""गांव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल ""एक संस्मरण
### गाँव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल
:नवीन सिंह राणा द्वारा लिखित संस्मरण जिसमे उन्होने अपने दोस्त के साथबिताए पलों को अनुभव के रुप में लिखने का प्रयास किया है
गाँव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल, जहाँ मनोज शर्मा ने अपने बचपन के अनमोल साल बिताए थे, और वहीं से प्राथमिक शिक्षा पूरी की। जहां की दीवारें और कक्षाएँ जैसे जीवंत इतिहास की किताबें थीं। यहाँ की हर ईंट और हर कोना अपनी एक अलग कहानी कहता था, जिसमें प्रेम, शिक्षा, और अनुशासन की गहराईयों का समावेश था।
मनोज शर्मा, जो अब उसी विद्यालय में अध्यापक थे, बचपन में जब इस विद्यालय में विद्यार्थी थे, तो कभी-कभी बेसर्म की डंडी से पिटाई भी खाते थे। कभी गलती के लिए, तो कभी बिना किसी गलती के भी। परंतु उन डंडियों की मार में भी एक अथाह प्रेम छुपा होता था, जिसे समय के साथ मनोज ने समझा। वह प्रेम, जो एक शिक्षक के हृदय से निकलता है और अपने विद्यार्थियों की भलाई के लिए हर संभव प्रयास करता है।
मनोज के पिताजी, महेश प्रकाश शर्मा, उस समय इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक थे। वे एक कर्मठ और समर्पित शिक्षक थे, जो विद्यार्थियों को न केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा देते, बल्कि जीवन की महत्वपूर्ण सीख भी सिखाते थे। मनोज और उसके दोनों बड़े भाई इस विद्यालय में ही पढ़े थे। महेश जी की मेहनत और स्नेह ने उन्हें एक अनुशासित और गुणी विद्यार्थी बनाया था। लिखावट ऐसी थी मानो हुबहू उतार दिया हो। और मन को मोह लेती थी।
मनोज के सहपाठी नवीन, जो अब शिक्षा विभाग में उनके सहयोगी अध्यापक थे, उनके साथ बिताए बचपन के दिनों को याद करते हुए हमेशा मुस्कुराते। दोनों ने मिलकर बहुत सी शरारतें की थीं, और कभी-कभी मास्टर जी की डांट भी खाई थी। परंतु उन डांटों में भी स्नेह और सिखाने की भावना छुपी होती थी, जो अब समझ में आती है।
विद्यालय का परिवेश भी अपने आप में अद्वितीय था। चारों ओर हरे-भरे पेड़, फूलों की महक, और पक्षियों का मधुर गीत बच्चों के लिए एक प्राकृतिक कक्षा जैसा था। स्कूल के पास बना गोरख नाथ बाबा का मंदिर, उसमे बजती घंटी की टन टन, उसके आस पास खेलना, कभी मंदिर के प्रांगण में खेलना, कभी वहां पर बैठकर पहाड़े रटना, और कभी मंदिर के पास खड़े बेल के पेड़ के नीचे शरारत करना,बरसात के मौसम में, स्कूल के पास बहती छोटी सी नदी में कागज की नाव चलाना, पास के बगीचे में जाकर पेड़ों पर चढ़कर आम तोड़ना, और खुले आकाश के नीचे खेलना—ये सभी यादें मनोज के मन में आज भी ताजा थीं।
वह विद्यालय न केवल शिक्षा का केंद्र था, बल्कि बच्चों के लिए एक सुरक्षित आश्रय भी था। जहाँ उन्हें जीवन के मूल्यों की शिक्षा मिलती थी, और वह अपने सपनों को पंख देने की प्रेरणा पाते थे। मनोज के लिए, उस विद्यालय में वापस आकर अध्यापक बनना, जैसे एक सपने के पूरा होने जैसा था। वह अपने पिताजी के पदचिन्हों पर चलते हुए, उसी विद्यालय में शिक्षा दे रहे थे, जहाँ उन्होंने अपने जीवन की पहली सीख प्राप्त की थी।
मनोज की यह यात्रा, न केवल एक अध्यापक बनने की थी, बल्कि एक गुरु के स्नेह और अनुशासन को समझने और उसे आगे बढ़ाने की थी। उनके पिताजी का शिक्षा के प्रति समर्पण और प्रेम, जो कभी बेसर्म की डंडी में छुपा रहता था, अब उनके दिल और काम में स्पष्ट झलकता था।
गाँव नोगवा नाथ का प्राइमरी स्कूल, मनोज के लिए सिर्फ एक विद्यालय नहीं था, वह एक पवित्र स्थल था, जहाँ जीवन की सबसे महत्वपूर्ण सीखें मिली थीं, और जहाँ वह आज भी उन सीखी हुई बातों को आगे बढ़ा रहे थे। यह कहानी, शिक्षा और प्रेम के बीच के गहरे संबंध को समझने और सम्मानित करने की है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी एक अमूल्य धरोहर की तरह आगे बढ़ती है।
: नवीन सिंह राणा