संदेश

#राणा: थारू: समाजः - इतिहासः, वर्तमानः च भविष्यः

 राणा समाजः - इतिहासः, वर्तमानः च भविष्यः  प्रस्तावना राणा समाजः भारतदेशे प्रतिष्ठितः समाजः अस्ति। अस्य समाजस्य इतिहासः गौरवपूर्णः, सांस्कृतिकः च अस्ति। राणा समाजे वीरता, शौर्यं, नेतृत्वं च सदैव प्रमुखं स्थानं प्राप्तं अस्ति। इदानीं वर्तमानसमाजे राणा समाजस्य भूमिका महत्वपूर्णा अस्ति, तथा भविष्ये अपि अस्य समाजस्य स्थिति उत्कर्षाय स्पृहणीयम् अस्ति।  इतिहासः राणा समाजस्य इतिहासः शौर्यपूर्णः अस्ति। अस्मिन्समाजे महानः योद्धारः, शासकाः च उत्पन्नाः। एते जनाः स्वधर्मे निष्ठाः, स्वदेशे प्रेमयुक्ताः, तथा स्वकर्मणि कटाक्षिणः आसन्। राणा प्रतापः, उदयसिंहः च प्रसिद्धयोद्धारः एतेषां मध्ये मुख्याः सन्ति। एते वीराः स्वराज्यस्य रक्षणार्थं पराक्रमं प्रदर्शितवन्तः। राणा प्रतापः विशेषतः मेवाड़ राज्यस्य रक्षायाः निमित्तं अद्वितीयं साहसं प्रदर्शितवान्, तस्य इतिहासे अनेके शौर्यकथाः सन्ति।  वर्तमानः अद्यतनकाले राणा समाजः शिक्षायाः, व्यापारस्य, सेवायाः च क्षेत्रेषु महत्वपूर्णं योगदानं दत्तवान् अस्ति। समाजे जनाः उच्चशिक्षां प्राप्तवन्तः, तथा विविधकार्ये प्रवृत्ताः सन्ति। अस्मिन्समाजे न केवलं प...

जमीन, गांव और मेरी पहचान: एक राणा थारू किसान की आत्मकथा

जमीन, गांव और मेरी पहचान: एक राणा थारू किसान की आत्मकथा  🖋️नवीन सिंह  मैं एक राणा थारू किसान हूँ। मेरा जन्म उस भूमि पर हुआ, जिसे मेरे पुरखों ने अपने पसीने और श्रम से हरियाली में बदला था। बचपन से ही मैंने अपने पिता और दादा को खेतों में काम करते देखा। उस समय हमारी जमीनें तराई की शान थीं—उपजाऊ, हरी-भरी, और आत्मनिर्भरता का प्रतीक। हमारी जिन्दगी सीधे मिट्टी से जुड़ी थी, और खेतों के बीच बहती हवा में हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का एहसास होता था। लेकिन आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मेरे दिल में एक टीस उठती है। वो जमीन, जो कभी हमारे गौरव का प्रतीक थी, अब पराई हो चुकी है। यह सब कैसे हुआ, इसकी कहानी मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी विडंबना है। जमीन की कीमत और मेरी भूल शुरुआत उस समय से हुई, जब तराई में बाजारों का विस्तार होने लगा। हमारे गांव की जमीन, जो कभी गुमनाम थी, अचानक से लोगों की नजरों में आ गई। बाहरी लोग हमारी जमीन खरीदने के लिए गांव आने लगे। उनके पास पैसे थे, और हमारी आंखों में सपने। मेरे लिए भी यह निर्णय आसान नहीं था, लेकिन जब मेरे बच्चों की पढ़ाई, घर की जरूरतों और महंगाई का ...

खेतों का दर्द: किसान की व्यथा आत्मकथा

खेतों का दर्द: किसान की व्यथा आत्मकथा मैं रामदीन हूं, एक सीधा-सादा किसान। जीवन का हर दिन मैंने अपने खेतों और परिवार के लिए जीया। मेरे पास ज्यादा कुछ नहीं था, लेकिन जो था, वह मेरे लिए सब कुछ था—मेरी तीन बीघा जमीन, जो मैंने अपनी मेहनत से खरीदी थी। यह कहानी मेरी है, मेरे संघर्ष की, मेरी हार की, और उस सबक की, जो मैंने और मेरे गांव ने सीखा। विश्वास पर किया गया सौदा: एक भूल करीब 20 साल पहले की बात है। स्नेहीलाल, जो मेरे गांव का ही एक आदमी था, मुझसे अपनी तीन बीघा जमीन बेचने को राजी हुआ। मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन मैंने अपनी जमा पूंजी और थोड़ा उधार लेकर वह जमीन खरीद ली। सौदा साधारण स्टांप पेपर पर हुआ था। मैंने उस वक्त न तो वकील से सलाह ली, न किसी गवाह को बुलाया। मेरे मन में एक ही बात थी—“हम गांव के लोग हैं, हमारा रिश्ता विश्वास पर टिका है।” उस दिन मुझे लगा कि मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। मैंने उस जमीन पर काम शुरू किया, वहां फसलें उगाईं, और अपने बच्चों के भविष्य के सपने देखे। बीस साल बाद: विश्वास का अंत समय बीता। मेरे खेतों में हर साल फसलें लहलहाती थीं। लेकिन एक ...

समाज, शिक्षा, और विकास: एक नई दृष्टि

समाज, शिक्षा, और विकास: एक नई दृष्टि 🖋️ नवीन सिंह  21वीं सदी में जब दुनिया प्रगति की ओर तेज़ी से बढ़ रही है, हम भी इस बदलाव के हिस्सेदार हैं। पर क्या सिर्फ शिक्षा हमारे समाज की समस्त समस्याओं का समाधान है? शायद नहीं। शिक्षा तब तक प्रभावी नहीं हो सकती जब तक हमारे भीतर जागरूकता, इच्छाशक्ति और अपने समाज को आगे बढ़ाने की ललक न हो। हमारे पूर्वजों ने घने जंगलों और कठिन परिस्थितियों में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी। वे अपनी जमीन, जंगल, और जानवरों की सुरक्षा करते हुए स्वच्छंद जीवन जीते थे। पर आज परिस्थितियां बदल गई हैं। हमारी भूमि, हमारी संस्कृति, और हमारी आजीविका पर बाहरी ताकतों की नजर है। ऐसे समय में हमारा संघर्ष सिर्फ बाहरी चुनौतियों से नहीं, बल्कि आंतरिक कमजोरियों से भी है। आज का समाज लोभ और स्वार्थ में डूबा हुआ है। हम स्वयं अपने सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं। समाज के लोग आपस में लड़ रहे हैं, अपने अधिकारों और कर्तव्यों को भूलकर। हमारी शिक्षा और जागरूकता इस स्थिति में हमारी कितनी मदद कर रही है? यह सवाल उठाना जरूरी है। परिवर्तन की आवश्यकता सच्चा विकास तभी संभव है जब हम अपनी शिक्षा को केवल क...

साहस, विवेक और भूमि की लड़ाई: एक प्रेरणादायक सत्य घटना

साहस, विवेक और भूमि की लड़ाई: एक प्रेरणादायक सत्य घटना 🖋️ नवीन सिंह  घने जंगलो के करीब  बसे एक छोटे से गांव की कहानी है। यह गांव अपनी सादगी, हरियाली और पारंपरिक संस्कृति के लिए प्रसिद्ध था। यहां के लोग सीधे-सादे और विश्वास पर जीने वाले थे। रामदीन भी इन्हीं में से एक था। वह मेहनती किसान था, जिसने अपनी जिंदगी अपने खेतों और परिवार को समर्पित कर रखी थी। विश्वास पर की गई भूमि का सौदा करीब 20 साल पहले, रामदीन ने गांव के ही स्नेहीलाल से तीन बीघा जमीन खरीदी। यह सौदा एक साधारण स्टांप पेपर पर हुआ। कागज में लिखा गया था कि स्नेहीलाल ने रामदीन से पैसे लेकर जमीन दी है। न कोई गवाह था, न रजिस्ट्री हुई। दोनों ने आपसी विश्वास से यह सौदा संपन्न किया। रामदीन ने इस जमीन पर खेती शुरू की और अपनी मेहनत से वहां फसलें उगाईं। वह बेफिक्र था। उसे लगा कि जमीन उसकी हो चुकी है, और भविष्य में कोई समस्या नहीं आएगी। भरोसे पर भारी पड़ा कानूनी पेच समय बीता। 20 साल बाद, स्नेहीलाल की मृत्यु हो गई। अब उनके बेटे गिरधारीलाल ने उस जमीन पर अपना दावा कर दिया। गिरधारीलाल का कहना था, “यह जमीन मेरे पिता की थी। जो पैसे दिए ...

राणा थारू समाज: तराई की धरोहर और विलुप्त होती संस्कृति

चित्र
राणा थारू संस्कृति वीडियो  राणा थारू समाज: तराई की धरोहर और विलुप्त होती संस्कृति 🖋️ नवीन सिंह राणा  तराई की मनोहारी भूमि, जो अपनी हरी-भरी वादियों, बहती नदियों, और शांति से लबालब जंगलों के लिए जानी जाती है, राणा थारू समाज का वह प्राचीन आवास है जिसने न केवल इस भूमि को आबाद किया, बल्कि इसे अपनी समृद्ध संस्कृति और विरासत से अलंकृत भी किया। सदियों से यह समाज अपने मेले, त्यौहार, और परंपराओं के माध्यम से सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में ऊंचाई पर रहा। परंतु आज, समय की तेज रफ्तार और संरक्षण के अभाव ने इन धरोहरों को विलुप्ति की कगार पर ला खड़ा किया है। तराई के मेलों का गौरवशाली इतिहास राणा थारू समाज के इतिहास में मेलों और हाट बाजारों की अद्वितीय भूमिका रही है। ये केवल व्यापार या मनोरंजन के अवसर नहीं थे, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान, सामुदायिक एकता, और परंपराओं के प्रचार-प्रसार के जीवंत मंच थे। उलदन गांव का मेला, देवकला गांव का मेला, चकपुर गांव का मेला, और कैलाश नदी का मेला जैसी परंपराएं समाज के जीवन का हिस्सा थीं। इन मेलों में से, कैलाश का मेला, जिसे स्थानीय लोग चीका घाट का ...

बारह राणा स्मारक: हमारी विरासत का गौरवपूर्ण अध्याय

बारह राणा स्मारक: हमारी विरासत का गौरवपूर्ण अध्याय 🖋️🖋️ नवीन सिंह राणा  नोट: प्रस्तुत संस्मरण रामकिशोर जी की स्मृतियों के आधार पर लिखा गया है। मैं राम किशोर सिंह राणा आज पूरे समाज के सामने पूरी आवाज में चिल्ला चिल्लाकर कहता हूं कि मुझे आज भी याद है वे दिन जब  धूप से तपते मैदानों में, बीहड़ झाड़ियों के जंगलों के बीच, हमारी थारू जनजाति ने एक सपना देखा था—अपनी गौरवशाली विरासत को एक स्मारक के रूप में संजोने का। यह स्मारक केवल ईंट और पत्थर का ढांचा नहीं है; यह हमारे सामूहिक प्रयास, त्याग और समर्पण का जीवंत प्रतीक है। याद आता है वह समय, जब गांव-गांव से ट्रैक्टर भर-भरकर श्रमदान के लिए लोग आते थे। किसी ने 11 रुपए का योगदान दिया, तो किसी ने एक ईंट। माताओं और बहनों ने अपने दहेज का सामान दान किया, कांसा-पीतल के बर्तन, कीमती आभूषण, और घर के पुराने कपड़े—सबकुछ इस सपने को साकार करने के लिए समर्पित कर दिया। यह वह समय था जब हर दिल में केवल एक ही धड़कन थी—बारह राणा स्मारक को पूरा करने की। याद आता है संग्रहालय के लिए वस्तुएं जुटाना। खेतों में इस्तेमाल होने वाले पुराने औजार, विलुप्त हो रहे पार...

परंपरागत धार्मिक और कृषि विधियां: राणा थारु समुदाय की परंपराएं

परंपरागत धार्मिक और कृषि विधियां: राणा थारु समुदाय की परंपराएं 🖋️नवीन सिंह राणा यह जानकारी संग्रहकर्ता ने अपने स्वर्गीय दादा जी से प्राप्त की थी  राणा थारु समुदाय में धार्मिक और कृषि परंपराएं बेहद समृद्ध और विशिष्ट हैं। यहां उनके कुछ प्रमुख त्योहारों, विधियों और मान्यताओं का वर्णन किया गया है: --- पोया: वैशाख का त्योहार समय और विधि: वैशाख महीने के प्रथम सोमवार को सुबह के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पूरब की ओर पीठ और पश्चिम की ओर मुंह करके बीज बोने की परंपरा है। एक लोटा पानी, दो मुट्ठी धान, लौंग का जोड़ा, और थोड़ा सा शहद ले जाकर खेत में एक स्थान पर रख दिया जाता है। बीज बोने के बाद धरती माता से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है। यदि यह दिन यदि बूढ़ा को सोमवार" पड़ता है, तो यह प्रक्रिया आठवें सोमवार तक टाल दी जाती है। दिशा का महत्व: पूर्व और पश्चिम दिशा में मुंह करने का कारण नागों से बचाव माना जाता है। --- हरैतो: अगहन का त्योहार समय और विधि: अगहन के प्रथम गुरुवार को यह विधि की जाती है। इसमें धान की जगह गेहूं के बीज का उपयोग होता है। हल्की जमीन में कुदाल या हल चलाकर पांच या...

राणा शिक्षकों के आत्मसम्मान और एकजुटता पर विचार

राणा शिक्षकों के आत्मसम्मान और एकजुटता पर विचार आज का दिन विशेष रूप से विचलित करने वाला था। यह विचलन किसी बाहरी समस्या का नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर की एक अजीब सी बेचैनी का था। ऐसा महसूस हो रहा था कि मैंने कुछ महत्वपूर्ण खो दिया है—शायद वह विश्वास, वह आत्मसम्मान, जो समाज की एकता और संजीवनी शक्ति का प्रतीक था। मन में विचार आया कि राजनीति, जो कभी समाज को मजबूत करने का माध्यम हुआ करती थी, आज कितनी नीचता पर उतर आई है। ऐसा लग रहा है जैसे यह राजनीति न केवल बाहरी समाज को बल्कि हमारे अपने राणा शिक्षकों को भी कमजोर कर रही है। जब हम खुद अपने आप को नहीं समझते, अपने अधिकारों की कीमत नहीं पहचानते, तब दूसरों के लिए हमें तोड़ना, बांटना कितना आसान हो जाता है। राणा शिक्षकों की विडंबना यह विचार बार-बार मन में उठ रहा है कि राणा शिक्षक आखिर क्यों अपने आत्मसम्मान को परिभाषित नहीं कर पा रहे। जब कोई राजनीतिक दल या गुट हमारे वोटों की ताकत को पहचानता है, तो वह हमसे केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करता है। परंतु, क्या हमने कभी यह सोचा कि हमारा अपना सम्मान और निर्णय कहां है? आज की राजनीति केवल बांटने और तोड़ने तक सीमित ह...

सम्मान की राह

चित्र
सम्मान की राह चलो आज फिर इतिहास रचें, सम्मान की राह पर कदम बढ़ाएं। झुकें न कभी अपनों के आगे, अपनी पहचान को सदा निभाएं। ना झुके राजनीति के उस खेल में, जहां स्वार्थ की बातें होती हैं। हम हैं राणा, एकता हमारी शक्ति, सच्चाई हमारी जोती है। समर्पण से सींचें समाज की जड़ें, हर चुनौती को अवसर मानें। निडर बनें, पर विवेक से चलें, हर बंधन को स्नेह से पहचानें। दबाव में ना खोएं अपनी गरिमा, सम्मान से समझौता ना हो। जो साथी हमें तोड़ना चाहें, उनसे नफरत का रिश्ता ना हो। एकता का दीप जलाएं हर ओर, राणा का नाम ऊंचा करें। छोड़ दें स्वार्थ, अपनाएं समर्पण, सपनों का आकाश सच्चा करें। चुनाव तो बस एक पड़ाव है, मंजिल है समाज का उत्थान। राणा की एकता अमर हो सदा, यही हो हमारे जीवन का गान। 🖋️नवीन सिंह राणा 

कंजा बाग: राणा थारू संस्कृति का संघर्ष और अस्तित्व की चुनौती" एक मंथन

चित्र
 "कंजा बाग: राणा थारू संस्कृति का संघर्ष और अस्तित्व की चुनौती" एक मंथन  ।               काल्पनिक परिदृश्य  कंजा बाग गांव की वर्तमान स्थिति केवल एक सामाजिक बदलाव का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी चेतावनी भी है, जो राणा थारू समाज को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुदा करने की दिशा में संकेत करती है। यह गांव जो कभी हरे-भरे बागों, खेती, और सांस्कृतिक परंपराओं का केंद्र था, धीरे-धीरे उन मूल्यों को खोता जा रहा है जो इस समाज की पहचान थे। समय के साथ, विकास और आर्थिक जरूरतों के कारण राणा समाज के कई लोगों ने अपनी पुश्तैनी जमीनें बेच दीं। बाहरी समुदाय, विशेषकर अन्य धर्म के लोगों ने यहां पर बसना शुरू कर दिया और अब उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। यह जनसंख्या विस्तार केवल क्षेत्रीय सीमाओं में बदलाव का मुद्दा नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संतुलन में भी गहरा असर डाल रहा है। नए बाशिंदों के आगमन और उनकी जनसंख्या वृद्धि से राणा समाज के लोग अपने ही गांव में एक ओर सीमित होते जा रहे हैं। राणा समाज के लोगों के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है...

राणा थारू सांस्कृतिक भाषा प्रतियोगिता

चित्र
राणा थारू सांस्कृतिक भाषा प्रतियोगिता ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  राणा थारू समाज की भाषा-बोली समाज की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस भाषा में न केवल हमारे विचार और भावनाएँ संजोई गई हैं, बल्कि इसमें हमारी परंपराएँ, रीति-रिवाज, और जीवन के कई पहलू शामिल हैं। भाषा के माध्यम से हम अपनी संस्कृति को न केवल अपने लोगों में जीवित रख सकते हैं, बल्कि इसे आने वाली पीढ़ियों तक भी पहुँचा सकते हैं। आज के दौर में, बाहरी भाषाओं का प्रभाव बढ़ने के कारण हमारी मातृभाषा का अस्तित्व खतरे में है। हमारी नई पीढ़ी, आधुनिक शिक्षा और डिजिटल तकनीक की वजह से अपनी ही भाषा से दूर होती जा रही है। इस परिस्थिति में, राणा थारू युवा जागृति समिति का यह कदम अत्यंत सराहनीय है। इस प्रतियोगिता का उद्देश्य सिर्फ एक सामान्य प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि यह एक प्रयास है जो भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक ठोस पहल के रूप में देखा जा सकता है। इस प्रतियोगिता के प्रश्न भाषा के विविध पहलुओं को स्पर्श करेंगे, जैसे हमारे पारंपरिक कृषि यंत्रों का विवरण, उनके भागों के नाम, पारंपरिक भोजन बनाने के तरीके और...

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।।श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा लिखित

चित्र
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।। श्रीमती पुष्पा राणा जी द्वारा लिखित  Published by Naveen Singh Rana  सभी भाई,बंधू एवं मित्रगणों को ज्योति पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। यह देखा जा सकता है कि आज-कल कोई भी तीज त्यौहार, समुदाय विशेष, धर्म विशेष अथवा क्षेत्र विशेष की मान्यताओं के आधार पर नहीं मनाये जाते। हर व्यक्ति, हर क्षेत्र तथा हर समुदाय तक सोशल मीडिया की पहुंच हो जाने के कारण सभी पर्व मीडिया में दिखाये जा रहे तौर तरीकों की नकल करते हुए मनाये जाते हैं जो अक्सर मनोरंजक,लोक लुभावन और व्यवसायिक उद्देश्यों को ध्यान में रख कर दिखाये जाते हैं ।स्वयं को आधुनिक तथा ग्लैमरस दिखाने एवं रील बनाने के चक्कर में लोग इन सबका अंधानुकरण भी करते हैं।  परन्तु आज हम चर्चा करेंगे राणा समाज द्वारा मनाये जाने बाले त्योहार "दिवारी" की , जिसको तथाकथित बुद्धिजीवियों तथा लेखकों द्वारा रहस्यमय बना दिया गया है। हम अक्सर "ल" की जगह "र" अक्षर का उच्चारण करते हैं। अतः दिवाली से दिवारी शब्द प्रचलन में आ गया।लोगों ने लिखा है कि राणा लोग (थारु जनजाति) दीपावली क...

थरुहट की आत्मकथा - आत्म संघर्ष और अस्तित्व की कहानी✍️ नवीन सिंह राणा

चित्र
थरुहट की आत्मकथा - आत्म संघर्ष और अस्तित्व की कहानी ✍️ नवीन सिंह राणा  तराई की उर्वर भूमि में बसा हुआ मैं, थरुहट। आज मुझे लोग ‘थरुआट’ के नाम से जानते हैं, पर मेरी कहानी सदियों पुरानी है। इस भूमि पर राणा राजपूतों ने अपने कदम उस समय रखे, जब उनकी प्यारी वसुंधरा ‘थार’ संकटों के घेरे में थी। मुझे अब भी याद है वे कठिन समय, जब ये लोग अपनी धरा, अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति को छोड़कर यहां, मेरे पास आ बसे थे। वह एक असहनीय पीड़ा का समय था, जब इन्हें अपने अस्तित्व और अपनी संस्कृति के सरंक्षण के लिए अपने घरों को त्यागना पड़ा था। उनके चेहरों पर छाई चिंता, दिलों में धड़कता डर, पर साथ ही, इरादों में एक अटूट संकल्प – मुझे सब कुछ अब भी याद है। जब वे पहली बार आए तो सबसे पहले मेरे एक कोने में, जिसे आज मीरा बारह राणा के नाम से जाना जाता है, पड़ाव डाला। बारह राणा राजपूतों का एक जत्था था, और उनके साथ उनकी प्रजा भी थी। इन राजपूतों ने एक अनकही जिम्मेदारी का बोझ उठाया था – अपने लोगों की सुरक्षा और अपनी विरासत का संजोना। जंगल, दलदल, और बीमारी से घिरी तराई की भूमि में वे घबरा सकते थे, पर उनके इरादों में दृढ...

क्यों जरूरी है संस्कारी शिक्षा हमारी आधुनिक नई पीढ़ी को? एक विचार ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा

क्यों जरूरी है संस्कारी शिक्षा हमारी आधुनिक नई पीढ़ी को? एक विचार ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  हमारे राणा थारू समाज का गौरवशाली इतिहास हमें हमेशा अपने स्वाभिमान और मूल्यवान संस्कारों की प्रेरणा देता है। यह एक ऐसा इतिहास है जो स्वाभिमान, साहस, और नैतिकता की मजबूत नींव पर टिका हुआ है। लेकिन वर्तमान पीढ़ी में जिस प्रकार नैतिक गिरावट देखने को मिल रही है, उसे अनदेखा करना हमारे समाज के लिए अत्यधिक नुकसानदायक हो सकता है। आज, शिक्षित होने के बावजूद, हमारी नई पीढ़ी कई नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से विमुख होती जा रही है। इसका कारण मात्र शिक्षा का अभाव नहीं है, बल्कि संस्कार युक्त शिक्षा की कमी भी है। संस्कार युक्त शिक्षा क्यों आवश्यक है? संस्कार युक्त शिक्षा केवल किताबों में ज्ञान नहीं देती बल्कि एक व्यक्ति को नैतिकता, संयम, सहानुभूति, और विवेक का महत्व भी समझाती है। यह शिक्षा जीवन में सही और गलत के बीच भेद करना सिखाती है और व्यक्ति को समाज के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराती है। इसके बिना, व्यक्ति केवल पढ़ाई में पारंगत हो सकता है लेकिन नैतिक मूल्यों की कमी के कारण गलत निर्णय ले सकता है। संस्कार ...

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज  ✍️नवीन सिंह राणा  मेरा नाम तराई है, और मैं उत्तराखंड के उस क्षेत्र की गाथा हूँ, जो कभी ऋषि-मुनियों की तपोस्थली हुआ करती थी। मेरे आंचल में सीता माता ने वनवास के दिन बिताए, और यहाँ ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। मैंने पांडवों का अज्ञातवास देखा, अर्जुन का पराक्रम भी यहीं का हिस्सा बना जब उसने कौरवों को पराजित कर विराट राजा की गायों को सुरक्षित लौटाया। मेरे घने जंगल और शांत धाराएँ हमेशा से ही वीरों और तपस्वियों का आश्रय स्थल रही हैं। समय के साथ, मेरी भूमि विदर्भ के राजाओं के अधीन आई, जिनके पास अनगिनत पशुधन था। मैंने राजाओं के किले देखे और युद्धों की गूंज सुनी। कीचक का वध मेरे वन-क्षेत्र किच्छा के पास हुआ, और भीमसेन की वीरता का साक्षी मैं बना। फिर गुप्त काल आया और कत्यूरियों का शासन हुआ। उनके काल में मेरी समृद्धि चरम पर थी, लेकिन धीरे-धीरे उठा-पटक ने मुझे त्रस्त कर दिया। मुगलों के आक्रमणों ने मेरी शांति को तोड़ा, और मैं संघर्ष की भूमि बन गई। जब मुगल आए, उन्होंने मेरे हिस्सों पर अधिकार जमाया। अकबर ने मुझे राजा रूद्र चंद को सौंपा, और इस चंदवंश न...

खुशहाल राणा थारू समाज: बुरी आदतों को छोड़कर प्रगति की ओर"

"खुशहाल राणा थारू समाज: बुरी आदतों को छोड़कर प्रगति की ओर" ✍️ राणा संस्कृति मंजूषा  राणा थारू समाज, जो अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। इस समाज की खुशहाली और प्रगति के लिए जरूरी है कि इसके लोग अपनी आदतों और मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाएं। खुशी और संतुलन एक स्थायी प्रक्रिया है, जिसे कई छोटी-छोटी आदतों को बदलकर हासिल किया जा सकता है। इस संदर्भ में कुछ आदतों को छोड़ने का महत्व राणा थारू समाज के लिए गहरे प्रभाव डाल सकता है। 1. ओवरथिंकिंग (अधिक सोचने की आदत छोड़ना) राणा थारू समाज के बहुत से लोग अस्थिर आर्थिक स्थितियों और सीमित संसाधनों की वजह से ओवरथिंकिंग की आदत में फंस जाते हैं। वे भविष्य की अनिश्चितताओं और परेशानियों को लेकर अत्यधिक सोचते हैं, जिससे मानसिक तनाव और चिंता बढ़ती है। इससे समाज के लोग अपनी प्रगति की दिशा में कदम उठाने से डरने लगते हैं। ओवरथिंकिंग छोड़ने से लोगों में आत्मविश्वास और साहस बढ़ेगा, जिससे समाज के युवा और अन्य सदस्य नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैय...

होरी का महत्त्व: परंपरा, इतिहास और विज्ञान✍️ नवीन सिंह

होरी का महत्त्व: परंपरा, इतिहास और विज्ञान ✍️ नवीन सिंह  होली या होरी केवल एक त्योहार नहीं है; यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह रंगों का उत्सव जहाँ धार्मिक और सामाजिक तात्पर्य से जुड़ा है, वहीं यह प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने और परंपरागत पूजा पद्धतियों से भी गहराई से संबंधित है। हमारे समाज में 'मरी होरी' और 'जिंदी होरी' जैसे प्रथाओं का अनोखा सांस्कृतिक महत्व है, जो आज भी कई सवालों को जन्म देता है। राजवीर सिंह राणा और पुष्पा राणा द्वारा साझा किए गए विचार हमें होली के पारंपरिक और वैज्ञानिक पहलुओं से जोड़ते हैं। इस लेख में, हम इन दोनों वक्ताओं के विचारों को विस्तार से समझेंगे और होरी की परंपरा, पूजा पद्धति, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को एक नई रोशनी में देखेंगे। होरी: परंपरा और पूजा होरी, जैसा कि राजवीर सिंह राणा ने विस्तार से वर्णित किया, हमारी प्राचीन परंपरा का हिस्सा है। 'होली' शब्द से बदलकर 'होरी' का उपयोग और 'हुरक माता' की पूजा इस बात का प्रमाण है कि यह त्योहार हमारे समाज में केवल उत्सव से अधिक रहा है। यह हमारी फसलों के पकने और ग...