**"धरोहर की रक्षा: राणा थारू समाज की कहानी"**.
**"धरोहर की रक्षा: राणा थारू समाज की कहानी"**.
नवीन सिंह राणा की कलम से
राणा थारू समाज के लोग पुराने समय में सीधे-सादे, भोले-भाले और खुशहाल जीवन जीते थे। उनके गाँव हरे-भरे जंगलों और कलकल करती नदियों के बीच बसे थे, जहाँ प्रकृति अपने सम्पूर्ण सौंदर्य के साथ फैली थी। यहाँ की हवा में एक अद्भुत सुकून था और इनकी संस्कृति और परंपराएँ इस शांतिपूर्ण जीवन का हिस्सा थीं।
समय के साथ, अन्य समाज के लोग भी थरुआट की इस धरती की सुंदरता और उपजाऊ जमीन की ओर आकर्षित होने लगे। वे लोग यहाँ आकर बसने लगे और धीरे-धीरे राणा थारू समाज की जमीन पर अपनी नजरें जमाने लगे। बाहर से आए लोग चालाक थे और उन्होंने राणा थारू समाज की सरलता का फायदा उठाना शुरू किया।
एक दिन, खासू सेठ नाम का एक चालाक व्यापारी गाँव में आया। उसने राणा थारू समाज के मुखिया, सूरजमल सिंह राणा से दोस्ती की। सूरजमल सिंह राणा एक नेक और सीधा-सादा व्यक्ति था, जिसने खासू सेठ बातों पर भरोसा कर लिया। खासू सेठ ने सूरजमल से कहा, "भाई, मैं तुम्हारी जमीन को और उपजाऊ बनाने में मदद कर सकता हूँ। तुम मुझे थोड़ी सी जमीन दे दो, मैं तुम्हें इसके बदले अच्छी खासी रकम दूंगा।"
सूरजमल ने गाँव के अन्य लोगों से बात की और वे भी उस व्यापारी की बातों से प्रभावित हो गए। उन्होंने थोड़ी सी जमीन खासू सेठ को दे दी। उस ने उन्हें पैसे दिए और जमीन पर खेती करने लगा। समय बीतता गया और खासू सेठ ने धीरे-धीरे और जमीन लेने की कोशिशें शुरू कर दीं। हर बार वह कोई न कोई लालच देकर राणा थारू समाज के लोगों से जमीन ले लेता।
एक दिन, गाँव के एक बुजुर्ग, हरिप्रसाद राणा जो बहुत समझदार और दूरदर्शी थे, उन्होंने सूरजमल राणा को समझाया, "बेटा, ये बाहरी लोग हमारी सरलता का फायदा उठा रहे हैं। हमें अपनी जमीन और संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।"
सूरजमल राणा की आँखें खुल गईं, उसने सोचा कि अब और धोखा नहीं खाना चाहिए। उसने गाँव के सभी लोगों को इकठ्ठा किया और सबने मिलकर निर्णय लिया कि अब किसी को भी अपनी जमीन नहीं देंगे। उन्होंने खासू सेठ को उसकी चालाकियों का जवाब देने का ठान लिया।
खासू सेठ को जब यह पता चला, तो उसने गाँव में आकर सूरजमल राणा से कहा, "तुम लोग मेरे साथ विश्वासघात कर रहे हो। मैंने तुम्हारी मदद की थी और तुम मेरी जमीन वापस लेना चाहते हो?"
सूरजमल राणा ने धैर्यपूर्वक उत्तर दिया, "तुमने हमारे सरलता का फायदा उठाया है, लेकिन अब हम समझ गए हैं। यह जमीन हमारी धरोहर है और हम इसे बचाकर रखेंगे।"
गाँव के सभी लोगों ने एकजुट होकर अपनी जमीन की रक्षा की और खासू सेठ को गाँव छोड़कर जाना पड़ा। उन्होंने मिलकर अपने खेतों को फिर से सजाया और मेहनत करने लगे।
समय के साथ, राणा थारू समाज ने फिर से अपनी पुरानी सुख-शांति पाई। उन्होंने सीखा कि उनकी सरलता उनकी ताकत भी है, लेकिन उसे बचाकर रखना भी जरूरी है। उन्होंने अपनी संस्कृति और परंपराओं को और भी मजबूत किया और बाहरी लालच से बचकर रहने का संकल्प लिया।
इस प्रकार, राणा थारू समाज ने एकता और समझदारी से अपनी जमीन और धरोहर को बचाया और फिर से प्रकृति के सौंदर्य के बीच सुख-शांति का जीवन जीने लगे।
:नवीन सिंह राणा
नोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद