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"कालू बर्धिया(खलु बिरतिया):आस्था और बलिदान की अमर गाथा" भाग 1

" कालू बर्धिया (खलु बिरतिया): आस्था और बलिदान की अमर गाथा"           (नवीन सिंह राणा द्वारा अपने बड़े बुजुर्गो से सुनी हुई किवदंतियों के अनुसार वर्णित )          कालू बर्धिया(खलु बिरतिया), एक ऐसा नाम जो आज श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन चुका है, अपनी कहानी में एक गहरा संवेदनशीलता और प्रकृति का सौंदर्य समेटे हुए है। उनकी कहानी का प्रारंभ होता है गुलु भावर नामक स्थान पर बसा एक छोटे से गांव से, जो वर्तमान में बनबसा से 4-5 किलोमीटर दूर जगबूदा नदी के किनारे स्थित था । जगबूडा नदी पहाड़ों से होती हुई गांव के पश्चिम दिशा में उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा में बहा करता था जिसमे आम मौसम में बहुत ही धीरे धीरे जल बहा करता था परंतु बरसात के मौसम में जगबूड़ा नदी में उछलती पानी की तरंगे बड़ी भयबना लगती थी।उस गांव के पूरब दिशा में हुडडी नदी निरंतर कल कल की ध्वनि से सबका मन मंत्र  मुग्ध कर देती थी , उस नदी पर बने घाट पर गांव की मां बहिनें, बहु, बेटीयां पानी भरने जाया करती थी और अपने घर की जरूरतें पूरा किया करती थीं , घर के पालतू पशुओं की भी इसी हुडडी नदी ...

एक मजबूत संघठन कैसे बनाएं: चिंतन

 हर समाज के लिए , उसकी व्यवस्था बनाने के लिए, उसको आगे बढ़ाने के लिए, उस समाज के अस्तिवत्व को बनाए रखने के लिए एक मजबूत संघठन की जरूरत होती है इन्ही बिदुओं पर विचार करते हुएप्रदीप कुमार चौधरी उपाध्यक्ष थारू जन जागृति सेवा संस्थान,महराजगंज जी ने कुछ अपने अनुभव व्हाट्सअप ग्रुप में शेयर किए जो मुझे पसंद आय और मैने उन्हें आपके समक्ष प्रस्तुत किया है वाकई में विचारणीय है जो इस प्रकार हैउन्हीं के शब्दों में  ""बिहार का ये " भारतीय थारू कल्याण संघ,हरना तांडव का गठन साल 1973 में संभवतः हुआ था, जब इस कल्याण ससंघ का गठन हुआ था उस समय इसने समाज के उत्थान के लिए जो उद्देश्य और एजेंडा बनाया था वो अत्यधिक चुनौतीपूर्ण था लेकिन इस संघ अपने मजबूत लक्ष्य और बुद्धिमत्ता सांगठनिक क्षमता का परिचय देते हुए सबसे प्रमुख उपलब्धि अपने को जनजाति घोषित करवाना रहा,ये उपलब्धि इन्हें रातों रात नहीं मिली बल्कि साल 1973 से संघर्ष करते हुए ये साल 2003 में प्राप्त हुए,इस संगठन कज सबसे खास बात ,दूरदर्शितापूर्ण नेतृत्व ये रहा कि इन्होंने कभी चक्का जाम, पब्लिक को परेशान करने वाली कोई आंदोलन नहीं किया।   ...

संघठित होने की आवश्यकता: चिंतन

 " जैसा कि आप सभी अवगत हैं कि राणा थारू युवा जागृति समिति समाज के सभी संगठनों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए उनसे कुछ बेहतर चीजे सीखते हुए आगे बढ़ रहा है ऐसे ही एक और बहुत ही प्रेरणा दायक लेख आप सभी के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है जिसेप्रदीप कुमार चौधरी उ पाध्यक्ष था रू जनजागृति सेवा संस्थान,महराजगंज। द्वारा लिखा गया है वाकई में बहुत ही प्रेरणादायक है जो इस प्रकार है "स मय से आगे की सोंच "      जगत में कुछ ऐसे मनीषी होते हैं जिनके दूरदर्शिता पूर्ण सोंच और PROACTIVE कार्य से जगत का कल्याण सम्भव होता है,मनीषियों की सोंच  सदैव संकीर्णता की आवरण में सीमित नहीं होता, न ही मनीषी संकीर्णता से प्रभावित होकर कार्य करता है,उसका श्रेष्ठ कार्य  " सर्वे भवन्तु सुखिनः " की अवधारणा का प्रतिनिधित्व करता है।       कोई भी समाज जब जब संकटों में घिरता है, उसके अस्तित्व पर संकट के बादल बनकर मंडराता है,उसे किसी अनजान गहरे कूप की ओर PUSH UP करने की दुष्चेतता रखता है उसे अंजाम देने की निरंतर उद्यमरत होता है तो इन बिकट परिस्थितियां विराट ब्यक्तित्व,महापुरुष पैदा ...