पुस्तक समीक्षा: "Global Genocide of Indigenous Peoples"****लेखक:** इस पुस्तक के लेखक ने सम्पूर्ण विश्व के जनजातीय समाज की दशा और विशेषकर उनके बच्चों की वर्तमान परिस्थिति पर गहनता से प्रकाश डाला है।

**पुस्तक समीक्षा: "Global Genocide of Indigenous Peoples"**

**लेखक:** इस पुस्तक के लेखक ने सम्पूर्ण विश्व के जनजातीय समाज की दशा और विशेषकर उनके बच्चों की वर्तमान परिस्थिति पर गहनता से प्रकाश डाला है। 

**विषयवस्तु:** 
इस पुस्तक में वर्णित "Global Genocide of Indigenous Peoples" का मूल विषय आदिवासी समाज के बच्चों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति पर केंद्रित है। यह पुस्तक उस हिंसा और उत्पीड़न पर चर्चा करती है, जो विश्वभर के जनजातीय समाज के लोग और उनके बच्चे ऐतिहासिक और समकालीन दोनों रूपों में झेल रहे हैं। पुस्तक में बच्चों के शिक्षा के अधिकारों से वंचित होने, उनकी पहचान खोने और उनकी सांस्कृतिक धरोहर के नष्ट होने जैसी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि किस प्रकार आधुनिक समाज और सरकारें, औद्योगिकीकरण, भूमि अधिग्रहण और संसाधनों के दोहन के नाम पर आदिवासी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। वे बच्चे जो प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित जीवन जी रहे थे, अब उन्हीं संसाधनों से वंचित हो रहे हैं और उनके सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।

पुस्तक का सार: 
Global Genocide of Indigenous Peoples"**

 पूरी दुनिया के आदिवासी समाज और विशेष रूप से उनके बच्चों की वर्तमान स्थिति और उनके सामने आने वाली चुनौतियों का विस्तार से वर्णन करती है। इस पुस्तक में लेखक ने ऐतिहासिक और समकालीन दृष्टिकोण से जनजातीय समाज के उत्पीड़न और उनके अस्तित्व के संकट को सामने रखा है। यह पुस्तक आदिवासी समाज के बच्चों के सामने आने वाले संकटों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक पहचान और भूमि-अधिकारों से संबंधित समस्याओं पर प्रकाश डालती है। 

### **1. ऐतिहासिक उत्पीड़न और वर्तमान स्थिति:**
पुस्तक में विस्तार से चर्चा की गई है कि कैसे आदिवासी समाज पर उपनिवेशवाद, औद्योगिकीकरण, और संसाधनों के दोहन ने गहरा प्रभाव डाला। विश्वभर के कई जनजातीय समाजों का सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन समय-समय पर विभिन्न शक्तियों द्वारा प्रभावित हुआ। उपनिवेशी शक्तियों ने इन समुदायों को उनकी पारंपरिक भूमि से बेदखल किया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक ढांचा पूरी तरह से प्रभावित हुआ। यह पुस्तक बताती है कि इन समुदायों के बच्चे विशेष रूप से कैसे इन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने पारंपरिक ज्ञान और संस्कृति से दूर कर दिया गया है।

### **2. सांस्कृतिक पहचान का लोप:**
लेखक ने इस बात पर विशेष बल दिया है कि आदिवासी बच्चों की संस्कृति और भाषा उनके अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन आधुनिक समाजों और सरकारों द्वारा उन्हें इससे वंचित किया जा रहा है। कई जनजातीय भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं, और उनके बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में ढालने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान कमजोर हो रही है। 

लेखक का तर्क है कि यह सांस्कृतिक लोप धीरे-धीरे एक **नरसंहार** के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि यह उनके अस्तित्व की नींव को खत्म करने का प्रयास है। बच्चों को उनकी पारंपरिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों से दूर करके उन्हें एक ऐसी प्रणाली में ढाला जा रहा है, जो उनकी असल पहचान से मेल नहीं खाती।

### **3. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में असमानता:**
पुस्तक में आदिवासी समाज के बच्चों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का विस्तार से वर्णन किया गया है। लेखक बताता है कि जनजातीय समुदायों के बच्चों को न केवल शिक्षा से वंचित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें ऐसे पाठ्यक्रम पढ़ाए जा रहे हैं जो उनकी संस्कृति और जीवनशैली से मेल नहीं खाते। 

इसके साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और मूलभूत सुविधाओं की अनुपलब्धता भी उनके विकास के लिए एक बड़ा अवरोध बन रही है। कई मामलों में, आदिवासी बच्चों की मृत्यु दर और कुपोषण दर मुख्यधारा की आबादी से अधिक है, और उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

### **4. भूमि अधिकार और प्राकृतिक संसाधनों से वंचित होना:**
पुस्तक में यह भी वर्णन किया गया है कि आदिवासी समाज के बच्चों को उनकी पारंपरिक भूमि से बेदखल करने का सीधा प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ता है। लेखक का कहना है कि उनकी आर्थिक स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि वे अपनी पारंपरिक भूमि पर खेती और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकें। 

हालांकि, औद्योगिकीकरण और आधुनिक विकास के नाम पर उनकी भूमि का अधिग्रहण कर लिया जाता है, जिससे वे अपने मूल संसाधनों से वंचित हो जाते हैं। इसका प्रभाव न केवल उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ता है, बल्कि उनके बच्चों के लिए आजीविका के अवसर भी समाप्त हो जाते हैं।

### **5. संघर्ष और समाधान:**
इस पुस्तक में उन संघर्षों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है, जो आदिवासी समाज ने अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए किए हैं। लेखक ने विभिन्न जनजातीय समूहों द्वारा किए गए संगठित प्रयासों और आंदोलनों का उदाहरण दिया है, जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई। 

इसमें यह भी बताया गया है कि जनजातीय समाज कैसे अपनी संस्कृति और अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्षरत हैं और उन्हें कई चुनौतियों के बावजूद सफलता भी मिली है। पुस्तक उन समाधान सुझावों पर भी चर्चा करती है जो इन समुदायों के बच्चों को बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए अपनाए जा सकते हैं।

### **राणा थारू समाज के लिए पुस्तक का महत्व:**
राणा थारू समाज, जो एक प्राचीन और समृद्ध जनजातीय समाज है, इस पुस्तक से बहुत कुछ सीख सकता है। राणा थारू समाज के बच्चों को अपनी सांस्कृतिक पहचान और अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुस्तक से निम्नलिखित शिक्षा प्राप्त की जा सकती है:

- **सांस्कृतिक जागरूकता:** यह पुस्तक राणा थारू समाज को यह समझने में मदद करेगी कि कैसे वैश्विक स्तर पर आदिवासी समाज अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और उन्हें भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
  
- **बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य:** राणा थारू समाज के बच्चों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता है। इस पुस्तक से यह समझा जा सकता है कि उनके बच्चों के अधिकारों को कैसे संरक्षित किया जा सकता है और उन्हें एक उज्जवल भविष्य के लिए कैसे तैयार किया जा सकता है।

- **आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण:** पुस्तक से राणा थारू समाज यह भी सीख सकता है कि वे कैसे संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकते हैं और आर्थिक व सामाजिक रूप से सशक्त हो सकते हैं। 

### **निष्कर्ष:**
"Global Genocide of Indigenous Peoples" एक व्यापक और विचारोत्तेजक पुस्तक है, जो आदिवासी समाज के बच्चों की वर्तमान परिस्थिति को गहराई से समझने का प्रयास करती है। राणा थारू समाज को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए ताकि वे वैश्विक स्तर पर हो रहे संघर्षों से प्रेरणा लेकर अपनी संस्कृति, बच्चों के भविष्य और अपने समुदाय की भलाई के लिए आवश्यक कदम उठा सकें व अपने समुदाय के बच्चों के भविष्य के लिए बेहतर योजनाएं बना सकें और अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान को बनाए रखने के लिए संगठित हो सकें।
  

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