आषाढ़ी का त्यौहार: राणा थारू समाज की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक
### आषाढ़ी का त्यौहार: राणा थारू समाज की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक
: नवीन सिंह राणा की कलम से
उत्तराखंड के विविध समाजों में विभिन्न प्रकार के त्योहारों का आयोजन किया जाता है, जो उनकी संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं को दर्शाते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण त्योहार है आषाढ़ी, जिसे उत्तराखंड के तराई भावर में स्थित गांवो में रह रहे राणा थारू समाज के लोग बड़ी धूमधाम से मनाता है। यह त्योहार न केवल ईष्ट देव की पूजा का अवसर होता है, बल्कि सामाजिक सामंजस्य और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का भी माध्यम है।
#### परंपराओं की पवित्रता
आषाढ़ी का त्यौहार राणा थारू समाज में विशेष महत्व रखता है। इस दिन समाज की महिलाएँ अपने घरों में और घर के बाहर ईष्ट देव के प्रतिमा रूपी थान की पूजा करती हैं। पूजा की तैयारी के लिए विशेष सामग्री जुटाई जाती है और विविध प्रकार के पकवान जैसे पूड़ी, लप्सी आदि बनाकर देवता को भोग लगाया जाता है। यह धार्मिक प्रक्रिया न केवल आध्यात्मिक संतोष देती है, बल्कि परिवार के सभी सदस्यों को एकत्रित होकर सामूहिक प्रयास का अनुभव भी कराती है।
#### सामूहिक सहभागिता और प्रसाद वितरण
पूजा के बाद, इन पकवानों को प्रसाद के रूप में सगे-संबंधियों और पड़ोसियों के बीच बाँटा जाता है। इसे बैना के रूप में भी जाना जाता है, जो समुदाय के भीतर आपसी प्रेम और सद्भावना को बढ़ाता है। प्रसाद वितरण की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और समाज के प्रत्येक सदस्य को इसका इंतजार रहता है।
#### गौशाला पूजन और सवैया की रस्म
आषाढ़ी के उत्सव का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है गौशाला पूजन। इस पूजन में गौशाला की विशेष रूप से पूजा की जाती है और उस स्थान को स्वादिष्ट पकवान अर्पित किए जाते हैं। यह प्रथा न केवल गायों के प्रति समाज की श्रद्धा को दर्शाती है, बल्कि पर्यावरण और पशुधन के प्रति उनकी जिम्मेदारी का भी प्रतीक है।
#### परंपराओं में आधुनिकता का समावेश
समय के साथ, आषाढ़ी के त्योहार में भी कई बदलाव देखने को मिले हैं। आधुनिकता के प्रभाव से अब पूजा करने के ढंग में बदलाव आ गया है अब इसमें पहले से काफी संकीर्ण ता आ रही है।
#### प्रेरणादायक संदेश
आषाढ़ी का त्यौहार हमें हमारी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है। यह न केवल हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का अवसर है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को भी मजबूती प्रदान करता है। राणा थारू समाज की यह परंपरा हमें सामूहिकता, सद्भावना और आध्यात्मिकता का मूल्य समझाती है।
आज के परिवर्तित दौर में, जब जीवन की गति तेज हो गई है और लोग अपने मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं, ऐसे में आषाढ़ी जैसे त्योहार हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ते हैं। यह त्यौहार हमें याद दिलाता है कि भले ही समय बदल जाए, लेकिन हमारी परंपराएँ और मूल्य हमें हमेशा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
राणा थारू समाज की इस समृद्ध परंपरा को संजोना और आने वाली पीढ़ियों को इसके महत्व से अवगत कराना हमारी जिम्मेदारी है। इसी में निहित है हमारी सांस्कृतिक विरासत की सच्ची पहचान और गौरव।
:नवीन सिंह राणा
नोट: उपरोक्त त्यौहार में अनुभव के आधार पर जैसा देखा उसी अनुरूप लिखने का प्रयास किया है इसमें कुछ बदलाव भी अलग अलग पारिवारिक कुलों के अनुसार हो सकता है ।