परंपरागत धार्मिक और कृषि विधियां: राणा थारु समुदाय की परंपराएं

परंपरागत धार्मिक और कृषि विधियां: राणा थारु समुदाय की परंपराएं

🖋️नवीन सिंह राणा
यह जानकारी संग्रहकर्ता ने अपने स्वर्गीय दादा जी से प्राप्त की थी 


राणा थारु समुदाय में धार्मिक और कृषि परंपराएं बेहद समृद्ध और विशिष्ट हैं। यहां उनके कुछ प्रमुख त्योहारों, विधियों और मान्यताओं का वर्णन किया गया है:


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पोया: वैशाख का त्योहार

समय और विधि:
वैशाख महीने के प्रथम सोमवार को सुबह के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पूरब की ओर पीठ और पश्चिम की ओर मुंह करके बीज बोने की परंपरा है।

एक लोटा पानी, दो मुट्ठी धान, लौंग का जोड़ा, और थोड़ा सा शहद ले जाकर खेत में एक स्थान पर रख दिया जाता है।

बीज बोने के बाद धरती माता से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है।

यदि यह दिन यदि बूढ़ा को सोमवार" पड़ता है, तो यह प्रक्रिया आठवें सोमवार तक टाल दी जाती है।


दिशा का महत्व:
पूर्व और पश्चिम दिशा में मुंह करने का कारण नागों से बचाव माना जाता है।



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हरैतो: अगहन का त्योहार

समय और विधि:
अगहन के प्रथम गुरुवार को यह विधि की जाती है। इसमें धान की जगह गेहूं के बीज का उपयोग होता है।

हल्की जमीन में कुदाल या हल चलाकर पांच या सात मुठ्ठी बीज बोए जाते हैं।

प्रक्रिया बाकी तरीके से "पोया" जैसी ही होती है।

यदि यह दिन "बूढ़ा गुरुवार" हो, तो हरतो को अगले गुरुवार तक स्थगित कर दिया जाता है।




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आषाढ़ी पूजा और सवैया

यह देवता पूजन का त्योहार है।

पूजन सामग्री:
लपसी, पूरी,गुल गुला
नारियल, लौंग का जोड़ा, पंचमेवा, अंडा या मुर्गा।

आठवें दिन अथवा रविवार को सवैया बनाई जाती है।




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माघ पूजा

विधि और सामग्री:
यह पूजा आषाढ़ी पूजा की ही तरह की जाती है।

अंतर यह है कि इसमें सवैया नहीं बनाई जाती।




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ईष्ट देवता और पूजन स्थल

राणा थारु समुदाय के पूर्वज गुलू भावर नामक स्थान पर रहते थे, जो बनबसा के निकट है।

यहां ईष्ट देवता का स्थान स्थापित है, जहां लोग जाकर पूजन करते हैं।

घरों में भी पूजन स्थल बनाए जाते हैं।

पूजन स्थल की संरचना:

सबसे ऊपर खाली वृत्तीय,

बीच में भवानी का स्थान,

नीचे नगरिया।


गौशाला में बिस देव और करो दीप की पूजा की जाती है।

अंडा बिस देवता को चढ़ाया जाता है और पूरी कारो देवता को।




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धान और गेहूं की बुवाई की परंपरा

धान और गेहूं की बुवाई सोमवार या गुरुवार को ही शुरू की जाती है।

बुवाई वाले दिन मछली की सब्जी या सांग खाने का रिवाज है।



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अरौंण का महत्व

अरौंण वह अनाज है, जो फसल तैयार होने पर सबसे पहले घर लाया जाता है।

इसे अनाज से अलग कर देवताओं को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

होली का त्यौहार 
फागुन के महीने में जब गेहूं की बालियां आ जाती हैं 
तब उन बालियों को होलिका दहन में भुना जाता है।

चराई का त्यौहार 
चराई का त्यौहार चैत्र के महीने में मनाया जाता था, जब मसूर, सरसों जैसी फसल पककर तैयार हो रही होती हैं।जिसमे पहले दिन मछली मारने का रिवाज था जिसे "चराई की मच्छी" कहा जाता था। दूसरे दिन गांव की महिलाएं, नव वधुएं, भरा रे, कूटबार,पधना, भले मानस आदि सभी भूमसेन में एकत्रित होकर विभिन्न तरह के पकवानों का भोग लगाते हैं। जिसमे अन्य कई तरह के रिवाजों का पालन किया जाता है।



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सत्तू की परंपरा

गर्मी के मौसम में सत्तू का विशेष महत्व था।

सत्तू बनाने की विधि:

जौ को भूनकर पीस लिया जाता है।

इसे गुड़ के शरबत में मिलाकर पिया जाता है।


विशेष निर्देश:

सत्तू जेठ महीने के बाद नहीं बनाया जाता।

सत्तू के बारे में एक कहावत है:
"सत्तू भर्तू कब छोड़े, कब खाएं,
धन कुठे खाएं, कुठे खाएं।"




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यह विवरण हमारे पूर्वजों द्वारा सहेजी गई पारंपरिक जानकारियों पर आधारित है, जो हमारे जीवन में सांस्कृतिक और धार्मिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है।



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