नशे पर विजय: राणा थारू समाज की सच्ची घटनाओं से प्रेरित कहानी

यह उत्तराखंड में राणा थारू समाज के सुंदर और शांतिपूर्ण गाँव की कहानी है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध था। घने जंगलों से घिरा यह गाँव, बहती नदियों और हरी-भरी वादियों का अद्भुत संगम था। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति के प्रति अत्यंत गर्वित थे। जीवन सरल था और खुशहाल। लेकिन समय के साथ कुछ बदलाव आने लगे, जो गाँव के भविष्य पर एक काला साया बनकर मंडराने लगे।

    गाँव में पारंपरिक उत्सवों के दौरान शराब का सेवन एक सामान्य बात थी। बड़ों के लिए यह आनंद का एक साधन था और समाज इसे स्वीकार करता था। लेकिन जब शराब का यह सेवन सीमाओं को लाँघ गया, तो समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं। कुछ ही समय बाद, गाँव में चरस और गांजे का भी प्रवेश हो गया। लेकिन सबसे बड़ा झटका तब लगा जब समाज के युवाओं में स्मैक की लत फैलने लगी। 

     इसका सबसे बुरा असर महेश सिंह राणा और उसकी पत्नी सुधादेवी पर पड़ा। उनके दो बेटे, मोहन सिंह राणा और सुरेश सिंह राणा बचपन से ही होनहार थे। मोहन पढ़ाई में अव्वल था और सुरेश खेलकूद में। दोनों भाईयों का सपना था कि वे अपने माता-पिता का नाम रोशन करें। परंतु गाँव में बढ़ते नशे के प्रभाव ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया।

   मोहन सिंह राणा ने कॉलेज के दोस्तों के साथ नशे की शुरुआत की। धीरे-धीरे वह पूरी तरह से इसकी गिरफ्त में आ गया। उसका स्वभाव बदलने लगा, पढ़ाई से उसका मन हट गया और घर में झगड़े बढ़ने लगे। सुरेशसिंह राणा ने भी अपने बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलना शुरू कर दिया। दोनों भाइयों की इस स्थिति ने महेश सिंह और सुधा को अंदर से तोड़ दिया।

  सुधा देवी को याद आता था वो समय जब पूरा परिवार हँसी-खुशी के साथ भोजन करता था। अब घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता था। उन्होंने अपने बच्चों को कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन नशे की लत इतनी गहरी थी कि कोई असर नहीं हो रहा था।

   एक दिन, महेश सिंह ने ठान लिया कि वह इस समस्या का समाधान ढूंढकर ही रहेगा। उसने गाँव के बुजुर्गों और सामाजिक नेताओं से मिलकर एक पंचायत बुलाई। पंचायत में उन्होंने नशे के खतरों पर चर्चा की और समाधान खोजने का प्रयास किया। गाँव के कुछ युवाओं ने भी अपनी लत छोड़ने का वादा किया।

    गाँव में एक पुनर्वास केंद्र की स्थापना की गई, जहाँ नशे की लत से जूझ रहे युवाओं का इलाज और काउंसलिंग की जाने लगी। इसके साथ ही, गाँव में जागरूकता अभियान चलाया गया, जिसमें नशे के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।

      मोहन सिंह और सुरेश सिंह को भी इस केंद्र में भर्ती कराया गया। धीरे-धीरे वे अपनी लत से छुटकारा पाने लगे। इस प्रक्रिया में उन्हें अपने माता-पिता का पूरा सहयोग मिला। उन्होंने अपने परिवार और समाज के लिए फिर से जीने की राह चुनी। 

    गाँव के प्रयासों से न केवल मोहन सिंह और सुरेश सिंह बल्कि और भी कई युवा अपनी लत से उबरने में सफल रहे। गांव में फिर से अपनी पुरानी खुशियों की ओर लौटने लगा। महेश सिंह राणा और सुधा देवी के घर में एक बार फिर से हँसी की गूँज सुनाई देने लगी। 

     गांव के लोगों ने यह सिख लिया कि सामूहिक प्रयास और दृढ़ संकल्प से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने अपने गाँव को नशे की बुराई से मुक्त कर एक नई शुरुआत की। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह गाँव अब फिर से अपने वास्तविक स्वरूप में लौट आया, जहाँ हर कोई खुशी और शांति से जीवन जीने लगा।
: नवीन सिंह राणा
नोट: प्रस्तुत कहानी सत्य घटनाओं से प्रेरित पूर्णतः काल्पनिक कहानी है जिसमे आए पात्र और गांव कल्पना के आधार पर लिए गए हैं जिनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं है यदि यह किसी व्यक्ति विशेष से मेल खाता है तो यह संयोग मात्र होगा।धन्यवाद

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