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मां की परिभाषा

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श्रीमती पुष्पा राणा  जी द्वारा रचित रचना Published by Naveen Singh Rana  मां की परिभाषा मां तो बस मां है।   उसकी परिभाषा कहां है।। बच्चे की वो जां है।      वह उसका पूर्ण जहां है।। वो मन्त्रों में ओंकार ।      श्रृष्टि को देती आकार ।। धरा पर धरती का आधार।       होती व्यक्त विविध प्रकार।।   शब्द नहीं मां के गुण गाऊं।      श्रद्धा के बस फूल चढ़ाऊं।। याद कर "मां" अश्रु बहाऊं।       कैसे अपने भाव दिखाऊं।। पर तू तो "मां" है ना।     हर भाव समझती है ना।।  मुझे याद आंचल में छिपना।    हौले से मेरे गाल थपकना।। रो रो कर वो पैर पटकना।      गोद में चढ़ते ही मुसकाना।। और वो तेरा पुचकाना।      उंगली पकड़ फिर राह दिखाना।। कुछ भी भूली नहीं मैं मां।      कैसे कहूं फिर तू आ।। आकर मेरी रुह में समा।     आखिर मैं जिस्म हूं तेरा।।  मिल गयी है तू नील गगन में।        खिल रही है तू पुष्प चमन में।। ...