राणा थारु संस्कृति के संरक्षण की ऐतिहासिक पहल धनगढ़ी, कैलाली (नेपाल) में आयोजित राणा थारु कला-संस्कृति सम्मेलन 2025

राणा थारु संस्कृति के संरक्षण की ऐतिहासिक पहल
धनगढ़ी, कैलाली (नेपाल) में आयोजित राणा थारु कला-संस्कृति सम्मेलन का विवरण
संकलन कर्ता: नवीन सिंह राणा





राणा थारु समाज की सांस्कृतिक चेतना और समृद्ध विरासत के संरक्षण एवं विकास हेतु 26 और 27 अप्रैल 2025 को नेपाल के कैलाली ज़िले के धनगढ़ी नगर में एक ऐतिहासिक सम्मेलन एवं अंतरराष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया गया। यह आयोजन ‘राणा थारु कला-संस्कृति संरक्षण एवं विकास मंच, नेपाल’ द्वारा संपन्न हुआ, जिसमें भारत और नेपाल दोनों देशों से राणा थारु समुदाय के विद्वानों, संस्कृतिकर्मियों और समाजसेवियों ने भाग लिया।
संस्कृति से जुड़े उद्देश्य और आयोजन की गरिमा

यह सम्मेलन केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह समाज के भाषाई, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की चिरप्रतीक्षित पुकार का उत्तर था। कार्यक्रम का उद्देश्य राणा थारु समाज की भाषा, लोक साहित्य, परंपराओं, त्यौहारों और ऐतिहासिक मूल्यों को एक साझा मंच पर लाकर नई पीढ़ी को उनकी जड़ों से जोड़ना था।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री नारायण राणा ने की, जो मंच के अध्यक्ष भी हैं। मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के प्रदेश प्रमुख माननीय नजीर मियां उपस्थित रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि रहे माननीय कृपाराम राणा, जो संविधान सभा के सदस्य हैं। कार्यक्रम का संचालन सरस्वती राणा एवं भानु प्रताप राणा ने कुशलता से किया।

पारंपरिक गौरव का सम्मान: स्मृति-चिह्नों की भेंट

सम्मेलन की विशिष्टता उन पारंपरिक स्मृति चिन्हों में थी जो अतिथियों को प्रदान किए गए। इनमें लकड़ी की बनी पारंपरिक चप्पल (कठपोला), घास से निर्मित ‘डलवा’ सिर  लकड़ी की  तख्ती शामिल थीं। इन प्रतीकों ने न केवल सांस्कृतिक गौरव को दर्शाया, बल्कि अतिथियों को समाज की परंपराओं से जोड़ने का कार्य किया।
ऐतिहासिक विमर्श: ‘घर  की बात’ और सांस्कृतिक चिंतन

सम्मेलन में श्री पदम सिंह द्वारा प्रस्तुत  घर की बात' शीर्षक प्रस्तुति ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने राणा थारु समाज को सिंधु घाटी सभ्यता, बौद्ध काल और प्राचीन परंपराओं से जोड़ते हुए इतिहास की परतें खोलीं। उन्होंने राणा भाषा, लोकगीतों, त्योहारों, पारंपरिक भोजन, मछली व मुर्गी पालन जैसे व्यवसायों को समाज की आर्थिक उन्नति से जोड़ा और मिट्टी कला एवं "राणाभोजन ब्रांडिंग जैसे रचनात्मक सुझाव भी प्रस्तुत किए।

धर्म परिवर्तन पर दिल्लू सिंह राणा ने अपने विचार रखते हुए समाज को सतर्क रहने और सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखने का आग्रह किया।

सांस्कृतिक प्रस्तुति और लोक साहित्य का उत्सव

कार्यक्रम के दौरान मोहनी और रति राणा जैसे लोक कलाकारों ने पारंपरिक थारु गीत प्रस्तुत कर वातावरण को जीवंत कर दिया। डॉ. दीप सिंह राणा की अध्यक्षता में लोक साहित्य पर गहन चर्चा हुई। चर्चा का केंद्रबिंदु था—मौलिकता बनाम विविधता, लोक लेखन की शैली, और समाज की आधुनिकता के साथ तालमेल।

भाषा पर विमर्श: पुनर्जागरण की राह

राणा थारु भाषा पर एक विस्तृत पैनल चर्चा का आयोजन हुआ जिसमें धर्मराज राणा, कमल सिंह राणा, राजन , राजकुमार राणा जैसे वक्ता उपस्थित थे। चर्चा में भाषा की उत्पत्ति, उसकी लिपि, अभिलेखन, व्याकरण, शब्दकोश, और बोलचाल में उपयोगिता को लेकर गंभीर विचार व्यक्त किए गए। कमल सिंह राणा ने भाषा को ‘जीवित रखने का सबसे सरल माध्यम बोलचाल’ बताया।

इतिहास की परतें: राणा समाज का अतीत

डॉ. प्रेम सिंह राणा, पदम सिंह राणा, ओमप्रकाश राणा और भक्तराम राणा जैसे वक्ताओं ने समाज के ऐतिहासिक पहलुओं को गहराई से रखा। उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध और उसके बाद हुए पलायन, आदिवासी पहचान बनाम राणा राजपूत मूल पर चर्चा की। भूूमि राणा ने समाज के डीएनए परीक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जिससे ऐतिहासिक साक्ष्य और वैज्ञानिकता को एक साथ जोड़ा जा सके।

द्वितीय दिवस: तृतीय अंतरराष्ट्रीय राणा थारु बैठक

27 अप्रैल को समाज की तृतीय अंतरराष्ट्रीय बैठक संपन्न हुई जिसमें भारत और नेपाल के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक एकता को और मजबूत करने पर बल दिया गया। मुख्य बिंदु थे:

भारत-नेपाल के राणा समाज में रोटी-बेटी संबंधों की समानता।

हर चार माह में साझा बैठक की योजना।

साझा सांस्कृतिक कैलेंडर और प्रतीक झंडे का निर्माण।

सांस्कृतिक एकता दर्शाने वाला साझा पर्व मनाने का प्रस्ताव।


भारत से उपस्थित प्रमुख प्रतिभागी
 डॉ प्रेम सिंह राणा डॉक्टर देव सिंह राणा, श्री दान सिंह राणा, श्री दिल्लू सिंह, नवीन सिंह, मलकीत सिंह, रामकिशोर सिंह, आनंद सिंह 
रहे।

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