राणा थारू समाज में थारू लोक साहित्य के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता"
"राणा थारू समाज में थारू लोक साहित्य के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता" ✍️ नवीन सिंह राणा लोक साहित्य किसी भी समाज की आत्मा होता है। साथ ही उस समाज के अनुभवों, मान्यताओं, संघर्षों, संस्कारों और सांस्कृतिक स्मृतियों का जीवंत दस्तावेज़ होता है। राणा थारू समाज, जो कई शताब्दियों से उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में बसा एक ऐसा समुदाय है, जिसका लोक साहित्य और संस्कृति उसकी सांस्कृतिक गरिमा और आत्मपहचान का परिचायक है। लेकिन आधुनिकता और समय की तेज़ रफ्तार के बीच यह धरोहर संकट में है। ऐसे समय में थारू लोक साहित्य के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है। और इसी समस्या के समाधान पर विमर्श करने हेतु यह लेख प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि यह अनमोल धरोहर आगे भी संरक्षित रहे, और फूले फले। वर्षों से राणा थारू समाजके बुजुर्ग मौखिक रूप से विभिन्न तरह की दस्ताने, गीत,कहावतें आदि अपने आने वाली नई पीढ़ी को सुनाते रहे हैं जो लोक साहित्य न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक परंपरा द्वारा संचित ज्ञान, सामाजिक मूल्य और जीवन-दर्शन का संवा...