वर्तमान परिपेक्ष्य में एक वार्ता: राणा संस्कृति मजूषा के साथ
वर्तमान परिपेक्ष्य में एक वार्ता: राणा संस्कृति मजूषा के साथ
संकलन कर्ता: नवीन सिंह राणा
**स्थान:** राणा संस्कृति मंजूषा ने आज आयोजित किया संवाद। स्थल कंजाबाग गाँव का मुख्य चौपाल। वृक्षों के नीचे लगी चारपाइयों पर दिल्लू सिंह, महावीर सिंह और पुष्पा राणा बैठे हैं। गाँव के कुछ और लोग पास बैठे सुन रहे हैं। सभी के मन में चिंता है कि आने वाले समय में थारू समाज किस दिशा में जा रहा है और किन मुद्दों पर काम करना जरूरी है।
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नवीन सिंह राणा: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा अयोजित इस संवाद कार्यक्रम में आप सभी को राम राम और स्वागत। आज के संवाद कार्यक्रम में उपस्थित सभी समाज चिंतक बधाई के पात्र है। श्रीमान दिल्लू जी से निवेदन है कि आज के संवाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाएं ।
**दिल्लू सिंह:** (गहरी सांस लेते हुए) "भाई, समाज को लेकर मेरी चिंता बढ़ती जा रही है। धर्मांतरण की समस्या विकराल होती जा रही है। लोग अपनी आस्था और परंपराएँ खोते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमारे त्योहारों में शिरकत करने वाले लोग घटते जा रहे हैं। जब हम अपनी पहचान को भूलते जाएंगे, तो समाज का क्या होगा?"
**महावीर सिंह:** (सिर हिलाते हुए) "तुम ठीक कह रहे हो, दिल्लूजी ।हमारी जड़ें मजबूत हैं, लेकिन इन्हें फिर से सींचने की जरूरत है। शिक्षा की कमी ने हमें कमजोर बना दिया है। गाँव के युवाओं को अपने इतिहास और संस्कृति का पता ही नहीं है। जब तक हम उन्हें सही दिशा नहीं दिखाएंगे, ये तो बाहरी प्रभावों के शिकार होते रहेंगे।"
**पुष्पा राणा:** (ध्यान से सुनते हुए) "धर्मांतरण की चिंता तो जायज़ है, लेकिन एक और बड़ी समस्या है जिस पर ध्यान देना जरूरी है – भूमि का संरक्षण। लोग अपनी ज़मीनें बेचकर शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। ये स्थिति आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा बन जाएगी। अगर हमारी जमीनें नहीं बची, तो हम अपनी पहचान कैसे बचाएंगे?"
**दिल्लू सिंह:** (गंभीर स्वर में) "बात सही है। हमारी भूमि हमारी ताकत है, और ये ताकत हमें हर हाल में बनाए रखनी होगी। इसके लिए हमें स्वावलंबन की ओर बढ़ना होगा। जैविक खेती, हस्तशिल्प, और पर्यटन आधारित रोजगार जैसे उपायों पर काम करना होगा, ताकि लोगों को पलायन की जरूरत न पड़े।"
**महावीर सिंह:** (सहमत होते हुए) "बिलकुल। और इसके साथ ही हमें शिक्षा पर भी ध्यान देना होगा। जब तक हम अपने बच्चों को आधुनिक और पारंपरिक शिक्षा दोनों नहीं देंगे, तब तक वे अपने समाज की महत्ता को नहीं समझेंगे। गाँवों में ऐसे शिक्षण केंद्र बनाने होंगे, जहाँ हमारी संस्कृति को शिक्षा के माध्यम से सहेजा जाए।"
**पुष्पा राणा:** (मुस्कुराते हुए) "मैं देख सकती हूँ कि युवाओं के लिए यह कितनी प्रेरणादायक होगी। हम थारू संस्कृति की कहानियाँ, लोकगीत, और पारंपरिक खेलों को शिक्षा में शामिल कर सकते हैं। इससे बच्चों को न केवल ज्ञान मिलेगा, बल्कि वे अपनी संस्कृति से गहराई से जुड़ सकेंगे।"
**दिल्लू सिंह:** (उत्साहित होकर) "ये शिक्षा ही तो हमारे समाज की रीढ़ है। और हमें केवल बच्चों को नहीं, बल्कि बड़े-बुजुर्गों को भी जागरूक करना होगा। समाज में संगठन की ताकत जरूरी है। जब तक हम संगठित नहीं होंगे, ये बाहरी प्रभाव हमें अंदर से खोखला कर देंगे।"
**महावीर सिंह:** "ठीक कहा, दिल्लू। अब हमें नए सिरे से संगठन की बात करनी होगी। हमारे संगठन में युवाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी। नए और पुराने नेतृत्व के बीच एक संवाद स्थापित करना होगा। पुराने बुजुर्गों का अनुभव और युवाओं का उत्साह – ये मिलकर समाज को नई दिशा दे सकते हैं।"
**पुष्पा राणा:** (हौसला बढ़ाते हुए) "सिर्फ संगठन ही नहीं, हमें अपने त्योहारों, मेलों और परंपराओं को भी फिर से जीवित करना होगा। गाँव-गाँव में उत्सवों का आयोजन हो, जहाँ लोग अपनी जड़ों से जुड़ सकें। और इसके साथ, हमें हमारे धर्म और पूजा पद्धति को भी सशक्त करना होगा।"
**दिल्लू सिंह:** (गहरी आवाज में) "धर्म हमारे समाज का आधार है। अगर हम अपनी पूजा-पद्धति को फिर से अपनाएंगे और धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ाएंगे, तो हमारा समाज धर्मांतरण जैसी समस्याओं से निपटने में सक्षम हो जाएगा। इसके लिए गाँव-गाँव में धार्मिक जागरूकता शिविर लगाने की जरूरत है।"
**महावीर सिंह:** (आगे बढ़ते हुए) "धार्मिक जागरूकता तो ठीक है, पर साथ ही हमें अपनी भूमि और आजीविका के संरक्षण की ओर भी देखना होगा। गाँव में हर व्यक्ति को अपनी जमीन की महत्ता समझनी होगी। स्वावलंबन के माध्यम से हम अपनी पहचान और अस्तित्व दोनों को बचा सकते हैं।"
**पुष्पा राणा:** "हां, और इसके लिए सरकारी योजनाओं का सही तरीके से उपयोग करना भी जरूरी है। भूमि संरक्षण के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा। अगर हम एकजुट होकर ये सब करेंगे, तो सफलता जरूर मिलेगी।"
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(सभी एक पल के लिए चुप हो जाते हैं। पेड़ों से गिरती पत्तियों की सरसराहट और दूर कहीं से आती पक्षियों की आवाज वातावरण में गूंज रही है।)
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**दिल्लू सिंह:** (सोचते हुए) "आखिर में, हमारी पहचान को बनाए रखने के लिए हमें एक नई शुरुआत करनी होगी। हमें अपनी संस्कृति, धर्म, और भूमि को बचाने के लिए एकजुट होना होगा। ये चुनौतियाँ बड़ी हैं, लेकिन हमारी एकता इन्हें हल करने में सक्षम है।"
**महावीर सिंह:** (मुस्कुराते हुए) "हम सबको मिलकर कदम बढ़ाना होगा। और इस बार, ये कदम मजबूती से, जागरूकता के साथ और संगठित होकर उठाने होंगे।"
**पुष्पा राणा:** (आशावादी स्वर में) "और तभी हमारा समाज फिर से उन्नति करेगा – एक ऐसा समाज जो सांस्कृतिक, प्राकृतिक, और धार्मिक सौंदर्य में समृद्ध होगा, और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनेगा।"
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(सभी एक-दूसरे की ओर आशा भरी नजरों से देखते हैं। एक नई ऊर्जा का संचार उनके बीच महसूस हो रहा है।)
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**महावीर सिंह:** "चलो, इस नई यात्रा की शुरुआत करें। हमारे पास भविष्य बनाने का सुनहरा मौका है।"
(सबकी आँखों में एक नई चमक है – एक बेहतर भविष्य की ओर एकता और आशा के साथ कदम बढ़ाने की।)