सिंह राणा