काश मैं भी...... नवीन सिंह राणा द्वारा रचित
काश मै भी …..
काश मैं भी होती ऐसी,
जैसे सब होते हैं।
सुनते हैं मीठी बोली,
अच्छी बातें कहते हैं।
काश मै भी होती ऐसी,
जैसे सब होते हैं।
देखते हैं यह दुनिया,
जग दर्शन करते हैं।
चलते हैं अपने पगों से,
यहां वहां भ्रमण करते हैं।
काश मै भी होती ऐसी,
जैसे सब होते हैं।
प्रकृति ने मेरे संग,
जाने क्या दुश्वार किया ?
बचपन से मुझे उसने
ऐसा क्या प्यार दिया?
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
मै अभागन हूं या माता पिता,
जो मेरे लिए ही सिसकते हैं।
छोड़े मेरे लिए रिश्ते नाते
वो हर पल तड़पते हैं।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
कितने हैं मेरे भी अरमान,
और कितने मेरे भी सपने है।
किससे कहूं मन की बात
सब तो अपने हैं।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
मै भी पढ़ती किताबें,
शब्दों की माला बनाती।
कागज के पन्नों में
सुंदर तस्वीरें सजाती।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
मेरे भी होते मेडल,
मेरी भी ऊंची उड़ान होती।
देखती मुझको भी दुनिया
मेरी भी अपनी शान होती।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
लेकिन मुझे क्या मिला,
दो पग मिले ,पर चल नहीं पाती।
दो कान दिए ,पर सुन नहीं पाती।
लफ्ज़ सिर्फ हंसने के लिए
जिससे कुछ कह नहीं पाती।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
दो आंखें जिनसे देखती थी
पर वह ना था पसंद तुझे।
और उनको भी जाने क्यों
ले लिया ऐसी सजा दी मुझे।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
पहले संकेतो को देख कर ही
सब समझ जाया करती।
बस संकेतो से ही
जो चाहती मांगा करती।
बस संकेतो से ही मन की बातें
कह पाया करती।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
लेकिन अब मेरे लिए,
यह सारी दुनिया अनजान सी लगती
क्योंकि अब मै उसे देख नहीं सकती।
बस छू कर लगता,
कोई अपना मेरे पास है।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
बस स्पर्श से ही प्रतीत होता,
और बस इसी से अहसास है।
सब कुछ वीरान,
पर स्मृतियों में सब छिपा
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
बस स्मृतियों के प्रतिरूप
मेरे नयनों में दिखते हैं,
इन स्मृतियों के हर पल
मेरे तन मन में थिरकते हैं
और तब मै भी थिरकती हूं
सिर्फ जीने के लिए।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
मेरे भी तो शौक हैं
पर कैसे , वे पूरे होंगे।
मेरे भी तो अरमान हैं
वे कैसे संवरेंगे।
मै इतनी लाचार हूं।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
बचपन से अब तक
अब जाने आगे कब तक,
जब तक हैं सांसे तन में
बस यूं ही घुटती रहूंगी।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
लेकिन फिर भी मुस्कुराती हूं
दूसरों को मुस्कराने के लिए।
मै कभी हंसती हूं खुलकर
दूसरों को हंसाने के लिए।
मै भी गाती हूं मन ही मन
खुद को ही सुनाने के लिए।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
सजती हूं संवरती हूं,
खुद का दिल बहलाने के लिए।
क्योंकि जीना तो मुझे भी है
अपने ऐसे ही हालातों में।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
भले ही समय नहीं है
वक्त किसी को मेरे लिए।
लेकिन मै दुखी होकर भी
खुश हूं ,अपने मां पा पा के लिए।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
क्योंकि मेरी खुशी से ही
मेरे अपने मुस्करा पाते हैं।
इसलिए उनके लिए ही सही
मै हरदम मुस्कुराती हूं।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
सोचती हूं कभी कभी
मेरे अपने जो मेरी सेवा में
अपने सारा वक्त बिता देते हैं।
जब उनको भी होगी,
सेवा की जरूरत कभी,
तो कैसे उनकी सेवा कर पाऊंगी।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
एक आशा रखती हूं हरपल।
जिऊंगी और कुछ करूंगी
बोलूंगी, देखुंगी,सुनूंगी,
और अपने पैरों पर चलूंगी।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
कभी तो किरपा करेगा
यदि कोई है शक्ति जग में,
जिससे चलती है दुनिया,
संवरती है दुनिया, आगे बढ़ती है दुनिया।
कभी तो किरपा करेगा मुझ पर।
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
मैं कब"नवीन” युग में
अपने कदम रखूंगी।
जब मैं भी वैसे ही जिऊंगी
जैसे हर बेटी, ऊंचे अरमान लेकर
अपने पापा के आंगन में,
ऊंची उड़ान भरती है
काश मै भी होती ऐसी
जैसे सब होते हैं।
द्वारा रचित
नवीन सिंह राणा