"नशा " नाश का द्योतक: चिंतन
' नशा' नाश का द्योतक: चिंतन
लेखक
श्री घनश्याम सिंह राणा
अध्यापक ( हिंदी)
राजकीय इंटर कॉलेज ओधली
सितागंज
संपादन कार्य: श्री नवीन सिंह राणा
श्री सुरजीत सिंह राणा
इस संसार में यह कहा जाता रहा है कि चौरासी लाख योनियों को पार कर मानव रूपी शरीर मिलता है । इस चराचर जगत में जन्म मृत्यु का सतत प्रवाहवान चक्र यह द्योतित करता है कि मानव नशा रूपी बंधन में जकड़ता जा रहा है, विशेषकर एक ऐसा युवा- वर्ग जो कि एक समृद्ध समाज के निर्माता के रूप में माना जाता है।
लेकिन आज का बहुत बड़ा युवा-वर्ग नशा( मदिरा आदि) रूपी चक्रव्यूह में फंसता चला जा रहा है जो कि हमारे समाज के लिए एक चुनौती बन गया है।" यह एक गंभीर चिंता" का विषय है। ऐसे में हम एक अच्छे एवं समृद्ध समाज की कल्पना नहीं कर सकते। नशे की अनेक प्रजातियां हैं जैसे- शराब, गांजा ,अफीम, स्मैक तथा जुआ (द्यूत क्रीड़ा ) । इन नशीले व्यसनों से परिवार कुंठित एवं कुप्रभावित होता जा जाता है, जिसका असर हमें समाज की आर्थिक ,शैक्षणिक, रोजगार के क्षेत्र में देखने को मिल रहा है।
हमारे ऋषि-मुनियों व पूर्वजों ने जो हमें पारिवारिक जीवन शैली सामाजिक ,सांस्कृतिक मान्यताओं को निरूपित करने और सुचारू रूप से संचालित करने में बाधक बताया है, वे है मदिरा पान अर्थात नशा ,धूम्रपान या मद्यपान ,यह सात प्रकार के होते हैं जिनके सेवन करने से मानवता की परिभाषा ही समाप्त हो जाती है।
वेदों में भी कहा गया है कि
द्यूतमांससुरावेश्यारवेट चौर्यपरांग:।
महापाप।नि सप्तऐनि व्यसनानि त्यजेद बुध: ।।
अर्थात जुआ,मांस ,मदिरा ,वेश्या ,शिकार, चोरी और परा स्त्री गमन यह सात महापाप रूपी व्यसन हैं । बुद्धिमान व्यक्ति को इन सब का त्याग कर देना चाहिए ,क्योंकि इनसे कुमार्ग प्रवृत्त होता है जो कि कुमार्ग भी एक व्यसन है।
और हम धीजन होकर समीचीन मार्ग की अवहेलना कर कुत्सित मार्ग में प्रवत होते जा रहे हैं और अपने मानवीय जीवन मूल्य को भूलते जा रहे हैं। हमारे बुजुर्ग माता- पिता तथा समाज कुछ चंद लोग पिछले कई वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे हैं कि हमारा समाज संस्कार वान हो,लेकिन नशीले पदार्थों ने हमारे समाज में इतनी लंबी जड़े फैला दी हैं कि हम अपने जीवन का आधार ही भूल गए हैं ।
‘ नशा' नाश का मूल है जो कि मनुष्य की संवेदनशील आत्मा पर हावी हो जाता है ,जिससे मन के शुभा- अशुभ भाव सहज ही प्रतिबिंबित हो जाते हैं ,और दूषित भावनाएं आत्मा को कलुषित कर देती हैं। इस प्रकार शराब आदि का व्यसन करने वाले व्यक्ति का मन जितना कलुषित होता है ,उसकी ऊर्ध्वगामी शक्ति निरंतर क्षीण होती जाती है। और मनुष्य का कर्म कषाय से आवृत्त गुरूतर आत्मा अधोगामिनी होकर मनुष्य ' नरक यात्रा ' का कारण बन जाती है ,फलस्वरूप मनुष्य इस अंधकार से कभी नहीं निकल पाता है ।
आज यदि हम और हमारा राणा समाज विशेषकर युवा वर्ग सभी दुर्व्यसनो से मुक्त हो जाए तो हमारे समाज की दशा, दिशा संभवत बदल सकती है और यदि हम अब नहीं जागे तो वह दिन दूर नहीं है कि हमारा जीवन यापन कष्ट से भरा हो जायेगा ,और हम महाराणा प्रताप के वंशज कहलाने लायक नहीं रहेंगे । क्योंकि आज का युवा वर्ग नशे के जाल में उलझता जा रहा है और अपने परिवार, समाज से मोह भंग करता हुआ नजर आ रहा है । जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर, बीमारी, बेरोजगारी जैसी कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिससे अपराधिक घटनाएं, चोरी ,हिंसा आदि का भय बना रहता है ।
"आओ हम सब मिलकर ' नशा मुक्ति ' की ओर एक नजर डालें और संकल्प लें कि हम एक ' नशा' मुक्त समाज का निर्माण करें, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी प्रेरित होकर समाज को नई चेतना अर्पित करें ! और अपने पुरुषार्थ से समाज का नेतृत्व करने की क्षमता रहे रख सके।
जय हिंद जय भारत
लेखक
श्री घनश्याम सिंह राणा
अध्यापक हिंदी
राजकीय इंटर कॉलेज औदली सितारगंज,
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड
नोट: श्री घनश्याम सिंह राणा जी पिछले कई वर्षों से राणा थारू युवा जागृति समिति में अपनी अमूल्य सेवा दे रहे हैं, उन्हें समाज की बहुत चिंता है इसलिए समय समय पर अपने अनुभवों के आधार पर चिंतन शील लेखों से समाज का मार्गदर्शन करते रहते हैं।
धन्यवाद
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नवीन सिंह राणा
संपादन कार्य
राणाथारू युवा जागृति समिति आप सभी पाठकों का हार्दिक स्वागत अभिनंदन करती है। आशा है आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आयेगी।