होरी गीत


श्रीमती पुष्पा राणा जी वरिष्ठ प्रबंधक केनरा बैंक लखनऊ हमारे राणा समाज से एक सम्मानित विदुषी महिला हैं जिन्हें हमारी संस्कृति, परम्परा व इतिहास जैसे विषयों में अच्छा ज्ञान है उनके द्वारा लिखित गीत ब्लॉग में प्रस्तुत करने का अवसर मिला। आशा है आप सभी इसको पसंद करेंगें।


होरी गीत

खेलत होरी मगन नदलाल।
संग मे ठिठोली करें ग्वाल वाल।।
भर पिचकारी सखिन को मारी।
 झूठों रोष दिखाय देंवे गारी।।
 छेड़ो न कहें बिरज की नारी।
हमसे ठिठोली पड़ेगी ये भारी।।

काहे को रंग दी चुनर कान्हा लाल।
खेलत होरी मगन नंदलाल......

मन मन में मुसकायें बिहारी।
रार करौ‌ नाहीं गुइयां हमारी।।
राधे के हम और सखियां हमारी।
इत्ती सी बात नहीं समझे अनारी।।

आय मिलावो धिमक धिम ताल।
खेलत होरी मगन नंदलाल......

बरजोरी करत काहे बांके बिहारी।
तूने आज मोरी अंगिया भिगा दी।।
अपने ही रंग में चुनरिया रंगा दी।
घर जाऊं कैसे बताओ बनवारी।।

छोड़ो न छलिया मोहे ऐसे हाल।
खेलत होरी मगन नंदलाल....

मैंया से कहियो वो बारो कन्हैया।
होरी में जबरन पकर ली कलैया।।
नटवर नटखट छोड़ी न बहियां ।
कैसे छुड़ाऊं करुं क्या मैं दैया।।

 रंग दियो जबरन मुंह पे गुलाल।
खेलत होरी मगन नंदलाल .....


तत् थेई थिरकें पकड़कर बहियां।
रास रचाएं सखिन संग कन्हैया।।
ब्रह्माण्ड सकल वाकी लेवे बलैया।
हराय गयी सुध बुध सबै की मैया।।

 चलाय गयो जादू जसुदा को लाल।
खेलत होरी मगन नंदलाल....…

रचित द्वारा 
श्रीमती पुष्पा राणा


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धन्यवाद
🙏
नवीन सिंह राणा 
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