नारी की सहभागिता एवं सशक्तीकरण पर एक ओजस्वी कविता
. राणा थारू युवा जागृति समिति की आजीवन सदस्य एवम वरिष्ठ प्रबंधक लखनऊ में कार्यरत श्रीमती पुष्पा राणा जी एक सम्मानित और विद्वान नारी शक्ति का प्रतीक है जिन्हें राणा समाज की परम्पराओं, संस्कृति वा इतिहास पर बहुत अधिक जानकारी है और वे बहुत ही ओजस्वी कविता भी लिखती हैं उन्हीं कविताओं के संग्रह में से एक कविता प्रस्तुत है:
"नारी की सहभागिता एवं सशक्तीकरण "
चलो क्षितिज के पार हमें चलना है।
अंधियारों को चीर उजाले भरना है।।
क्या हुआ जो घना कुहासा छाया है।
जिम्मा अपने,करने को कुछ आया है।।
मंजिले और हैं आसमां से आगे।
कदमों के पहले निशां तू बना दे।।
तोड़कर सारे तारे आसमां से ला दे।
जमीं को ही तू आसमां बना दे।।
नारी सदा से ही सबला रही है।
विदुषी गार्गी और अपाला रही है।।
सिद्ध कर तू फिर अबला नहीं है।
वही शारदे और तू कमला वही है।।
प्रेयसी तू ही मीरा तू ही राधा रही है।
तुझसे ही प्रेम की मर्यादा रही है।।
अर्धनारीश्वर का अंग तू आधा रही है।
सृष्टि का सम्वल सदा से रही है।।
विधाता ने रचना अनूठी रची है।
शक्तियां सब निहित तुझमें की है।।
तू ममता का सागर दयालु बड़ी है।
वक्त आने पर खप्पर लेके खड़ी है।।
श्रृजन की देवी तू संसार रचती।
तुझसे ही श्रृष्टि सम्पूर्ण चलती।।
तेरे ही श्रम से सजती संवरती।
तू ही धरा का श्रृंगार करती।।
श्रृष्टि ये तेरी सदा से ऋणी है।
निभाने में कर्त्तव्य आगे रही है।।
जग को तेरी जरूरत बड़ी है।
समस्या बहुत मुंह बाये खड़ी है।।
हर सफलता के पीछे नारी खड़ी है।
रही हर इक क्षेत्र में अग्रणी है।
जरुरी है उसकी भी सहभागिता।
हैं पास उसके अप्रतिम योग्यता।
विश्व योगदान उसका पहचानता है।
लोहा प्रतिभा का सदा मानता है।।
स्वर्णिम सा वक्त वही आ गया है।
चलो साथ अवसर सही आ गया है।
कुहासों के बादल छंटने लगे हैं।
कतरे उजालों के दिखने लगे हैं।।
स्वर भी सभी के बदलने लगे हैं।
खुल के प्रसंशा वो करने लगे हैं।
शीघ्र ही बहुत वो वखत आयेगा।
जग में नारी का परचम लहरायेगा।
पुष्पा राणा
वरिष्ठ प्रबंधक
नारी की सहभागिता एवं सशक्तीकरण
चलो क्षितिज के पार हमें चलना है।
अंधियारों को चीर उजाले भरना है।।
क्या हुआ जो घना कुहासा छाया है।
जिम्मा अपने,करने को कुछ आया है।।
मंजिले और हैं आसमां से आगे।
कदमों के पहले निशां तू बना दे।।
तोड़कर सारे तारे आसमां से ला दे।
जमीं को ही तू आसमां बना दे।।
नारी सदा से ही सबला रही है।
विदुषी गार्गी और अपाला रही है।।
सिद्ध कर तू फिर अबला नहीं है।
वही शारदे और तू कमला वही है।।
प्रेयसी तू ही मीरा तू ही राधा रही है।
तुझसे ही प्रेम की मर्यादा रही है।।
अर्धनारीश्वर का अंग तू आधा रही है।
सृष्टि का सम्वल सदा से रही है।।
विधाता ने रचना अनूठी रची है।
शक्तियां सब निहित तुझमें की है।।
तू ममता का सागर दयालु बड़ी है।
वक्त आने पर खप्पर लेके खड़ी है।।
श्रृजन की देवी तू संसार रचती।
तुझसे ही श्रृष्टि सम्पूर्ण चलती।।
तेरे ही श्रम से सजती संवरती।
तू ही धरा का श्रृंगार करती।।
श्रृष्टि ये तेरी सदा से ऋणी है।
निभाने में कर्त्तव्य आगे रही है।।
जग को तेरी जरूरत बड़ी है।
समस्या बहुत मुंह बाये खड़ी है।।
हर सफलता के पीछे नारी खड़ी है।
रही हर इक क्षेत्र में अग्रणी है।
जरुरी है उसकी भी सहभागिता।
हैं पास उसके अप्रतिम योग्यता।
विश्व योगदान उसका पहचानता है।
लोहा प्रतिभा का सदा मानता है।।
स्वर्णिम सा वक्त वही आ गया है।
चलो साथ अवसर सही आ गया है।
कुहासों के बादल छंटने लगे हैं।
कतरे उजालों के दिखने लगे हैं।।
स्वर भी सभी के बदलने लगे हैं।
खुल के प्रसंशा वो करने लगे हैं।
शीघ्र ही बहुत वो वखत आयेगा।
जग में नारी का परचम लहरायेगा।
पुष्पा राणा
वरिष्ठ प्रबंधक
आशा है आप सभी को यह ओजस्वी कविता अच्छी लगी होंगी। धन्यवाद
संकलन कर्ता
नवीन सिंह राणा