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धर्मांतरण का दंश और सनातन की वापसी: अनघा जयगोपाल की प्रेरक यात्रा और राणा थारू समाज की चुनौती"**

**"धर्मांतरण का दंश और सनातन की वापसी: अनघा जयगोपाल की प्रेरक यात्रा और राणा थारू समाज की चुनौती"** ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा एक दिन अचानक मेरी नजर एक आत्मकथा रूपी कहानी पर पड़ी, जिसमे  अनघा जयगोपाल की कहानी एक दर्दनाक और प्रेरणादायक यात्रा के बारे में लिखा हुआ था, मन में जिज्ञासा उठी और उस कहानी को मैने पढ डाला। और उसको पढ़ने के बाद मैं जो समझ पाया है, उसको आपके सम्मुख रखने का प्रयास किया है जो न केवल धर्मांतरण की साजिशों का पर्दाफाश करती है, बल्कि सनातन धर्म के महत्व और उसकी गहन जड़ों को भी उजागर करती है। उनकी आत्मकथा को जब विस्तार से पढ़ा जाता है,  जो उनकी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि कई अन्य लोगों की कहानियों का भी प्रतीक बन जाती है, जो धर्मांतरण के शिकार हुए हैं। **अध्याय 1: बचपन और धार्मिक अनुष्ठान** अनघा जयगोपाल का जन्म केरल के त्रिशूर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनका परिवार परंपराओं और अनुष्ठानों का पालन करता था, लेकिन उन अनुष्ठानों की गहराई या उनके पीछे के अर्थों से अनभिज्ञ था। अनघा भी उसी वातावरण में पली-बढ़ी, जहाँ सनातन धर्म के कुछ प्रतीकात्मक अनुष्ठानों का प...

ग्रामीण और नौकरीपेशा व्यक्तियों के बीच मानसिकता का टकराव: एक विस्तृत विश्लेषण"**✍️ राणा संस्कृति मंजूषा

**"ग्रामीण और नौकरीपेशा व्यक्तियों के बीच मानसिकता का टकराव: एक विस्तृत विश्लेषण"** ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा (श्रीमान महावीर सिंह राणा जी द्वारा दिया गया व्यक्तव्य और उसका विश्लेषण ) महावीर जी द्वारा दिया गया व्यक्तव्य: ""आजकल हमारे यहां क्षेत्र में यह सोच फैली है कि नौकरी वाला व्यक्ति धरातल पर काम नहीं कर रहा है गांव के व्यक्ति को यही लगता है कि जो कर रहे हैं l हम ही कर रहे हैंl हमारे द्वारा ही पूरा गांव को देखा जा रहा हैं l इसीलिए गांव का व्यक्ति नौकरी चाकरी वाले व्यक्तियों को अधिक तवज्जो नहीं देता हैl और अन्य जाति के कोई नौकरी वाले व्यक्ति होते हैं उसे ही तवज्जो देते हैं अपने वालों को तो बिल्कुल शून्य समझते हैं l  थारू नौकरी वाला कोई भी कुछ भी बोलेगा तो उसे यही जवाब मिलेगा की आप अपनी नौकरी छोड़कर यहां आकर देखो तो पता चलेगा l ऐसे वाक्य मैंने आए दिन सुना है l  लेकिन उस व्यक्ति को यह नहीं मालूम है कि जो लोग नौकरी कर रहे हैं वह कितने लोगों को चला रहे हैं l और कितना संघर्ष किया है उन्होंने और वे जहां नौकरी कर रहे हैं वह क्षेत्र से कितने डेवलप वाले क्षेत्र में नौकरी कर ...
राणा थारू समाज में उद्यमिता का प्रवाह कितना आवश्यक? ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  प्रिय साथियों, हम आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात करने के लिए एकत्र हुए हैं—हमारे समाज की दशा और दिशा। हम सभी इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि हर समाज और समुदाय अपने विशेष गुणों और परंपराओं से पहचाना जाता है। इसी संदर्भ में मैं एक विशिष्ट दृष्टिकोण साझा करना चाहूंगा, जिसे नजरअंदाज करना हमारे लिए संभव नहीं है—मुस्लिम समुदाय में उद्यमिता का प्रवाह। ध्यान दें, हर दिन हम जिन रोजगारों को देखते हैं, वे कितने आवश्यक हैं—कपड़ों की मरम्मत हो, गाड़ी की रिपेयरिंग हो, या छोटे-मोटे यंत्रों का संचालन—इन क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय का प्रभुत्व दिखाई देता है। आखिर ऐसा क्यों? कारण साफ है—यह दक्षता बचपन से उनके बच्चों में डाली जाती है। बाल्यकाल से ही उन्हें छोटे-छोटे कार्यों में निपुण बनाया जाता है, और यह निपुणता उम्र के साथ परिपक्व होती जाती है।  दूसरी ओर, हमारे समाज के कुछ हिस्से अपने बच्चों को तथाकथित 'पब्लिक स्कूल' में भारी फ़ीस भरकर पढ़ाते हैं, लेकिन नतीजा क्या होता है? बच्चे यह सोचने लगते हैं कि उनके ...

क्यों जानना जरूरी है मंच के बारे में यह भी?

राणा थारू युवा मंच संबद्ध राणा थारू युवा जागृति समिति के बारे मे कुछ मेरे अनुभव आप सभी के साथ शेयर करने का प्रयास कर रहा हूं आशा है आप सभी को कुछ जानकारी प्राप्त होगी। राणा थारू युवा मंच प्रारंभ से अब तक  Written and edited by Naveen Singh Rana  मुझे वह दिन याद है । शायद उस समय मुझे यह पता नहीं था कि जिस यात्रा पर मै निकलने वाला हूं वह यात्रा मुझे यहां तक ले आयेगी। बहुत सारे उतार चड़ाव इस यात्रा में आए।, बहुत कुछ पाने की लालसा में कभी कभी बहुत कुछ खोना भी पड़ जाता है ऐसा मैंने पहले कभी सोचा नहीं था। मै अन्य लोगों की तरह ही व्यस्त था अपनी नौकरी और घर परिवार की उधेड़ बुन में। खुश था क्योंकि उस समय मेरी खुशी का पैमाना सिर्फ मेरा परिवार था । मुझे न तो समाज की चिंता थी न किसी संघठन की। न किसी सदस्य के रूष्ट होने की चितां थी और न किसी संघठन को मजबूत बनाकर उसे मुकाम तक ले जाने की चिंता। न समिति द्वारा संचालित बायलॉज और संचालित कार्यक्रमों की चिंता थी और न हर महीने समिति को मजबूती देने हेतु मासिक सहयोग देने की।         लेकिन एक दिन, जेठ माह की तेज तर्रार लू और तपती...

डकैतों का आतंक और राणा थारू समाज की गाथा( सच्ची घटनाओं पर आधारित बड़े बुजुर्गो की स्मृतियों से सहेजी गई कहानी)

डकैतों का आतंक और राणा थारू समाज की गाथा Written and Published by Naveen Singh Rana  आज से लगभग एक सदी पहले, राणा थारू समाज के गांव समृद्धि और खुशहाली से परिपूर्ण थे। उन दिनों यह समाज अपने धान के खेतों, घने जंगलों और अनमोल प्राकृतिक संसाधनों, पशु पालन से होने वाली चांदी के सिक्कों की आय के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था। यह धनी और संपन्न गांव डकैतों के लिए एक आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे, ये डकैत रात के अंधेरे में अक्सर गांव के सबसे धनी परिवारों पर धावा बोलते और सभी सद्स्यों को कब्जे में लेकर घर का सारा खजाना लूट ले जाया करते थे, अंग्रेजो का जमाना था लेकिन तराई के घने जंगलों तक अंग्रेज़ी सेना का आसानी से पहुंच पाना संभव न था। और हमारे लोगो के पास सिर्फ लाठी डंडे या भाले ही हुआ करते थे, और डाकू बंदूक के आगे सभी को भयभीत कर दिया करते थे।       एक गांव धन समृद्धि से पूर्ण था जिसका  मुखिया, राजपूत बलदेव सिंह राणा अपनी सूझबूझ और नेतृत्व क्षमता के लिए जाना जाता था। उनके नेतृत्व में गांव के लोग एकजुट थे और अपने गांव की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। लेकिन डकैतों की संख्या...

वर्तमान परिपेक्ष्य में एक वार्ता: राणा संस्कृति मजूषा के साथ

वर्तमान परिपेक्ष्य में एक वार्ता: राणा संस्कृति मजूषा के साथ  संकलन कर्ता: नवीन सिंह राणा  **स्थान:** राणा संस्कृति मंजूषा ने आज आयोजित किया संवाद। स्थल कंजाबाग गाँव का मुख्य चौपाल। वृक्षों के नीचे लगी चारपाइयों पर दिल्लू सिंह, महावीर सिंह और पुष्पा राणा बैठे हैं। गाँव के कुछ और लोग पास बैठे सुन रहे हैं। सभी के मन में चिंता है कि आने वाले समय में थारू समाज किस दिशा में जा रहा है और किन मुद्दों पर काम करना जरूरी है। --- नवीन सिंह राणा: राणा संस्कृति मंजूषा द्वारा अयोजित इस संवाद कार्यक्रम में आप सभी को राम राम और स्वागत। आज के संवाद कार्यक्रम में उपस्थित सभी समाज चिंतक बधाई के पात्र है। श्रीमान दिल्लू जी से निवेदन है कि आज के संवाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाएं । **दिल्लू सिंह:** (गहरी सांस लेते हुए) "भाई, समाज को लेकर मेरी चिंता बढ़ती जा रही है। धर्मांतरण की समस्या विकराल होती जा रही है। लोग अपनी आस्था और परंपराएँ खोते जा रहे हैं। धीरे-धीरे हमारे त्योहारों में शिरकत करने वाले लोग घटते जा रहे हैं। जब हम अपनी पहचान को भूलते जाएंगे, तो समाज का क्या होगा?" **महावीर सिंह:** (सिर हिलाते ...

**"संस्कृति के प्रहरी: थारू समाज की एकता और जागरूकता की ओर एक नई दिशा"**राणा संस्कृति मंजूषा में परिचर्चा: एक संवाद

"संस्कृति के प्रहरी: थारू समाज की एकता और जागरूकता की ओर एक नई दिशा" **राणा संस्कृति मंजूषा में परिचर्चा: एक संवाद** संकलन कर्ता नवीन सिंह राणा  **(पृष्ठभूमि: हरी-भरी वादियों और पवित्र सरयू नदी के किनारे, नवीन सिंह राणा, श्रीमती पुष्पा राणा, सचिन सिंह राणा, दिल्लू सिंह राणा और महावीर सिंह राणा बैठकर अपने समाज की समस्याओं और सांस्कृतिक बदलावों पर गहन चर्चा कर रहे हैं। पक्षियों की चहचहाहट और शांत वातावरण में यह वार्तालाप प्रारंभ होती है।)** नवीन सिंह राणा: (हल्की सी मुस्कान के साथ) राणा संस्कृति मंजूषा के सानिध्य में आप सभी समाज शुभचिंतकों का हार्दिक स्वागत अभिनंदन है, आज हम सब इस सरयू नदी के किनारे अपने समाज के संबंध में विचार विमर्श करने हेतु उपस्थित हैं। मैं आप सभी से आशा करता हुं कि हमारी यह चर्चा राणा समाज के लिय मार्गदर्शन का कार्य करेगी। सबसे पहले मैं पुष्पा राणा जी से निवेदन करना चाहूंगा कि आप आज की इस परिचर्चा का श्री गणेश करें। **पुष्पा राणा:** (गहरी सांस लेते हुए) "देखिए, भैया, ये जो धर्मांतरण की समस्या है, वह हमारे समाज को अंदर से कमजोर कर रही है। हम जिस सांस...

पुष्पा राणा जी से वार्ता with राणा संस्कृति मंजूषा

### **राणा संस्कृति मंजूषा: पुष्पा राणा जी से वार्ता** संकलन कर्ता: नवीन सिंह राणा  **नवीन सिंह राणा (सवाल):** पुष्पा जी नमस्ते, राणा संस्कृति मंजूषा आपका हार्दिक स्वागत करता है। आशा है हमारे पाठकों के लिय आज आप बेहतरीन जानकारियां लाई होंगी। मेडम जी, राणा संस्कृति में देवताओं की पूजा और रीति-रिवाजों के बारे में बहुत कुछ सुना है। आपने जिक्र किया कि कुछ लोग ग़लत धारणाएं फैला रहे हैं कि देवता पूजन के समय एक विशेष गीत गाया जाता है। कृपया इस पर विस्तार से बताइए। **पुष्पा राणा (जवाब):** राणा संस्कृति मंजूषा के पाठकों को मेरा नमस्ते। बिल्कुल नवीन जी, यह एक महत्वपूर्ण विषय है। देवता पूजन के समय कुछ ग़लतफहमियां फैलाई जा रही हैं कि पूजा के दौरान "बन जयिये, बन जयिये ख्याल हमारो बन जयिये" गाना गाया जाता है। लेकिन यह पूरी तरह से ग़लत है। देवताओं की पूजा के समय इस प्रकार का कोई गाना नहीं गाया जाता। यह गाना स्वांग (नाटकीय प्रस्तुति) के दौरान गाया जाता है, जिसमें मनोरंजन और अभिनय का तत्व होता है। देव पूजन के समय हम देवताओं से हाथ जोड़कर विनती करते हैं, और उन्हें श्रद्धा से प्रसाद अर्पित करते...

Historical Historical conversation between Pushpa Rana and Naveen Singh Rana**compiler✍️ Naveen Singh Rana

Historical Historical conversation between Pushpa Rana and Naveen Singh Rana** compiler ✍️ Naveen Singh Rana (*Pushpa Rana ji is giving information about the traditions of Rana Rajputs to Naveen Singh Rana as historical evidence.*) **Pushpa Rana:** Naveen, it is important to know that we are displaced descendants of Rana Rajputs. Our worship system also follows this tradition. It was mandatory to establish Shakti Sthal, i.e. Maa Bhavani, inside and on the outer border of every fort or settlement. Even today this tradition is followed completely in our society. Before the first Meera Barha Rana settlement was established, Maa Bhavani was established in Kusmauth, which is called *Bhumsen*. This place was built from the soil of the motherland, so its importance is immense. **Naveen Singh:** What is the significance of this Bhumsen tradition, Pushpa ji? **Pushpa Rana:** The importance of Bhumsen is that it was a symbol of their motherland for the displaced people. Bhumsen was establish...

meeting and some memories: A conversation

meeting and some memories: A conversation (Some memories of a respected elder of Rana Tharu society through conversation with Mr. Surjit Singh Rana Ji) ✍️ Compiler Naveen Singh Rana Surjit Singh: Sir, you have had a long experience with this Rana Tharu community. You have seen this community and its seniormost organization grow from a seed to a tree. How do you view some of your forgotten experiences? Peeling back the layers of his memories, a respected elder of the society said: “Surjeet ji, when I look back, the journey of our Rana Tharu community fills my heart with pride. I remember when we first gathered for the meeting of ‘Nogwan Thaggu Vikas Samiti’. It was the year 1961, and the condition of our community was very simple—limited resources, limited education, and struggle everywhere. But there was one thing that was unlimited—our hopes and our dreams. The determination of Om Prakash Singh Rana ji and his companions like Ramesh Chandra Rana, Bahadur Singh Rana and Madan Singh Ran...

श्री मति पुष्पा राणा जी और नवीन सिंह राणा के बीच ऐतिहासिक वार्तालाप**

**पुष्पा राणा और नवीन सिंह राणा के बीच ऐतिहासिक वार्तालाप** संकलन कर्ता  ✍️ नवीन सिंह राणा  (*श्रीमती पुष्पा राणा जी नवीन सिंह राणा को ऐतिहासिक प्रमाण स्वरूप राणा राजपूतों की परम्पराओं की जानकारी दे रही हैं।*) नवीन सिंह: "नमस्ते, मैडम जी ! राणा संस्कृति मंजूषा में आपका स्वागत है।आप समय समय पर हमारे समाज के लोगों को अपनी राणा संस्कृति और इतिहास की जानकारी देती रहती हैं, आज हमारे पाठकों के लिय कोन सी नई जानकारी प्रस्तुत कर रहीं हैं।" **पुष्पा राणाजी:  "नमस्ते नवीन जी, राणा संस्कृति मंजूषा के सभी सम्मानित पाठकों को मेरा प्रणाम। आशा है आप सभी कुशल मंगल से होंगे। आज  यह जानना ज़रूरी है कि हम राणा राजपूतों के विस्थापित वंशज हैं। हमारी पूजा पद्धति भी इसी परम्परा का अनुसरण करती है। हर किले या बस्ती के अंदर और बाह्य सीमा पर शक्ति स्थल, यानी माँ भवानी की स्थापना करना अनिवार्य होता था। आज भी हमारे समाज में इस परंपरा का पूरी तरह से पालन किया जाता है। सबसे पहले जब मीरा बारह राणा बस्ती बसाई गई थी, उससे पूर्व कुसमौठ में माँ भवानी की स्थापना की गई थी, जिसे *भूमसेन* कहा जाता है। इस स...

पुस्तक समीक्षा: "Global Genocide of Indigenous Peoples"****लेखक:** इस पुस्तक के लेखक ने सम्पूर्ण विश्व के जनजातीय समाज की दशा और विशेषकर उनके बच्चों की वर्तमान परिस्थिति पर गहनता से प्रकाश डाला है।

**पुस्तक समीक्षा: "Global Genocide of Indigenous Peoples"** **लेखक:** इस पुस्तक के लेखक ने सम्पूर्ण विश्व के जनजातीय समाज की दशा और विशेषकर उनके बच्चों की वर्तमान परिस्थिति पर गहनता से प्रकाश डाला है।  **विषयवस्तु:**  इस पुस्तक में वर्णित "Global Genocide of Indigenous Peoples" का मूल विषय आदिवासी समाज के बच्चों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्थिति पर केंद्रित है। यह पुस्तक उस हिंसा और उत्पीड़न पर चर्चा करती है, जो विश्वभर के जनजातीय समाज के लोग और उनके बच्चे ऐतिहासिक और समकालीन दोनों रूपों में झेल रहे हैं। पुस्तक में बच्चों के शिक्षा के अधिकारों से वंचित होने, उनकी पहचान खोने और उनकी सांस्कृतिक धरोहर के नष्ट होने जैसी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि किस प्रकार आधुनिक समाज और सरकारें, औद्योगिकीकरण, भूमि अधिग्रहण और संसाधनों के दोहन के नाम पर आदिवासी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। वे बच्चे जो प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित जीवन जी रहे थे, अब उन्हीं संसाधनों से वंचित हो रहे हैं और उनके सामने अस्तित्व का संकट...

संस्मरण: आदिवासी और वनवासी समाज के अदृश्य सूत्र**अजनबी कलम से

**संस्मरण: आदिवासी और वनवासी समाज के अदृश्य सूत्र** एक अजनबी कलम से  जब मैं पहली बार एक घने जंगल के किनारे बसे एक छोटे से गाँव में पहुँचा, तो वहाँ की हवा में एक अलग ही सौंधापन महसूस हुआ। आदिवासी समाज से मेरा परिचय केवल किताबों और समाचारों के माध्यम से हुआ था, लेकिन उस दिन मुझे उनके जीवन का सजीव अनुभव हुआ। गाँव की एक बुजुर्ग महिला ने मेरे स्वागत में कहा, "आप तो शहर के आदमी हैं, लेकिन हमारे पास जंगल है—हमारी आत्मा है।" यह वाक्य मेरे मन में गहरे बैठ गया। यहीं से मेरा सफर शुरू हुआ—आदिवासी और वनवासी समाज को समझने का। उन लोगों के बीच कई दिन बिताने के बाद मैंने महसूस किया कि 'आदिवासी' और 'वनवासी' सिर्फ शब्द नहीं हैं, बल्कि यह समाज की पहचान का प्रतीक हैं। आदिवासी—जो सैकड़ों, बल्कि हजारों साल से इस भूमि के वास्तविक निवासी रहे हैं, और वनवासी—जो जंगल की गोद में बसे हुए, प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर जीवन जीते हैं। कई लोग आदिवासियों और वनवासियों के बीच फर्क को समझ नहीं पाते। मेरा भी यही हाल था। पर जब मैंने उनके बीच रहकर उनकी जीवनशैली देखी, तब यह स्पष्ट हुआ कि आदिवासी समा...

एक मुलाकात और कुछ यादें: एक वार्तालाप

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एक मुलाकात और कुछ यादें: एक वार्तालाप  (श्री सुरजीत सिंह राणा जी के साथ राणा थारू समाज के एक सम्मानित बुर्जुग की कुछ यादें वार्तालाप के माध्यम से) ✍️ संकलन कर्ता नवीन सिंह राणा  सुरजीत सिंह: "श्रीमान जी आपका इस राणा थारू समाज को लेकर एक लंबा अनुभव रहा है, आपने इस समाज और इसके वरिष्ठतम संघठन को एक बीज से लेकर एक वृक्ष बनते देखा है।  अपने कुछ भूले बिसरे अनुभवों को आप कैसे देखते हैं।" समाज के सम्मानित बुर्जुग ने अपनी यादों की परतों को हटाते हुऐ कहा:" सुरजीत जी "जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो हमारे राणा थारु समाज की यात्रा मेरे दिल को गर्व से भर देती है। मुझे याद है, जब हम पहली बार 'नोगवां ठग्गू विकास समिति' की बैठक में जुटे थे। वह समय था 1961 का, और हमारी समाज की हालत बहुत साधारण थी—सीमित संसाधन, सीमित शिक्षा, और हर जगह संघर्ष। लेकिन एक चीज थी जो असीमित थी—हमारी आशाएं और हमारे सपने। ओमप्रकाश सिंह राणा जी का दृढ़ संकल्प और उनके साथ खड़े रमेश चंद्र राणा, बहादुर सिंह राणा और मदन सिंह राणा जैसे साथी—इनकी मेहनत और समर्पण ने हमें एक नई दिशा दी। याद है, पहली बै...

Empowerment of Rana Tharu Society: Economic, Social and Leadership Reforms for a Prosperous Future"**

**"Empowerment of Rana Tharu Society: Economic, Social and Leadership Reforms for a Prosperous Future"** The gradual decline of social respect in the Rana Tharu society over the past few years has become a matter of concern, which cannot be ignored. The most obvious effect of this decline is seen in the status of women. Although education has spread rapidly, and the government has launched many employment and self-employment schemes for women, it is still clear that the women power of the society has not fully received the respect and support it deserves. These schemes have inspired the women of the society to become self-reliant, and many women are now standing on their own feet. Despite this, if we review the situation at the ground level, there appears to be a huge scope for improvement. This improvement is necessary not only for women, but for the entire structure of society. It is very important to consider the economic status of the male section of the Rana Tharu societ...