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"कालू बर्धिया(खलु बिरतिया):आस्था और बलिदान की अमर गाथा" भाग 1

" कालू बर्धिया (खलु बिरतिया): आस्था और बलिदान की अमर गाथा"           (नवीन सिंह राणा द्वारा अपने बड़े बुजुर्गो से सुनी हुई किवदंतियों के अनुसार वर्णित )          कालू बर्धिया(खलु बिरतिया), एक ऐसा नाम जो आज श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन चुका है, अपनी कहानी में एक गहरा संवेदनशीलता और प्रकृति का सौंदर्य समेटे हुए है। उनकी कहानी का प्रारंभ होता है गुलु भावर नामक स्थान पर बसा एक छोटे से गांव से, जो वर्तमान में बनबसा से 4-5 किलोमीटर दूर जगबूदा नदी के किनारे स्थित था । जगबूडा नदी पहाड़ों से होती हुई गांव के पश्चिम दिशा में उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा में बहा करता था जिसमे आम मौसम में बहुत ही धीरे धीरे जल बहा करता था परंतु बरसात के मौसम में जगबूड़ा नदी में उछलती पानी की तरंगे बड़ी भयबना लगती थी।उस गांव के पूरब दिशा में हुडडी नदी निरंतर कल कल की ध्वनि से सबका मन मंत्र  मुग्ध कर देती थी , उस नदी पर बने घाट पर गांव की मां बहिनें, बहु, बेटीयां पानी भरने जाया करती थी और अपने घर की जरूरतें पूरा किया करती थीं , घर के पालतू पशुओं की भी इसी हुडडी नदी ...

""जन्म भूमि की माटी ""कविता

**जन्म भूमि की माटी** नवीन सिंह राणा द्वारा रचित  जन्म भूमि की माटी,  वह सोंधी-सोंधी खुशबू। बचपन की वो यादें,  मन में अब भी हैं जीवंत हूबहू।। गाँव की वो गलियाँ,  खेले और बड़े यहीं, सपनों की दुनिया ,  सजती बसती थी वहीं।। सफलता के शिखर पर,  जब पहुँच जाते यदा, पुरानी बचपन की यादें,  दिल में बसी रही सदा।। वो बचपन के साथी,  मासूम हंसी के पल। मिट्टी के वो घर,  दिल में बसते हर पल।। भूले तो कैसे भूले, उस माटी का कर्ज, जीवन की नींव,  वहीं से होती अर्ज।। अपने आधार को, हमेशा रखना याद, उनके भले के लिए, करना हर एक प्रयास। गाँव की सुबहें,  और वो ढलती शाम। खेतों की हरियाली,  और बचपन के नाम।। उन रिश्तों की गर्माहट,  वो अपनेपन का भाव। जीवन के सफर में,  बना रहता प्रभाव।। चाहे जितनी सफलता,  जीवन में मिले। जन्म भूमि की सेवा,  जब तक प्राण दिल से करे।। अपने समाज के विकास में,  अपना योगदान देते रहे। उनके भले के लिए,  हर पल तत्पर रहे।। जन्म भूमि की माटी,   है जीवन का सार। उसकी सेवा करना, है हमारा कर्तव्य अपार।। ...

अयोध्या में राम: संस्मरण श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा लिखित

संस्मरण -अयोध्या में राम आजकल  अयोध्या में भगवान राम के निर्माणाधीन  भव्य एवं दिव्य मंदिर की चर्चा ही चारों ओर हो रही है । सभी ने अपनी तरफ से कविता ,कहानी ,लेख इत्यादि लिख करके अपने उद्गार व्यक्त किए हैं । कोई भगवान की सुंदरता की प्रशंसा कर रहा है तो कोई उनके दिव्य रूप की प्रशंसा कर रहा है तो कोई उनके भव्य मंदिर की प्रशंसा कर रहा है ।लोगों के मन में दिन प्रतिदिन उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है ।हर किसी का बस एक ही सपना ,एक ही  अरमान है कि वह उसे दिव्य मंदिर और उसमें प्राण प्रतिष्ठित विराजमान राम लला की छवि को एक बार नजदीक से अपने नेत्रों से निहार सके और अपने मन में नैनाभिराम छवि को हमेशा हमेशा के लिए विराजमान कर सके। बरबस लेखनी चल गयी.. बड़ भाग हमारे हैं। लल्ला पुनः पधारें हैं। डगमग जब तोहरे डग डोलें। छुनक छुनक पैजनियां बोलें।। गरवा का हार हय हाले डोले। भेद जिया का तहुं नही खोले। धरनी पे पहलो पग धारे हैं..... मैंने भी उत्साह अतिरेक में भगवान के बाल स्वरूप का वर्णन करने का प्रयास किया।  दूसरी तरफ कभी उनको जगद्पति तो कभी अपना प्राणपति मानकर लिखा ...। आवेंगे घर मोरे राम पिय...

राणा थारू युवा मंच का संक्षिप्त परिचय व इतिहास

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 राणा थारू युवा मंच का संक्षिप्त परिचय एवं इतिहास  राणा थारू युवा मंच आज के समय में थारू समाज के साथ-साथ अन्य समाजों में अपने नाम का मोहताज नहीं आज हर कोई यह जानता है कि राणा थारू युवा मंच थारू समाज का एक उभरता हुआ ऐसा संगठन है जो थारू समाज में बदलाव के लिए प्रयासरत है लेकिन आगे बढ़ने से पहले यह जानना बहुत ही जरूरी है कि आखिर राणा थारु युवा मंच की आवश्यकता क्यों पड़ी । आखिर क्यों राणा थारु युवा मंच समाज में उभर कर सामने आया कि आज हर कोई राणा थारू युवा जागृति समिति की ओर आशा से देखता है कि यह समाज में वैचारिक क्रांति के द्वारा समाज को एक नई दिशा की ओर ले जाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देगा । राणा थारू युवा मंच आज से लगभग सात आठ वर्ष पहले जब विचारों का प्रादुर्भाव हुआ, विचारों का विचारों से मिलन हुआ तो उन विचारों से ही राणा थारु युवा मंच का उद्भव हुआ।  22 सितंबर 2017 का वैध वह दिन जिस दिन राणा थारू युवा मंच के विचारों का मिलन हुआ।घंटों समाज हेतु चिंतन के उपरांत यहीं से राणा थारु युवा मंच हेतु प्रयास जागृत हुई। मिलकर समाज के विभिन्न संगठनों के लोगों से बातचीत...