संदेश

मार्च 30, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चैत्र की चराई: राणा थारू समाज का वैभव

चैत्र मास भारतीय नववर्ष के सुभागमन पर राणाओं द्वारा "चैत्र चराई उत्सव" के रुप मे प्रकृति का अभिनन्दन चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से भारत वर्ष के महान राजा विक्रमादित्य के द्वारा प्रचलित विक्रमी संवत के अनुसार नवसंवत्सर का प्रारम्भ हो जाता है। भारतीय मनीषियों की सटीक गणितीय गणनाओं के आधार पर ज्योतिष शास्त्र का प्रतिपादन अकाट्य सत्य को दर्शाता है। सनातनी परम्परा पूर्णतः खगोलीय एवं प्राकृतिक परिवर्तन एवं विनियमों का पूर्णतया अनुसरण है। वेग गति से सनासना कर चलती हवाएं मानों ब्रमाणड से सन्देश लेकर धरा पर दसों दिशाओं में ज़ोर ज़ोर से उद्घोष कर रही हों-पुराना वक्त बीत चला और आगे बहुत कुछ नया होने बाला है। वृक्ष यकायक ही अपने पुराने पत्तों को यथाशीघ्र परित्याग कर नर्म और मुलायम कोपलों से सजने लगते हैं।ठंड की मार से सुषुप्त पड़ी लताएं जो सूखकर मृतप्राय डंठल में परिवर्तित हो चुकी थीं,वो भी संदेशा पाकर अपनी पूरी शक्ति से जी उठती हैं और देखते ही देखते कोमल पत्ते, पुष्पों से उसका भी दामन भरकर खिलखिला उठता है। बसन्त के आगमन मात्र से प्रकृति रंग विरंगे नवपरिधानों से जब संवर उठती है तो मनुष्...