शीर्षक "मैं झांसी की रानी""बचपन की मधुर यादेंश्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा रचित
शीर्षक "मैं झांसी की रानी"
"बचपन की मधुर यादें "
पापा की मैं परी नहीं।
मैं झांसी की रानी ।
भोला सा बचपन मेरा।
भोली सी एक कहानी।।
मां की मैं बिटिया रानी।
पर पापा की मरदानी।।
ले लाठी मैं टूट पड़ी।
कहा जो झांसी रानी।।
लाठी जैसे फूल बन गई।
पड़ते ही पापा हंसते।।
मैं रूठी सी गाल फुलाती।
वो फिर नई कहानी गढ़ते।।
पुकारती मां "रान्तू" । (राणा)
कहां है तू ,कहां है तू।।
छुपन -छुपाई मैं खेलूं।
मां के आंचल में छुप लूं।।
"ता" कहती मां मुस्काती।
प्यार भरी पप्पी लेती।।
देखो ढूंढ लिया कहती।
मां बेटी ये खेल खेलती।।
नन्ही बच्ची क्या जाने।
कौन थी झांसी रानी।।
बार-बार बोला जब जाता ।
चिड़ जाती थी अभिमानी।।
ये नाम नहीं ऐसे मिला।
था बचपन का सिलसिला।।
देखके बिटिया स्वाभिमानी।
पापा कहते झांसी - रानी।।
सिलसिला यूं चलता रहा।
समय चक्र घूमता रहा ।।
बचपन मेरा मरता रहा।।
स्वाभिमान पर बाकी रहा।।
विलीन हो गए पापा मेरे।
गहरे नील गगन में।।
मां भी सोई चिर निद्रा ।
रहा ठहर सब ही मन में।।
मैं ये जिक्र किया करती।
मां मेरी मुझे रान्तू कहती।।
पापा झांसी की रानी।
हां मेरी ! मधुर कहानी।।
विस्मित सी मैं देख रही थी।
सुनकर वह बात पुरानी।।
अधिकारी ने अनजाने में।
कहा मुझे झांसी - रानी।।
बह निकले आंखों से आंसू।
संभली , फिर मैं मुस्काई।।
पूछा पापा की बात जुबां पर।
सर! कहिए कैसे आई।।
वह विस्मित अब पूछ रहे थे।
कहो क्या पापा कहते थे।।
आंसू पोंछो खुलकर बोलो।
बतलाओ क्या कहते थे।।
जी, जो आपने कहा अभी।
कहते थे मेरे पापा कभी।।
तुम हो झांसी की रानी ।
जो खूब लड़ी थी मर्दानी ।।
तड़- तड़ डंडे पड़ते थे ।
कहते ही झांसी की रानी।।
रौद्र रूप दिखला कर।
मैं लड़ी खूब मर्दानी।।
देखो फिर हश्र वही होगा।
तड़- तड़ डंडे बरसेंगे।।
पापा इस पर हंसते थे।
तुमको भी हंसना होगा।।
पदवी दी है पापा ने।
नहीं और का हक होगा।।
मन की वीणा छेंड़ी है।
अब पापा सा बनना होगा।।
गंभीर हो गए अधिकारी।
ममता का सागर उमड़ा।।
बहुत प्रिय हो तुम मुझको।
अब से तुम हो " कन्नमा"
( अधिकारी दक्षिण भारतीय थे और वहां छोटी बच्ची को कन्नमा कहते हैं। उस दिन से बो मुझे कन्नमा ही बुलाते थे।)
स्व रचित कविता
पुष्पा राणा
लखनऊ
28.05.2023.