कुछ पाया तो कुछ खोया........ नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है,

यह मानो या न मानो।

जो गौरव था राणा समाज का,

उसको जानो या न जानो।

छिपा हुआ, रग रग में रक्त राणा का

उसे पहचानो या न पहचानो।

कुछ पाया तो कुछ खोया भी है

यह मानो या न मानो।1।

खो रही संस्कृति, परंपराएं अब

खो ते जा रहे संस्कार।

खो रहीं अपनी मान मर्यादायें

रीतिरिवाजों का हो रहा तिरस्कार।

भले आज हम आगे बढ़ गए,

जो पतन हुआ वह जानो।

कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है

यह मानो या न मानो।2।

भूमि बिकी, सिमट गए गांव,

मालिक से बन गए मजदूर।

कुछ बने धन कुबेर यहां

कोई दाने दाने को मजबूर।

कोई लुटा, मधु रस पीकर

कुछ की सानो शौकत जानो।

कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है

यह मानो या न मानो।3।

कुछ डूबे, शोषण में पड़कर,

कितनो के छिने अधिकार।

कुछ लुटे, अनभिज्ञ बनकर,

कुछ अपनों के हुए शिकार।

अपने हाथों लुट गए ऐसे,

समझ सके न तुम राणाओ।

कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है,

यह मानो या न मानो।4।

कुछ सोंचो,कुछ करो विचार

हो ”नवीन” क्रांति का उद्भव।

जन जन और हर ग्राम ग्राम में

हो नव जन चेतना संभव।

अब उठकर निद्रा से थोड़ा तुम,

स्व अवस्था को भी पहचानो।

कुछ पाया, तो कुछ खोया भी है,

यह मानो या न मानो।5।


नवीन सिंह राणा द्वारा रचित

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