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कब जागा था लहू एक बार फिर राणा लोगों का?

राणा थारू समाज की “स्वाभिमान की हुंकार”: एक जन आंदोलन: खंड 1 लेखक नवीन सिंह राणा  हमारा राणा समाज एक मजबूत और गौरवशाली इतिहास रखता है और स्वं को मेवाड़ और चित्तौड़ के वीर सपूतों और योद्धाओं को अपना पूर्वज मानता आया है। जिसके कई प्रमाण आज भी धरोहर के रूप में राणा समाज के घरों में सुरक्षित है। जिनकी अमूल्य परंपराएं और संस्कृति आज भी उनसे मेल खाती हैं जिन्हें वे वर्षो पहले मेवाड़ और चित्तौड़ की भूमि में छोड़ आए थे।      इतिहास गवाह है कि वर्षो पहले  राणा समाज के लोग विभिन्न कारणों से पलायन कर तराई भावर की भूमि पर निवास कर रहे हैं जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से सींचा संवारा और रहने लायक बनाया। और फिर धीरे धीरे विभिन्न समाज के लोग इस भूमि पर आकर बसने लगे। और उन्होंने इन लोगों के बारे में टटोलना शुरू किया और जानना शुरू किया। सही और सटीक जानकारी इस समाज के बारे में वर्णित न होने के कारण जिसके मन में जो आया अथवा जिसने जैसा बताया उसी को आधार मानते हुए इस समाज के बारे में मनगढ़ंत जानकारियां पुस्तकों में लिख दी गई, और जिन्होंने जैसा इस समाज के लोगों के बारे म...

"नशा " नाश का द्योतक: चिंतन

' नशा' नाश का द्योतक: चिंतन लेखक श्री घनश्याम सिंह राणा अध्यापक ( हिंदी) राजकीय इंटर कॉलेज ओधली सितागंज संपादन कार्य: श्री नवीन सिंह राणा                    श्री सुरजीत सिंह राणा          इस संसार में यह कहा जाता रहा है कि चौरासी लाख योनियों को पार कर मानव रूपी शरीर मिलता है । इस चराचर जगत में जन्म मृत्यु का सतत प्रवाहवान चक्र यह द्योतित करता है कि मानव नशा रूपी बंधन में जकड़ता जा रहा है, विशेषकर एक ऐसा युवा- वर्ग जो कि एक समृद्ध समाज के निर्माता के रूप में माना जाता है।                लेकिन आज का बहुत बड़ा युवा-वर्ग नशा( मदिरा आदि) रूपी चक्रव्यूह में फंसता चला जा रहा है जो कि हमारे समाज के लिए एक चुनौती बन गया है।" यह एक गंभीर चिंता" का विषय है। ऐसे में हम एक अच्छे एवं समृद्ध समाज की कल्पना नहीं कर सकते। नशे की अनेक प्रजातियां हैं जैसे- शराब, गांजा ,अफीम, स्मैक तथा जुआ (द्यूत क्रीड़ा ) । इन नशीले व्यसनों से परिवार कुंठित एवं कुप्रभावित होता जा जाता है, जिसका असर हमें समाज ...

आज युद्ध के मैदान में अर्जून...... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

आज युद्ध के मैदान में अर्जुन, क्यों धनुष नहीं उठाता है! क्या कायर है या भय कैसा, आगे क्यों नहीं कदम बड़ाता है।  इतिहास कहेगा तुझको बुजदिल, अब काहे घबराता है। गीता का सार समझ, वो पल आज  फिर दोहराता है। खड़ी सामने है चुनौती, अब काहे को नीचे अस्त्र रखे। तुझमें है वो दम मानता मै, अब काहे नीचे शस्त्र पड़े। भले नहीं है यह महा भारत, पर उससे भी है कम नहीं। भले नहीं है गीता का वचन, क्या यह दायित्व है सही नहीं। जिसके  कदमों में चलकर, आगे अब नया इतिहास रचेगा। बैठ गया अगर निर्बल बनकर, समझ ले तुझको क्या इतिहास कहेगा। समझ ले तुझको क्या इतिहास कहेगा। 🙏🏿🙏🏿नवीन सिंह राणा द्वारा रचित राणा थारू युवा जागृति समिति आप सभी पाठकों का हार्दिक स्वागत अभिनंदन करती है। आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आयेगी।

अर्जुन भी भागा........ पुष्पा राणा द्वारा रचित

नवीन सिंह राणा द्वारा संपादित  श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा रचित बेहतरीन कविता  अर्जुन भी रण से भागा था। विवेक न तब तक जागा था ।। वह देख स्वजन घबराया था। न कृष्ण ने जब समझाया था। हे पार्थ उठो तुम युद्ध करो। स्वजन का न शोक करो।। तुम धर्म का आलोक भरो। हे कौंतेय अपना कर्म करो।। धरा से अधर्म को आलोप करो। अर्जुन नहीं व्यर्थ विलाप करो।। तुम बढ़कर आगे हुंकार भरो। अन्याय का अभी प्रतिकार करो।। जगत में कर्म ही प्रधान है। धर्म कर रहा आह्वान है।। रण तो पहले ही वियावान है। कर्महीन कभी न हुए महान है। इंशा जब कर्तव्य निभायेगा। इतिहास स्वयं रच जायेगा।। कोई कृष्ण तो आगे आयेगा। अर्जुन को राह दिखायेगा।। हर नर में अर्जुन बैठा है।  कृष्ण रमा है अन्तस में ।। घूंघट के पट खोल जरा। देखो तो अपने मन में।।   पुष्पा राणाराणा  थारू युवा जागृति समिति आप सभी पाठकों का हार्दिक स्वागत अभिनंदन करती है। आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आयेगी।

बदल रहे हैं अच्छे की....... By जेपी राणा

नवीन सिंह राणा द्वारा संपादित  जय प्रकाश सिंह राणा द्वारा रचित  बदल रहें है अच्छे की उम्मीद में, खो ना जाना तुम भी कहीं भीड़ में। नियत और इरादा साफ रखना, किया जो सबसे वादा ,याद रखना। ना रखना पर्दे में कुछ ना,                   ओझल होना तुम भविष्य रख दिया है हाथ में,              तुम्हारे ना समझना इसे खिलौना तुम। इक नई ऊंचाई देना,               इक नया मुकाम बनाना तुम। दुनिया की चकाचौँध में ,                  अपनों को भूल ना जाना तुम। मार्गदर्शक है तू तो ,               हम भी कारवां हैं। जहाँ पड़ेंगे तेरे कदम,                  तो हम भी वहाँ हैं। बड़ी परेशानियां झेली हैं,                      बड़े दर्द में हैं। जैसा चल रहा है,           वैसे तो भविष्य गर्त में है। ...