राणा समाज का उपकार करें...... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित
आओ कुछ अपने राणा समाज
का भी उपकार करें..........
"नवीन सिंह राणा"द्वारा रचित
आओ कुछ अपने राणा समाज
का भी उपकार करें।
जिसने पाला, इतना बड़ा किया,
जिसने पढ़ाया, पैरों पर खड़ा किया,
जिसने दी, प्यारी संस्कृति,भाषा बोली,
आगे बढ़ने को जिसने तैयार किया,
आओ इनका भी कुछ सम्मान करे।
आओ कुछ अपने समाज का भी उपकार करें।।1।।
यदि इसे नही दोगे नव दिशाएं
तो समाज में " नवीन" दशा कहां से आयेगी।
यदि इसे नही सीचोगेअपने ज्ञान से,
तो समाज "नवीन" संज्ञानता कहां से पायेगी।
होकर संपन्न, चले जाओगे समाज से,
तो इस समाज में सम्पन्नता कहां से छाएगी।
सकून से कुछपल चिन्तन का संचार भरें।
आओ कुछ अपने राणा समाज का भी उपकार करें।।2।।
पढ़ लिख कर भूल जाओगे अगर,
न मुड़कर देखोगे तुम उधर,
जिधर से चले थे कभी मुसाफिर बन कर ,
मंजिले मिली तो मुड़े,समाज को बेगाना समझ कर ,
क्यामिलेगी हृदय को संतुष्टि, अपने समाज से इतर।
थोड़ा तो अब इसकी भी फिकर करें।
आओ कुछ अपने राणा समाज का भी उपकार करें।।3।।
जो बचा है मिलकर ,अब उसे ही सुधारे,
जैसा भी है अपना इतिहास, उसे ही संवारे,
खिलउठेगा चमन, चमन अब तेरे ही सहारे ,
अस्तित्व की विजय हेतु, वह तुझे ही पुकारे,
हृदय के कम्पन को, जरा आभास करे।
आओ कुछ अपने राणा समाज का भी उपकार करें।।4।।
कर रहा आह्वान "नवीन युग" का आगाज हो,
जन जन में हो चेतना, मस्तक में वही ताज हो,
स्वाभिमानिता का भाव, हर जन का चाव हो,
सामाजिक सम्मान पाए सभी, ऐसा नित झुकाव हो,
"नवीन सिंह, राणा सभ्यता से विनीत भाव पुकार करे।
आओ कुछ अपने राणा समाज का भी उपकार करें।।5।।
नवीन सिंह राणा द्वारा रचित
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