ग्रामीण और नौकरीपेशा व्यक्तियों के बीच मानसिकता का टकराव: एक विस्तृत विश्लेषण"**✍️ राणा संस्कृति मंजूषा
**"ग्रामीण और नौकरीपेशा व्यक्तियों के बीच मानसिकता का टकराव: एक विस्तृत विश्लेषण"** ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा (श्रीमान महावीर सिंह राणा जी द्वारा दिया गया व्यक्तव्य और उसका विश्लेषण ) महावीर जी द्वारा दिया गया व्यक्तव्य: ""आजकल हमारे यहां क्षेत्र में यह सोच फैली है कि नौकरी वाला व्यक्ति धरातल पर काम नहीं कर रहा है गांव के व्यक्ति को यही लगता है कि जो कर रहे हैं l हम ही कर रहे हैंl हमारे द्वारा ही पूरा गांव को देखा जा रहा हैं l इसीलिए गांव का व्यक्ति नौकरी चाकरी वाले व्यक्तियों को अधिक तवज्जो नहीं देता हैl और अन्य जाति के कोई नौकरी वाले व्यक्ति होते हैं उसे ही तवज्जो देते हैं अपने वालों को तो बिल्कुल शून्य समझते हैं l थारू नौकरी वाला कोई भी कुछ भी बोलेगा तो उसे यही जवाब मिलेगा की आप अपनी नौकरी छोड़कर यहां आकर देखो तो पता चलेगा l ऐसे वाक्य मैंने आए दिन सुना है l लेकिन उस व्यक्ति को यह नहीं मालूम है कि जो लोग नौकरी कर रहे हैं वह कितने लोगों को चला रहे हैं l और कितना संघर्ष किया है उन्होंने और वे जहां नौकरी कर रहे हैं वह क्षेत्र से कितने डेवलप वाले क्षेत्र में नौकरी कर ...