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"कालू बर्धिया(खलु बिरतिया):आस्था और बलिदान की अमर गाथा" भाग 1

" कालू बर्धिया (खलु बिरतिया): आस्था और बलिदान की अमर गाथा"           (नवीन सिंह राणा द्वारा अपने बड़े बुजुर्गो से सुनी हुई किवदंतियों के अनुसार वर्णित )          कालू बर्धिया(खलु बिरतिया), एक ऐसा नाम जो आज श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन चुका है, अपनी कहानी में एक गहरा संवेदनशीलता और प्रकृति का सौंदर्य समेटे हुए है। उनकी कहानी का प्रारंभ होता है गुलु भावर नामक स्थान पर बसा एक छोटे से गांव से, जो वर्तमान में बनबसा से 4-5 किलोमीटर दूर जगबूदा नदी के किनारे स्थित था । जगबूडा नदी पहाड़ों से होती हुई गांव के पश्चिम दिशा में उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा में बहा करता था जिसमे आम मौसम में बहुत ही धीरे धीरे जल बहा करता था परंतु बरसात के मौसम में जगबूड़ा नदी में उछलती पानी की तरंगे बड़ी भयबना लगती थी।उस गांव के पूरब दिशा में हुडडी नदी निरंतर कल कल की ध्वनि से सबका मन मंत्र  मुग्ध कर देती थी , उस नदी पर बने घाट पर गांव की मां बहिनें, बहु, बेटीयां पानी भरने जाया करती थी और अपने घर की जरूरतें पूरा किया करती थीं , घर के पालतू पशुओं की भी इसी हुडडी नदी ...

मेरा परिचय मेरा इतिहास,:तीन भयावह जौहर और विस्थापन की व्यथा

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Published by Naveen Singh Rana  मेरा परिचय मेरा इतिहास (तीन भयावह जौहर और विस्थापन की व्यथा) श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा रचित                     ______****_______              मैं वही हृदय में जिसके ।                  घनीभूत पीड़ा है ।।             सहस्त्र घाव है हल्दीघाटी के ।                  छलनी जिसका सीना है।।              कश्यप गोत्री सूर्यवंश है ।                  मां ने यही बताया था ।।              मनु शतरूपा ने मिलकर ।                    सृष्टि को पुनः रचाया था।।               दादा तेरे नृप दिलीप ने।         ...

ख्वाहिश नही मुझे....

     प्रिय पाठकों आज आप सभी के समक्ष कुछ ऐसी चंद लाइनें प्रस्तुत कर रहा हूं जो। मशहूर शख्स द्वारा रचित ऐसी पंक्तियां हैं जो इन्हे पढ़ता है वो उन्हीं में सराबोर सा प्रतीत होता है। हर किसी से जुड़ी हुई हैं ये पंक्तियां। धन्य हैं महामहिम प्रेम चंद जी  _ख्वाहिश नहीं मुझे_ _मशहूर होने की,         _आप मुझे पहचानते हो_         _बस इतना ही काफी है._ _अच्छे ने अच्छा और_ _बुरे ने बुरा जाना मुझे,_         _क्यों की जिसकी जितनी जरूरत थी_         _उसने उतना ही पहचाना मुझे._ _जिन्दगी का फलसफा भी_ _कितना अजीब है,_         _शामें कटती नहीं और_         _साल गुजरते चले जा रहें है._ _एक अजीब सी_ _दौड है ये जिन्दगी,_         _जीत जाओ तो कई_         _अपने पीछे छूट जाते हैं और_ _हार जाओ तो_ _अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं._ _बैठ जाता हूँ_ _मिट्टी पे अकसर,_         _क्योंकि मुझे अपनी_         _औकात...

बदल रहे हैं अच्छे की....... By जेपी राणा

नवीन सिंह राणा द्वारा संपादित  जय प्रकाश सिंह राणा द्वारा रचित  बदल रहें है अच्छे की उम्मीद में, खो ना जाना तुम भी कहीं भीड़ में। नियत और इरादा साफ रखना, किया जो सबसे वादा ,याद रखना। ना रखना पर्दे में कुछ ना,                   ओझल होना तुम भविष्य रख दिया है हाथ में,              तुम्हारे ना समझना इसे खिलौना तुम। इक नई ऊंचाई देना,               इक नया मुकाम बनाना तुम। दुनिया की चकाचौँध में ,                  अपनों को भूल ना जाना तुम। मार्गदर्शक है तू तो ,               हम भी कारवां हैं। जहाँ पड़ेंगे तेरे कदम,                  तो हम भी वहाँ हैं। बड़ी परेशानियां झेली हैं,                      बड़े दर्द में हैं। जैसा चल रहा है,           वैसे तो भविष्य गर्त में है। ...

राणा समाज का उपकार करें...... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

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आओ कुछ अपने राणा समाज  का भी उपकार करें..........  "नवीन सिंह राणा"द्वारा रचित  आओ कुछ अपने राणा समाज  का भी उपकार करें। जिसने पाला, इतना बड़ा किया, जिसने पढ़ाया, पैरों पर खड़ा किया, जिसने दी, प्यारी  संस्कृति,भाषा बोली, आगे बढ़ने को जिसने तैयार किया, आओ इनका भी कुछ सम्मान करे। आओ कुछ अपने समाज का भी उपकार करें।।1।। यदि इसे नही दोगे नव दिशाएं  तो समाज में " नवीन" दशा कहां से आयेगी। यदि इसे नही सीचोगेअपने ज्ञान से, तो समाज "नवीन" संज्ञानता कहां से पायेगी। होकर संपन्न, चले जाओगे समाज से, तो इस समाज में सम्पन्नता कहां से छाएगी।  सकून से कुछपल चिन्तन का संचार भरें। आओ कुछ अपने राणा समाज का भी उपकार करें।।2।। पढ़ लिख कर भूल जाओगे अगर,  न मुड़कर देखोगे तुम उधर,  जिधर से चले थे कभी मुसाफिर बन कर , मंजिले मिली तो मुड़े,समाज को बेगाना समझ कर , क्यामिलेगी हृदय को संतुष्टि, अपने समाज से इतर। थोड़ा तो अब इसकी भी फिकर करें। आओ कुछ अपने राणा समाज का भी उपकार करें।।3।। जो बचा है मिलकर ,अब उसे ही सुधारे, जैसा भी है अपना इतिहास, उसे ही...