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मार्च 31, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आपन की बोली, संस्कृति को महत्त्व: विमर्श नवीन सिंह राणा द्वारा

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आपन की बोली, संस्कृति को महत्व: विमर्श नवीन सिंह राणा द्वारा राणा  समाज कै सब जनिन कै मेरो राम,  मेरो नाव है नवीन सिंह राणा और मोकै अपनो प्यारो राणा  समाज बहुतय प्यारो है, और लगै क्यों ना , अपनी जओ राणा संस्कृति और जाकी परंपरा सबन से न्यारी स बन से प्यारी है। और मै अपनी लेखनी अपने राणा  समाज के ताहिं यें चलात हों, जब तक आपन की कलम न चलैगी तब तक आपन के बारे मै अगर और कोई लिखैगो तो काहे के लिखओगे। अगर कछु लि खिओ दे गो तओ अच्छो अछो थोनी लिख देगे। हम सबै इतनिओ बेकार थोनि है कि अपन तहिं कछु न लिख पामै।     मोके आप स्बै जनी जानत हओ जिन न, ही सकत है आप सब जनिं न जानत होगे। महुं आप सब जनीं जयसो ही हओं। मेरो दादो दादी जी गांवै मै खेती किसानी करत आए हैं अब मेरी अइया जी और द उ आ जी खेती किसानी कर रहै हैं जओ तओ आपन सब को रोजी रोटी को धन्धो है। अब हम कै पढा ये लिखाय कै इतय पढान लिखान मय लगाय दईं तओ अपनी संस्कृति परंपरा तओ भूल ना जय हैं। चाहों जित्तो बीएसएससी उऎसी कर लेवें चाहों जहां से न कर लेवे। अपने ना भये तओ का के भएं। महुं आगन बाड़ी की दलिया खाय के बड़...

कुछ पाया तो कुछ खोया........ नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

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कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है, यह मानो या न मानो। जो गौरव था राणा समाज का, उसको जानो या न जानो। छिपा हुआ, रग रग में रक्त राणा का उसे पहचानो या न पहचानो। कुछ पाया तो कुछ खोया भी है यह मानो या न मानो।1। खो रही संस्कृति, परंपराएं अब खो ते जा रहे संस्कार। खो रहीं अपनी मान मर्यादायें रीतिरिवाजों का हो रहा तिरस्कार। भले आज हम आगे बढ़ गए, जो पतन हुआ वह जानो। कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है यह मानो या न मानो।2। भूमि बिकी, सिमट गए गांव, मालिक से बन गए मजदूर। कुछ बने धन कुबेर यहां कोई दाने दाने को मजबूर। कोई लुटा, मधु रस पीकर कुछ की सानो शौकत जानो। कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है यह मानो या न मानो।3। कुछ डूबे, शोषण में पड़कर, कितनो के छिने अधिकार। कुछ लुटे, अनभिज्ञ बनकर, कुछ अपनों के हुए शिकार। अपने हाथों लुट गए ऐसे, समझ सके न तुम राणाओ। कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है, यह मानो या न मानो।4। कुछ सोंचो,कुछ करो विचार हो ”नवीन” क्रांति का उद्भव। जन जन और हर ग्राम ग्राम में हो नव जन चेतना संभव। अब उठकर निद्रा से थोड़ा तुम, स्व अवस्था को भी पहचानो। कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है, यह मानो या न मानो।5। नवीन ...

राणा समाज का इतिहास श्रीमती पुष्पा राणा जी की जुबानी।

श्रीमती पुष्पा राणा जीके द्वारा कुछ विषेश वीडियो शेयर किए जा रहे हैं राणा राजपूतों का इतिहास खटीमा ऊधम सिंह नगर  https://youtu.be/WP8BmKH_EFA?si=keOmjazJmY5qrU4F राणा राजपूतों में कटार का महत्व https://youtu.be/jI-kjid_mwk?si=QsFf8oT2DHi9r3cE आशा है आप सभी को आप सभी को यह वीडियो पसंद आयेंगे धन्यवाद इस ब्लॉग कीअन्य अवस्यक पोस्ट के लिए लिंक पर क्लिक करके पढ़ें। अब धरा न बेचेंगे

शीर्षक "मैं झांसी की रानी""बचपन की मधुर यादेंश्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा रचित

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शीर्षक "मैं झांसी की रानी" "बचपन की मधुर यादें " पापा की मैं परी नहीं। मैं  झांसी  की  रानी । भोला सा बचपन मेरा। भोली सी एक कहानी।। मां की मैं बिटिया रानी। पर पापा की मरदानी।। ले लाठी  मैं टूट पड़ी। कहा जो झांसी रानी।। लाठी जैसे फूल बन गई। पड़ते ही  पापा  हंसते।। मैं रूठी सी गाल फुलाती। वो फिर नई कहानी गढ़ते।। पुकारती मां "रान्तू" । (राणा) कहां है तू ,कहां है तू।। छुपन -छुपाई  मैं  खेलूं। मां के आंचल में छुप लूं।। "ता" कहती मां मुस्काती।  प्यार  भरी पप्पी लेती।। देखो ढूंढ लिया कहती।  मां बेटी ये खेल खेलती।। नन्ही बच्ची क्या जाने। कौन थी झांसी  रानी।।  बार-बार बोला जब  जाता । चिड़ जाती थी अभिमानी।। ये नाम  नहीं  ऐसे  मिला। था बचपन का सिलसिला।। देखके बिटिया स्वाभिमानी। पापा कहते झांसी - रानी।।  सिलसिला यूं चलता रहा।  समय चक्र घूमता रहा ।।  बचपन मेरा मरता  रहा।। स्वाभिमान पर बाकी रहा।। विलीन हो गए पापा मेरे। गहरे  नील  गगन में।। मां भी सोई चिर निद्रा ।  रहा ठह...

अब न बेचेंगे धरा..... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

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अब न बेचेंगे धरा…… जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने, ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई। जरा संभल जा मेरे राणा भाई क्यों तूने इसे लुटाई। कोड़ी में क्यों तूने इसे लुटाई। जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।1। जहां बसे थे दादा परदादा, हीरे की खान धरा बनाई। खेती कर उपजा मोती के दाने, क्यों तूने इसे लुटाई। खेत बेच क्या होगी तेरी भलाई। जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,    ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।2। तू तो खा लेगा घी चपुरी, तेरा बेटा कहां से लाएगा। परपोता देगा गाली तुझको, वो घर कहां बसाएगा। खेत बेंच रबडी कहां लुटाई, खेत बेंच क्या होगी तेरी भलाई। जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,    ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।3। धरती है अनमोल रत्न, खेत हमारे रत्नों की खान। सुधरती जिससे घर की दशा, यह धरती ही है अपना स्वाभिमान।   बेच इसे अपनों की बाट लगाई, खेत बेंच क्या होगी तेरी भलाई। जिस बंजर को तोड़ा पुरखों ने,    ऊसर धरा को उपजाऊ बनाई।4। जरा संभल जा, सोच जरा, क्या अब पुरखों की आन बचाई। जिस पर खेला, बचपन बीता, लुटा दिया, यही तेरी सच्चाई। है तेरी भावर भूमि तराई, खेत बेंच क्या होगी तेर...

काश मैं भी...... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

काश मै भी ….. काश मैं भी होती ऐसी, जैसे सब होते हैं। सुनते हैं मीठी बोली, अच्छी बातें कहते हैं। काश मै भी होती ऐसी, जैसे सब होते हैं। देखते हैं यह दुनिया, जग दर्शन करते हैं। चलते हैं अपने पगों से, यहां वहां भ्रमण करते हैं। काश मै भी होती ऐसी, जैसे सब होते हैं। प्रकृति ने मेरे संग, जाने क्या दुश्वार किया ? बचपन से मुझे उसने ऐसा क्या प्यार दिया? काश मै भी होती ऐसी जैसे सब होते हैं। मै अभागन हूं या माता पिता, जो मेरे लिए  ही सिसकते हैं। छोड़े मेरे लिए रिश्ते नाते वो हर पल तड़पते हैं। काश मै भी होती ऐसी जैसे सब होते हैं। कितने हैं मेरे भी अरमान, और कितने मेरे भी सपने है। किससे कहूं मन की बात सब तो अपने हैं। काश मै भी होती ऐसी जैसे सब होते हैं। मै भी पढ़ती किताबें, शब्दों की माला बनाती। कागज के पन्नों में सुंदर तस्वीरें सजाती। काश मै भी होती ऐसी जैसे सब होते हैं। मेरे भी होते मेडल, मेरी भी ऊंची उड़ान होती। देखती मुझको भी दुनिया मेरी भी अपनी शान होती। काश मै भी होती ऐसी जैसे सब होते हैं। लेकिन मुझे क्या मिला, दो पग मिले ,पर चल नहीं पाती। दो कान दिए ,पर सुन नहीं पाती। लफ्ज़ सिर्फ हंसने के...