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अच्छा लगता है अपना .....

 अच्छा लगता है... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित  अच्छा लगता है,             अपना राणा समाज ।   अच्छी लगती हैं ,          इसकी सांस्कृतिक विरासत। ।1। ।   अच्छा लगता है ,               अपना गांव समाज ।  अच्छे लगते हैं,               इसके प्यारे रीति रिवाज ।।2। । अच्छा लगता है,               खलिहानों में स्वर्ण सा धान। अच्छे लगते हैं ,             अपने राणा भाई किसान।।3। ।  अच्छा लगता है,                      खेतों का लहलहाना। अच्छे लगते हैं,                फसलों में भोरें मडराना।।4। । अच्छा लगता है,                 होली का बजता ढोल।  अच्छे लगते हैं,                    मधुर गीतों के बोल।।5...

नारी की सहभागिता एवं सशक्तीकरण पर एक ओजस्वी कविता

 . राणा थारू युवा जागृति समिति की आजीवन सदस्य एवम वरिष्ठ प्रबंधक लखनऊ में कार्यरत श्रीमती पुष्पा राणा जी एक सम्मानित और विद्वान नारी शक्ति का प्रतीक है जिन्हें राणा समाज की परम्पराओं, संस्कृति वा इतिहास पर बहुत अधिक जानकारी है और वे बहुत ही ओजस्वी कविता भी लिखती हैं उन्हीं कविताओं के संग्रह में से एक कविता प्रस्तुत है: "नारी की सहभागिता एवं सशक्तीकरण " चलो क्षितिज के पार हमें चलना है। अंधियारों को चीर उजाले भरना है।। क्या हुआ जो घना कुहासा छाया है। जिम्मा अपने,करने को कुछ आया है।। मंजिले और हैं आसमां से आगे। कदमों के पहले निशां तू बना दे।।  तोड़कर सारे तारे आसमां से ला दे।  जमीं को ही तू आसमां बना दे।। नारी सदा से ही सबला रही है। विदुषी गार्गी और अपाला रही है।। सिद्ध कर तू फिर अबला नहीं है। वही शारदे और तू कमला वही है।। प्रेयसी तू ही मीरा तू ही राधा रही है। तुझसे ही प्रेम की मर्यादा रही है।। अर्धनारीश्वर का अंग तू आधा रही है।  सृष्टि का सम्वल सदा से रही है।। विधाता ने रचना अनूठी रची है।  शक्तियां सब निहित तुझमें की है।। तू ममता का सागर दयालु बड़ी है। वक्त आने...