धरोहर की जमीन: राणा थारू समाज की ज्वलंत घटना पर आधारित कहानी
### **धरोहर की जमीन**
नवीन सिंह राणा की कलम से
उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में बसे एक छोटे से गांव में, राणा थारू समाज के लोग अपने पुराने रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ शांतिपूर्वक जीवन बिता रहे थे। गांव के केंद्र में स्थित एक विशाल बरगद का पेड़ उन सभी के लिए धरोहर और एकता का प्रतीक था। इसी गांव में रहते थे वृद्ध किसान रघुनाथ सिंह राणा और उनका परिवार।
रघुनाथ सिंह राणा अपने परिवार के साथ एक छोटी सी जमीन पर खेती करते थे। उनकी जमीन पीढ़ियों से उनके पास थी और वह इसे अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मानते थे। उन्होंने हमेशा अपने बच्चों को भी यही सिखाया था कि जमीन ही हमारी असली धरोहर है और इसे बचाकर रखना हमारा कर्तव्य है।
लेकिन बदलते समय के साथ, गांव में भू माफियाओं का दबदबा बढ़ता जा रहा था। शहर के बड़े व्यापारी और बिल्डर गांव में आकर जमीन खरीदने की कोशिश करने लगे। वे किसानों को बड़े-बड़े वादे और मोटी रकम का लालच देकर उनकी जमीनें खरीदने की कोशिश करते थे। रघुनाथ सिंह के गांव में भी इन भू माफियाओं की नज़रें जम चुकी थीं। क्योंकि उनका गांव शहर के एक मील की दूरी पर था।
रघुनाथ सिंह राणा के पड़ोसी महेश सिंह राणा जो काफी समझदार और शिक्षित थे, ने कई बार रघुनाथ सिंह राणा को समझाया कि ये भू माफिया उनके लिए खतरा हैं। लेकिन रघुनाथ सिंह राणा ने कभी भी अपनी जमीन बेचने की सोची नहीं थी। वह अपनी जमीन से बेहद लगाव रखते थे और इसे अपने पूर्वजों की धरोहर मानते थे।
एक दिन, गांव में एक बड़े भू माफिया की गाड़ी आकर रुकी। उन्होंने रघुनाथ सिंह राणा से मिलकर उनकी जमीन खरीदने की बात की और बदले में एक मोटी रकम की पेशकश की। रघुनाथ सिंह राणा ने साफ मना कर दिया। लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपने लोगों को भेजकर रघुनाथ सिंह राणा के बच्चों को बहकाने लगे। उनके बेटे रामू सिंह और बेटी गीता राणा को शहर में रहने का सपना दिखाया गया और बड़े-बड़े सपने दिखाकर उन्हें जमीन बेचने के लिए राजी कर लिया।
रामू सिंह और गीता राणा ने अपने पिता से बिना पूछे ही कागज़ात पर साइन कर दिए। रघुनाथ को जब इस बात का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उन्होंने अपने बच्चों को समझाने की कोशिश की कि जमीन हमारी धरोहर है और इसे बेचकर हम अपनी जड़ों से कट जाएंगे। लेकिन पैसे के लालच में रामू सिंह राणा और गीता राणा ने उनकी एक न सुनी।
जमीन बिक चुकी थी और रघुनाथ सिंह राणा का परिवार अब गांव में रहने की जगह ढूंढ रहा था। रघुनाथ का दिल टूट चुका था। उन्होंने अपने बच्चों को समझाने की कोशिश की, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। धीरे-धीरे, रघुनाथ सिंह राणा की जमीन पर उस माफिया ने एक बड़ी इमारत खड़ी कर दी और गांव के अन्य किसानों की जमीनें भी खरीद लीं।
रघुनाथ सिंह राणा का परिवार अब शहर में एक छोटे से कमरे में रह रहा था। उनके पास पैसे तो थे, लेकिन वह सुख-शांति नहीं थी जो अपने गांव और जमीन पर थी। समय बीतता गया और रघुनाथ का स्वास्थ्य भी गिरता गया। उनकी चिंता थी कि उनकेनोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद बच्चों की अगली पीढ़ी गरीबी में जीने को मजबूर हो जाएगी क्योंकि उन्होंने अपनी सबसे बड़ी धरोहर खो दी थी।
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जमीन केवल एक संपत्ति नहीं, बल्कि हमारी जड़ें और पहचान है। इसे बचाकर रखना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी इसका लाभ उठा सकें और इसे समझ सकें। रघुनाथ सिंह राणा की कहानी एक चेतावनी है उन सभी के लिए जो अपनी धरोहर को खोने के कगार पर हैं।
:नवीन सिंह राणा
नोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद