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क्यों जानना जरूरी है मंच के बारे में यह भी?

राणा थारू युवा मंच संबद्ध राणा थारू युवा जागृति समिति के बारे मे कुछ मेरे अनुभव आप सभी के साथ शेयर करने का प्रयास कर रहा हूं आशा है आप सभी को कुछ जानकारी प्राप्त होगी। राणा थारू युवा मंच प्रारंभ से अब तक  Written and edited by Naveen Singh Rana  मुझे वह दिन याद है । शायद उस समय मुझे यह पता नहीं था कि जिस यात्रा पर मै निकलने वाला हूं वह यात्रा मुझे यहां तक ले आयेगी। बहुत सारे उतार चड़ाव इस यात्रा में आए।, बहुत कुछ पाने की लालसा में कभी कभी बहुत कुछ खोना भी पड़ जाता है ऐसा मैंने पहले कभी सोचा नहीं था। मै अन्य लोगों की तरह ही व्यस्त था अपनी नौकरी और घर परिवार की उधेड़ बुन में। खुश था क्योंकि उस समय मेरी खुशी का पैमाना सिर्फ मेरा परिवार था । मुझे न तो समाज की चिंता थी न किसी संघठन की। न किसी सदस्य के रूष्ट होने की चितां थी और न किसी संघठन को मजबूत बनाकर उसे मुकाम तक ले जाने की चिंता। न समिति द्वारा संचालित बायलॉज और संचालित कार्यक्रमों की चिंता थी और न हर महीने समिति को मजबूती देने हेतु मासिक सहयोग देने की।         लेकिन एक दिन, जेठ माह की तेज तर्रार लू और तपती...

कुछ भूली बिसरी यादें: संस्मरण खंड 1(नवीन सिंह राणा द्वारा लिखित)

नवीन सिंह राणा द्वारा लिखित संस्मरण  मेरे दादा जी की भूली बिसरी यादें  पूजनीय दादा जी भले ही आज इस दुनिया में नहीं है लेकिन आज भी हमारी स्मृतियों में हैं जीवन में हैं और हमारे परिवार के सदस्यों के रग रग में बसे हैं। उनके द्वारा जो भी सीख हमें बचपन से मिली, आज तक और जीवन पर्यन्त हमारे जीवन में मार्गदर्शिका की तरह राह दिखाती रहेगी।     हमारे दादा जी का जन्म स्वतंत्रता से पूर्व लगभग 1930 के दशक में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिताजी गांव नोगवनाथ बिसाउटा पट्टी के पधान थे और गांव के सभी कामकाज उन्हीं के द्वारा देखे जाते थे। उनका नाम था श्री कड़े सिंह, बहुत ही कठोर मिजाज के थे लेकिन न्याय देखो तो साक्षात  न्याय के देवता। उस समय पधानो को गांव समाज में बहुत ही इज्जत दी जाती थी और उनके बहुत सारे अधिकार भी थे, वे ही गांव समाज की सुरकचा, देखभाल, भूमि के मुखिया हुआ करते थे।यदि कुछ ग़लत होता था तो उसका न्याय वे ही करते थे, यदि गांव में कोई नया परिवार आकर बसता था तो उसको रहने, खाने और जमीन की व्यवस्था पधन ही कराते थे और जब कोई परिवार किसी कारण से गांव छोड़कर जाता था तब उ...

अयोध्या में राम: संस्मरण श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा लिखित

संस्मरण -अयोध्या में राम आजकल  अयोध्या में भगवान राम के निर्माणाधीन  भव्य एवं दिव्य मंदिर की चर्चा ही चारों ओर हो रही है । सभी ने अपनी तरफ से कविता ,कहानी ,लेख इत्यादि लिख करके अपने उद्गार व्यक्त किए हैं । कोई भगवान की सुंदरता की प्रशंसा कर रहा है तो कोई उनके दिव्य रूप की प्रशंसा कर रहा है तो कोई उनके भव्य मंदिर की प्रशंसा कर रहा है ।लोगों के मन में दिन प्रतिदिन उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है ।हर किसी का बस एक ही सपना ,एक ही  अरमान है कि वह उसे दिव्य मंदिर और उसमें प्राण प्रतिष्ठित विराजमान राम लला की छवि को एक बार नजदीक से अपने नेत्रों से निहार सके और अपने मन में नैनाभिराम छवि को हमेशा हमेशा के लिए विराजमान कर सके। बरबस लेखनी चल गयी.. बड़ भाग हमारे हैं। लल्ला पुनः पधारें हैं। डगमग जब तोहरे डग डोलें। छुनक छुनक पैजनियां बोलें।। गरवा का हार हय हाले डोले। भेद जिया का तहुं नही खोले। धरनी पे पहलो पग धारे हैं..... मैंने भी उत्साह अतिरेक में भगवान के बाल स्वरूप का वर्णन करने का प्रयास किया।  दूसरी तरफ कभी उनको जगद्पति तो कभी अपना प्राणपति मानकर लिखा ...। आवेंगे घर मोरे राम पिय...