स्वीकृति का सुख": राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी :नवीन सिंह राणा की कलम से
"स्वीकृति का सुख": राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी
:नवीन सिंह राणा की कलम से
राणा थारू समाज के एक छोटे से गाँव में, सिया नाम की एक लड़की रहती थी। सिया राणा का परिवार मेहनती और ईमानदार था, लेकिन आर्थिक दृष्टि से उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ता था। सिया ने बचपन से ही अपने माता-पिता को कठिन परिस्थितियों में काम करते देखा था, परंतु उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी। क्योंकि गांव का जीवन और वह भी छोटी मोटी खेती जीवन को और मुस्किल बना देता है।
सिया राणा के गाँव में ही एक और परिवार था, जो काफी संपन्न था। उस परिवार की बेटी, अन्वी राणा, सिया राणा की सहपाठी थी। अन्वी के पास हर वह चीज थी जो सिया को एक सपने की तरह लगती थी – सुंदर कपड़े, महंगे खिलौने, और सुख-सुविधाओं से भरा जीवन। सिया के मन में अक्सर यह सवाल उठता कि क्यों उनके पास वह सब नहीं है जो अन्वी के पास है।
एक दिन, सिया राणा अपनी माँ के साथ खेत में काम कर रही थी। थकावट और निराशा ने उसे घेर लिया। उसने अपनी माँ से कहा, "माँ, क्यों हम इतने गरीब हैं? क्यों हमारे पास वो सब नहीं है जो अन्वी के पास है?"हमारा छोटा सा घर, बैल और बैल गाड़ी, छोटे छोटे खेत, मेरे पास साइकिल भी नहीं है, पर अन्वी राणा का बड़ा सा घर, उसके पापा के पास कार भी है, अन्वी के पापा उसका हर साल बड़ा सा केक और गिफ्ट उसके जन्म दिन पर लाते हैं, उसके पास घर पर खेलने के लिए बहुत सारी चीजे होती है, उसके पापा ने उसे फिर नई साइकिल दिलवाई है, और मेरे पास तो साइकिल ही नहीं है।
उसकी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "सिया, हर किसी का जीवन अलग होता है। प्रकृति ने हमें जो दिया है, उसे स्वीकारना और सम्मान करना सीखो। दूसरों की संपन्नता देखकर दुखी मत हो। हमारी स्थिति और हमारी मेहनत ही हमारा सम्मान है।"
सिया ने माँ की बातों को ध्यान से सुना, लेकिन उसे समझने में समय लगा। कुछ ही दिनों बाद गाँव में एक बड़ा मेला लगा। सभी लोग वहाँ पहुँचे, और सिया ने देखा कि अन्वी भी अपने परिवार के साथ वहाँ थी। अन्वी बहुत खुश दिख रही थी, परंतु जब सिया ने गौर से देखा, तो उसकी आँखों में एक अदृश्य उदासी झलक रही थी।
सिया को मौका मिला तो उसने अन्वी से पूछ ही लिया, "तुम्हारे पास सब कुछ है, फिर भी तुम उदास क्यों हो?"
अन्वी ने धीरे से कहा, "सिया, मेरे पास सब कुछ होते हुए भी, मेरे माता-पिता मेरे साथ समय नहीं बिता पाते। वे हमेशा काम में व्यस्त रहते हैं। मुझे अक्सर अकेलापन महसूस होता है।"
सिया को तब एहसास हुआ कि हर किसी के जीवन में अपनी-अपनी चुनौतियाँ और परेशानियाँ होती हैं। उसने अपनी माँ की बातों को सही मायने में समझा। वह जान गई कि उसे अपने जीवन को उसकी वास्तविकता में स्वीकार करना चाहिए और जो कुछ भी मिला है, उसका सम्मान करना चाहिए।
सिया राणा ने अपने जीवन में बदलाव लाना शुरू किया। उसने अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया, अपने परिवार की मदद की और हर छोटी-बड़ी खुशी में संतोष खोजने लगी। धीरे-धीरे, उसकी मेहनत रंग लाई और उसने गाँव के स्कूल में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसकी उपलब्धि ने पूरे गाँव में उसके परिवार का सम्मान बढ़ाया।
इस घटना ने सिया राणा को सिखाया कि जीवन की सच्ची खुशी और संतोष दूसरों की तुलना में नहीं, बल्कि अपने स्वयं के अनुभवों और उपलब्धियों में है। उसने समझ लिया कि सुख, दुःख, पैसा, प्रेम, और सम्मान – यह सभी जीवन के विभिन्न रंग हैं, जिन्हें हमें खुले दिल से स्वीकारना चाहिए।
इस प्रकार, सिया की कहानी ने पूरे गाँव को प्रेरित किया कि वे भी अपने जीवन को सम्मान और स्वीकृति के साथ जीएं। सिया की माँ की सीख पूरे समाज के लिए एक मार्गदर्शक बन गई, और गाँव में हर कोई अपने जीवन को उसकी विविधता के साथ अपनाने लगा।