थारू समाज में तीज पर्व: परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर"
"थारू समाज में तीज पर्व: परंपरा, उल्लास और सांस्कृतिक धरोहर" By Naveen Singh Rana तीज का पर्व थारू समाज में प्राचीन समय से उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहा है। पुराने समय में तीज की बाजार का विशेष महत्व था, जहां सोन पापड़ी, लच्छे और नाशपाती जैसे फलों और मिठाइयों का भरपूर आनंद लिया जाता था। हालांकि, आजकल तीज मनाने के तरीके में बदलाव आया है, लेकिन इसका उत्साह और उल्लास वैसा ही बना हुआ है। तीज पर्व की एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब कोई बालक जन्म लेता है, तो बेमाइया देवियों का चित्र बनाया जाता है, जिन्हें हमारी मां के रूप में पूजा जाता है। सावन महीने में बहनें अपने भाइयों और भतीजों के लिए लंबी उम्र की कामना करती हुई तीज का त्यौहार मनाती हैं, खासकर वे भाई , भतीजे जो दूर दराज में काम करने जाते हैं। इन बहनों का स्नेह और ममता गुलगुला और पूरी जलधारा में प्रवाहित कर प्रकट की जाती है और गंगा मां से उनके अच्छे होने की कामना की जाती है। समाज में इस सम्बन्ध में कई लोककथाये कही जाती हैं उन्ही में से एक लोक लोककथा कही जाती है कि एक बार की बात है, दो बहनें वे और मईया गंग...