संघर्ष से शिखर तक: राणा थारू समाज की सच्ची घटना पर आधारित कहानी
संघर्ष से शिखर तक: राणा थारू समाज की सच्ची घटना पर आधारित कहानी
: नवीन सिंह राणा
तराई भावर के एक छोटे से गाँव में, जहाँ हर सुबह की ताजगी में प्रकृति का सजीव चित्रण होता था, वहाँ एक किसान परिवार रहता था। ये परिवार जिस गांव में बसा हुआ था वह गांव चंपावत जिले की सीमा से 8-10 किलोमीटर दूर दक्षिण में बीहड़ जंगल की सीमा से लगा हुआ था। इस परिवार के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर गुजारा कर पाना मुश्किल था। उनके पास पाँच बेटे थे, और उनके लिए ऊँची शिक्षा प्रदान करना किसान के लिए किसी सपने से कम नहीं था।
प्रकृति की गोद में बसा ये गाँव अद्वितीय सुंदरता का प्रतीक था। चारों ओर हरियाली से घिरे खेत, जिनमें किसान की मेहनत की बूंदें रोज़ाना सिंचाई करती थीं, एक अलग ही कहानी बयां करते थे। प्रेम सिंह राणा, जिसका दिल भी इन खेतों की तरह ही विशाल और मेहनती था, जिसने अपने बेटों को शिक्षा के महत्व का एहसास कराया।
उनके बड़े बेटे ने कठिन परिश्रम के बाद सरकारी नौकरी प्राप्त की। इससे किसान को थोड़ी राहत मिली, पर उसकी असली चुनौती अभी बाकी थी। उसका चौथा बेटा अनुज सिंह राणा , जो स्वभाव से बहुत ही मेहनती और लगनशील था, ने प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी की। उसकी मेहनत और लगन को देख कर ऐसा लगता था मानो उसने ठान लिया हो कि अपने पिता का सपना पूरा करके ही दम लेगा। उसने नवोदय विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त की और अपनी शिक्षा को निरंतर आगे बढ़ाया।
किसान के चौथे बेटे की मेहनत रंग लाई। उसने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी हासिल की और जल्द ही प्रमोशन पाकर एडीओ (एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर) पद पर पहुँच गया। उसके जीवन में एक नया अध्याय शुरू हो चुका था, जहाँ उसने समाज की सेवा को अपना उद्देश्य बना लिया था।
वह हमेशा अपने गाँव और समाज के लोगों की भलाई के लिए तत्पर रहता था। चाहे गाँव स्तरीय सेवा हो या पूरे समाज का कोई महत्वपूर्ण कार्य, वह हर जगह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता था। उसकी यही भावना थी कि समाज का कर्ज चुकाना है, और यही उसकी प्रेरणा बन गई थी।
एक दिन, गाँव में एक बड़ा सामाजिक समारोह आयोजित हुआ। किसान का चौथा बेटा, जो अब एडीओ पद पर था, उस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। उसके स्वागत में गाँव के लोगों ने दिल से मेहनत की थी। जब वह मंच पर आया, तो उसकी आँखों में आँसू थे। उसने भावुक होकर कहा, "आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसमें मेरे पिता की मेहनत, मेरे गाँव की मिट्टी और आप सभी का आशीर्वाद शामिल है। मैं इस समाज का कर्जदार हूँ और इसे चुकाने की कोशिश में हूँ।"
उसकी बातों से पूरा गाँव गर्वित हो उठा। सभी को महसूस हुआ कि जब तक समाज में ऐसे लोग हैं, तब तक कोई भी कठिनाई हमें रोक नहीं सकती। उस दिन प्रकृति भी जैसे उसकी कहानी सुनकर मुस्कुरा रही थी, और गाँव की हवाएँ भी उसके संकल्प को सलाम कर रही थीं।
:नवीन सिंह राणा