आपन की बोली, संस्कृति को महत्त्व: विमर्श नवीन सिंह राणा द्वारा
आपन की बोली, संस्कृति को महत्व: विमर्श नवीन सिंह राणा द्वारा राणा समाज कै सब जनिन कै मेरो राम, मेरो नाव है नवीन सिंह राणा और मोकै अपनो प्यारो राणा समाज बहुतय प्यारो है, और लगै क्यों ना , अपनी जओ राणा संस्कृति और जाकी परंपरा सबन से न्यारी स बन से प्यारी है। और मै अपनी लेखनी अपने राणा समाज के ताहिं यें चलात हों, जब तक आपन की कलम न चलैगी तब तक आपन के बारे मै अगर और कोई लिखैगो तो काहे के लिखओगे। अगर कछु लि खिओ दे गो तओ अच्छो अछो थोनी लिख देगे। हम सबै इतनिओ बेकार थोनि है कि अपन तहिं कछु न लिख पामै। मोके आप स्बै जनी जानत हओ जिन न, ही सकत है आप सब जनिं न जानत होगे। महुं आप सब जनीं जयसो ही हओं। मेरो दादो दादी जी गांवै मै खेती किसानी करत आए हैं अब मेरी अइया जी और द उ आ जी खेती किसानी कर रहै हैं जओ तओ आपन सब को रोजी रोटी को धन्धो है। अब हम कै पढा ये लिखाय कै इतय पढान लिखान मय लगाय दईं तओ अपनी संस्कृति परंपरा तओ भूल ना जय हैं। चाहों जित्तो बीएसएससी उऎसी कर लेवें चाहों जहां से न कर लेवे। अपने ना भये तओ का के भएं। महुं आगन बाड़ी की दलिया खाय के बड़...