""परम्पराओं की पहिचान ""राणा थारू समाज की पारंपरिक वस्त्रों व त्यौहार पर आधारित कहानी

""परम्पराओं की पहिचान ""
Published by Naveen Singh Rana 

उत्तराखंड की तराई क्षेत्र के एक छोटे से गांव में, जहाँ हरे-भरे खेतों की महक और चहचहाते पक्षियों की ध्वनि वातावरण को मंत्रमुग्ध कर देती थी, वहीं राणा थारू समाज की समृद्ध संस्कृति और परंपराएँ अपनी अद्वितीय छटा बिखेरती थीं। इस गांव में, एक घर में दादी-नानी की कहानियों के संग जिया करते थे देवू और सीमा, दो भाई-बहन, जिनके ह्रदय में अपने समाज की परंपराओं के प्रति गहरी आस्था थी। क्योंकि उनके पिता जी और मम्मी उन्हे संस्कार युक्त जीवन देने में  लगे थे, भले ही बड़े बड़े खेत उनके नही थे, ऊंची ऊंची अट्टालिका नही है, फिर भी सुकून के साथ घर में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे थे।

#### कहानी की शुरुआत

    गांव में हर साल की तरह इस बार भी तीज महोत्सव की तैयारियाँ जोरों पर थीं। यह वह समय था जब पूरा गांव एक साथ मिलकर अपने पारंपरिक वस्त्र और आभूषणों में सजा हुआ नजर आता था। देवू और सीमा भी इस महोत्सव का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, क्योंकि इस साल उनके माता-पिता ने उन्हें नई पारंपरिक पोशाकें दिलाने का वादा किया था। 

#### दादी की शिक्षा

    महोत्सव के कुछ दिन पहले, एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और आकाश नारंगी रंग में रंगा हुआ था, तब दादी ने बच्चों को अपने पास बुलाया। उनके हाथों में एक पुरानी घाघरी और एक चांदी का कड़ा था। दादी ने बच्चों को अपने पास बिठाया और कहने लगी, "यह घाघरी और यह कड़ा हमारी संस्कृति और परंपरा की धरोहर हैं। इन्हें पहनना सिर्फ हमारी पहचान नहीं है, बल्कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजना भी है।"यदि हम अपनी परम्परा और संस्कृति से जुड़े इन धरोहर को भूल जायेंगे तो भविस्य में हमारी क्या पहिचान होगी।

#### नई पोशाकों की खरीदारी

  अगले दिन, देवू और सीमा अपने माता-पिता के साथ बाजार गए। सीमा ने एक सुंदर, रंग-बिरंगी घाघरी   चुनी, जिस पर बारीक कढ़ाई की गई थी। उसने अपनी माँ से कहा, "माँ, इस  घाघरी  में मैं दादी जैसी लगूँगी।" माँ ने मुस्कुराते हुए उसे गले से लगा लिया। वहीं देवू ने सफेद धोती और कुर्ता चुना, और सर में बांधने के लिए मुडेसा और चांदी का एक कड़ा भी लिया। उसने गर्व से कहा, "मैं भी दादी के कड़े जैसा ही पहनूंगा।"पापा न नही कर पाए।

#### महोत्सव का दिन

  महोत्सव का दिन आ गया। पूरा गांव पारंपरिक वस्त्रों और आभूषणों से सजा हुआ था। देवू और सीमा भी अपने नए वस्त्र और आभूषण पहनकर बहुत ही खुश थे। दादी ने सीमा के माथे पर मांगटीका लगाया और कहा, "अब तुम हमारी संस्कृति की असली पहचान हो।" वहीं देवू ने अपने हाथ में चांदी का कड़ा पहनकर दादी के पास जाकर कहा, "दादी, आज मैं भी आपकी तरह वीर लग रहा हूँ।"

#### भावुक समापन

देवू और सीमा ने जब अपने पारंपरिक वस्त्रों और आभूषणों में सजे हुए खुद को देखा, तो उनकी आँखों में गर्व और आस्था की चमक थी। उन्होंने महसूस किया कि इन वस्त्रों और आभूषणों के माध्यम से वे अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रख रहे हैं। महोत्सव के दौरान, उन्होंने अपने नृत्य और गीतों के माध्यम से अपने समाज की धरोहर को प्रस्तुत किया और गाँव के बुजुर्गों से आशीर्वाद प्राप्त किया।

उस शाम, जब महोत्सव समाप्त हुआ और सब लोग अपने घर लौट रहे थे, देवू और सीमा ने अपने दादी-नानी से कहा, "हम हमेशा अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजकर रखेंगे, क्योंकि ये ही हमारी असली पहचान हैं।" दादी ने उन्हें गले लगाकर कहा, "तुम्हारे माध्यम से हमारी धरोहर सदियों तक जीवित रहेगी।"

### निष्कर्ष

इस प्रकार, देवू और सीमा ने अपने पारंपरिक वस्त्रों और आभूषणों के माध्यम से न केवल अपनी संस्कृति और परंपराओं को अपनाया, बल्कि उनके प्रति गहरा सम्मान और प्रेम भी दर्शाया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारी जड़ें और हमारी परंपराएँ हमें एक विशेष पहचान देती हैं, जिसे हमें सहेजना और संवारना चाहिए। और अगली पीढी को भी यह बताना चाहिए कि हमारी अमूल्य धरोहर हमारी संस्कृति और परंपराए है।

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