"प्रकृति की गोद में बसा राणा थारू समाज: एकता और सौहार्द की अद्वितीय गाथा"
"प्रकृति की गोद में बसा राणा थारू समाज: एकता और सौहार्द की अद्वितीय गाथा"
:नवीन सिंह राणा
तराई भावर की हरी-भरी घाटियों में बसे राणा थारू समाज के गांव, एक जादुई दुनिया के समान प्रतीत होते हैं। सदियों से, इन गांवों ने संयुक्त परिवारों की परंपरा को बनाए रखा है, जहां हर सदस्य एक दूसरे के साथ मिलकर सुखी जीवन व्यतीत करता है।
गांव के एक छोर पर, एक बड़ा सा घर खड़ा है, जिसे चार पीढ़ियों ने मिलकर संवारा है। इस घर में पचास लोग एक साथ रहते हैं। घर के मुखिया, दादाजी, हमेशा बच्चों को अपने अनुभवों की कहानियां सुनाते हैं। उनका मानना है कि संस्कार युक्त वातावरण में ही बच्चे सही मायनों में विकसित हो सकते हैं।
एक सुबह, घर के आंगन में चहल-पहल थी। सभी सदस्य अपने-अपने काम में व्यस्त थे। पुरुष खेतों में काम करने के लिए तैयार हो रहे थे, महिलाएं सुबह का खाना बना रही थीं, और बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयारी कर रहे थे। हर कोई मिल बांटकर काम करता था, जिससे कोई भी काम भारी नहीं लगता था।
दोपहर को, जब सभी खेतों से लौटे, तो घर का माहौल और भी जीवंत हो गया। बच्चे दादाजी के पास बैठकर कहानियां सुनने लगे। दादाजी ने उन्हें एक बार फिर से बताया कि कैसे इस गांव ने सदियों से संयुक्त परिवार की परंपरा को बनाए रखा है।
उन्होंने बताया, "जब सभी मिलकर काम करते हैं, तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि परिवार की ताकत एकता में है। अगर हम एक साथ रहते हैं, तो कोई भी हमें कमजोर नहीं कर सकता।"
गांव में एक दिन, एक नई संपत्ति खरीदने की बात आई। परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर विचार करने लगे। किसी ने कहा कि अगर सभी मिलकर थोड़ी-थोड़ी राशि दें, तो संपत्ति खरीदना आसान हो जाएगा। सभी ने इस पर सहमति जताई और कुछ ही दिनों में नई संपत्ति खरीद ली गई।
इस गांव की प्राकृतिक सुंदरता भी अनोखी थी। चारों ओर फैली हरियाली, जंगलों की ताजगी, और स्वच्छ जल के स्रोत, हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देते थे। यहां की शांत वादियों में पक्षियों का चहचहाना और नदी की कलकल करती धारा, एक अनूठी सौंदर्य की अनुभूति कराते थे।
एक दिन, गांव में एक उत्सव का आयोजन हुआ। सभी लोग मिलकर तैयारी करने लगे। महिलाएं पारंपरिक व्यंजन बना रही थीं, पुरुष सजावट में व्यस्त थे, और बच्चे नृत्य और गीत की तैयारी कर रहे थे। उत्सव के दिन, गांव के हर कोने से खुशी और आनंद की ध्वनि सुनाई दे रही थी।
उत्सव के दौरान, दादाजी ने एक बार फिर से परिवार के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "हमारी सबसे बड़ी संपत्ति हमारी एकता है। अगर हम एक साथ रहेंगे, तो कोई भी विपत्ति हमें हरा नहीं सकती।"
इस प्रकार, राणा थारू समाज के गांव ने सदियों से अपने संयुक्त परिवार की परंपरा को बनाए रखा है। यहां की जीवन शैली हमें यह सिखाती है कि सहयोग, सामूहिकता और प्रकृति के प्रति सम्मान ही सच्चे सुख और संतोष की कुंजी हैं। प्रकृति की गोद में बसे इन गांवों का सौंदर्य और यहां का जीवन हमें एक बेहतर दुनिया की झलक दिखाते हैं, जहां हर कोई एक साथ मिलकर सुखी जीवन जी सकता है।
"इति श्री"