""जन्म भूमि की माटी ""कविता

**जन्म भूमि की माटी**
नवीन सिंह राणा द्वारा रचित 

जन्म भूमि की माटी, 
वह सोंधी-सोंधी खुशबू।
बचपन की वो यादें, 
मन में अब भी हैं जीवंत हूबहू।।

गाँव की वो गलियाँ, 
खेले और बड़े यहीं,
सपनों की दुनिया ,
 सजती बसती थी वहीं।।

सफलता के शिखर पर,
 जब पहुँच जाते यदा,
पुरानी बचपन की यादें, 
दिल में बसी रही सदा।।

वो बचपन के साथी, 
मासूम हंसी के पल।
मिट्टी के वो घर, 
दिल में बसते हर पल।।

भूले तो कैसे भूले,
उस माटी का कर्ज,
जीवन की नींव, 
वहीं से होती अर्ज।।

अपने आधार को, हमेशा रखना याद,
उनके भले के लिए, करना हर एक प्रयास।

गाँव की सुबहें, 
और वो ढलती शाम।
खेतों की हरियाली, 
और बचपन के नाम।।

उन रिश्तों की गर्माहट, 
वो अपनेपन का भाव।
जीवन के सफर में, 
बना रहता प्रभाव।।

चाहे जितनी सफलता, 
जीवन में मिले।
जन्म भूमि की सेवा, 
जब तक प्राण दिल से करे।।

अपने समाज के विकास में, 
अपना योगदान देते रहे।
उनके भले के लिए,
 हर पल तत्पर रहे।।

जन्म भूमि की माटी, 
 है जीवन का सार।
उसकी सेवा करना,
है हमारा कर्तव्य अपार।।

भूलना न कभी, 
उन रिश्तों का प्यार।
उनके भले के लिए, 
तुम रहना सदा तैयार।।

ये माटी की खुशबू, 
और वो अपनापन मन में।
हमेशा रहेंगे साथ,
 हर मुश्किल और संकट में।।

उनके भले के लिए,
 हमें देना है हरदम साथ।
ताकि जीवन की राह में, 
बने रहें सबके साथ। बने रहे सबके साथ।।
                          :नवीन सिंह राणा 

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