एक मुलाकात और कुछ यादें: एक वार्तालाप
एक मुलाकात और कुछ यादें: एक वार्तालाप
(श्री सुरजीत सिंह राणा जी के साथ राणा थारू समाज के एक सम्मानित बुर्जुग की कुछ यादें वार्तालाप के माध्यम से)
✍️ संकलन कर्ता नवीन सिंह राणा
सुरजीत सिंह: "श्रीमान जी आपका इस राणा थारू समाज को लेकर एक लंबा अनुभव रहा है, आपने इस समाज और इसके वरिष्ठतम संघठन को एक बीज से लेकर एक वृक्ष बनते देखा है। अपने कुछ भूले बिसरे अनुभवों को आप कैसे देखते हैं।"
समाज के सम्मानित बुर्जुग ने अपनी यादों की परतों को हटाते हुऐ कहा:" सुरजीत जी "जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो हमारे राणा थारु समाज की यात्रा मेरे दिल को गर्व से भर देती है। मुझे याद है, जब हम पहली बार 'नोगवां ठग्गू विकास समिति' की बैठक में जुटे थे। वह समय था 1961 का, और हमारी समाज की हालत बहुत साधारण थी—सीमित संसाधन, सीमित शिक्षा, और हर जगह संघर्ष। लेकिन एक चीज थी जो असीमित थी—हमारी आशाएं और हमारे सपने। ओमप्रकाश सिंह राणा जी का दृढ़ संकल्प और उनके साथ खड़े रमेश चंद्र राणा, बहादुर सिंह राणा और मदन सिंह राणा जैसे साथी—इनकी मेहनत और समर्पण ने हमें एक नई दिशा दी।
याद है, पहली बैठक गुरखुड़आ में स्वर्गीय बब्बल सिंह राणा के घर पर हुई थी। 31 लोग थे वहां, और सभी के चेहरे पर उत्साह साफ दिखाई दे रहा था। हम सबके दिल में एक ही सवाल था—हम अपने समाज के लिए क्या कर सकते हैं? और उसी बैठक में यह तय हुआ कि हम केवल चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि कार्य करेंगे। धीरे-धीरे समाज में एक नई लहर उठने लगी। हमने छोटे-छोटे कदम उठाए, लेकिन वे कदम भविष्य के लिए मील के पत्थर साबित हुए।
1965 में जब राणा थारु परिषद को औपचारिक रूप से पंजीकृत किया गया, तो वह दिन मेरे जीवन के सबसे गौरवपूर्ण क्षणों में से एक था। ऐसा लगा था जैसे हम सभी ने मिलकर अपने समाज के लिए एक आधारशिला रख दी है। गोपी राम राणा, जोगीदास राणा, और बादाम सिंह जैसे महान नेताओं का समर्थन था, जिन्होंने हमें सही दिशा दिखाई।
समाज में बदलाव आना शुरू हुआ। हम सिर्फ शिक्षा या रोजगार की बात नहीं कर रहे थे, बल्कि हम आत्म-सम्मान और समाज की एकता की बात कर रहे थे। हमारे हर कार्यक्रम में, चाहे वह शिक्षा हो या सांस्कृतिक आयोजन, हमने समाज को जागरूक और सशक्त बनाने की कोशिश की। मुझे गर्व है कि हमने अपने समाज की धरोहर को न सिर्फ बचाया, बल्कि उसे नई पीढ़ी को सौंपने का काम किया।
फिर वर्ष 2004-05 में 'थारू विकास भवन' का निर्माण हुआ। वह भवन ईंट-पत्थरों का ढांचा नहीं था, वह हमारी मेहनत और समर्पण का प्रतीक था। समाज के अगुवाकर जैसे लोगों ने इसमें विशेष योगदान दिया। हम सभी के लिए वह भवन हमारे समाज की शक्ति और एकता का प्रतीक बना।
आज जब मैं इस सफर को देखता हूँ, तो समझ आता है कि यह सब आसान नहीं था। कई बार मुश्किलें आईं, लेकिन हमारे बुजुर्गों और युवाओं की एकजुटता ने हमें हर मुश्किल से पार करवाया। समाज के हर व्यक्ति ने इस यात्रा में योगदान दिया, और इसी एकता ने हमें इतना मजबूत बना दिया है।
अब मैं आप सभी से यही कहना चाहता हूँ कि यह सफर अभी खत्म नहीं हुआ है। आज की पीढ़ी को इसे और आगे बढ़ाना है, नई ऊंचाइयों तक ले जाना है। हमें हमारे बुजुर्गों की तरह न केवल सपने देखने हैं, बल्कि उन्हें साकार भी करना है। राणा थारु परिषद केवल एक संस्था नहीं, यह हमारे समाज की आत्मा है। इसे जीवित रखना और इसे और समृद्ध बनाना हमारी जिम्मेदारी है।
"सुरजीत सिंह राणा जी, मैं आपको यह कहता हूँ, कि हमारी यह यात्रा कभी न रुके। हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, और हमारी एकता हमेशा बनी रहे। यही हमारी असली शक्ति है।"
सुरजीत सिंह राणा जी: " बहुत ही अच्छी जानकारी आपने हमे दी, वाकई में आप सभी ने समाज की आधार शिला को मज़बूत किया है और इसी आधारशिला में समाज निरंतर आगे बड़ने का प्रयास कर रहा है। आज की नई युवा पीढ़ी निश्चित ही आपके अनुभवों से सीख लेकर नए राणा थारू समाज के निर्माण में योगदान देगी। आपका पुनः धन्यवाद।"