"कालू बर्धिया(खलु बिरतिया):आस्था और बलिदान की अमर गाथा" भाग 1
" कालू बर्धिया (खलु बिरतिया): आस्था और बलिदान की अमर गाथा" (नवीन सिंह राणा द्वारा अपने बड़े बुजुर्गो से सुनी हुई किवदंतियों के अनुसार वर्णित ) कालू बर्धिया(खलु बिरतिया), एक ऐसा नाम जो आज श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन चुका है, अपनी कहानी में एक गहरा संवेदनशीलता और प्रकृति का सौंदर्य समेटे हुए है। उनकी कहानी का प्रारंभ होता है गुलु भावर नामक स्थान पर बसा एक छोटे से गांव से, जो वर्तमान में बनबसा से 4-5 किलोमीटर दूर जगबूदा नदी के किनारे स्थित था । जगबूडा नदी पहाड़ों से होती हुई गांव के पश्चिम दिशा में उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा में बहा करता था जिसमे आम मौसम में बहुत ही धीरे धीरे जल बहा करता था परंतु बरसात के मौसम में जगबूड़ा नदी में उछलती पानी की तरंगे बड़ी भयबना लगती थी।उस गांव के पूरब दिशा में हुडडी नदी निरंतर कल कल की ध्वनि से सबका मन मंत्र मुग्ध कर देती थी , उस नदी पर बने घाट पर गांव की मां बहिनें, बहु, बेटीयां पानी भरने जाया करती थी और अपने घर की जरूरतें पूरा किया करती थीं , घर के पालतू पशुओं की भी इसी हुडडी नदी ...