राष्ट्रीय किसान दिवस पर राणा थारु किसानों के लिए विशेष लेख

राष्ट्रीय किसान दिवस पर राणा थारु किसानों के लिए विशेष लेख

भूमिका
राष्ट्रीय किसान दिवस (23 दिसंबर) का महत्व भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में अनन्य है। यह दिन उन किसानों के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राणा थारु समुदाय की खेती-किसानी की परंपरा सदियों पुरानी है। इस लेख में राणा थारु किसानों की ऐतिहासिक खेती-पद्धतियों, वर्तमान चुनौतियों, सरकारी सुविधाओं और भविष्य की संभावनाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।


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1. राणा थारु किसानों की पारंपरिक खेती

100 वर्ष पहले का स्वरूप:

राणा थारु समुदाय प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित खेती करते थे।

मुख्य फसलें: धान, गेहूं, जौ, मक्का।

खेती का स्वरूप: जैविक खाद, पानी के प्राकृतिक स्रोतों और बैलों का उपयोग।


खेती में बदलाव:

हरित क्रांति के बाद उन्नत किस्म के बीज, रासायनिक उर्वरक, और आधुनिक यंत्रों का आगमन।

सिंचाई के साधनों का विस्तार।

उत्पादन में वृद्धि, लेकिन मृदा की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव।



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2. रासायनिक खेती के प्रभाव

सकारात्मक प्रभाव:

फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।

त्वरित परिणाम और बड़ी मात्रा में अनाज उत्पादन।


नकारात्मक प्रभाव:

मिट्टी की उर्वरता में कमी।

जल स्रोतों का प्रदूषण।

फसल उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव।



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3. जैविक खेती की ओर वापसी

जैविक खेती का महत्व:

मिट्टी की उर्वरता में सुधार।

फसल की गुणवत्ता बेहतर।

पर्यावरण-संरक्षण और टिकाऊ खेती।


राणा थारु किसानों की पहल:

गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट, और हरी खाद का उपयोग।

पारंपरिक बीजों की वापसी।

सामुदायिक खेती के माध्यम से लागत में कमी।




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4. सरकारी योजनाएं और सुविधाएं

केन्द्रीय और राज्य सरकार की योजनाएं:

1. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM-KISAN):

किसानों को वार्षिक ₹6,000 की वित्तीय सहायता।



2. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना:

फसल के नुकसान की भरपाई।



3. कृषि यंत्रीकरण योजना:

आधुनिक कृषि उपकरणों पर सब्सिडी।



4. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन:

जैविक खेती को बढ़ावा।




राज्य सरकार की योजनाएं:

उत्तराखंड में जैविक खेती मिशन।

थारू क्षेत्र के लिए विशेष सब्सिडी और प्रशिक्षण कार्यक्रम।



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5. निजी कंपनियों द्वारा शोषण

बीज और रसायनों की ऊंची कीमतें।

अनुबंध खेती में शोषण।

उत्पादों का कम मूल्य देकर किसानों को नुकसान पहुंचाना।


समाधान:

सहकारी समितियों का गठन।

स्थानीय बाजारों का विकास।

सरकार द्वारा मूल्य निर्धारण में हस्तक्षेप।



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6. राणा थारु किसानों के भविष्य के लिए विशेष सुझाव

1. जैविक खेती का पूर्ण विस्तार:

सामूहिक प्रयासों से जैविक उत्पादों का विपणन।



2. तकनीकी शिक्षा:

डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उन्नत खेती तकनीकों की जानकारी।



3. सहकारी संगठन:

किसानों के लिए किफायती संसाधन उपलब्ध कराना।



4. संवेदनशील खेती:

जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए फसलें उगाना।



5. सरकारी योजनाओं का अधिकतम लाभ:

योजनाओं के लिए जागरूकता अभियान।





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निष्कर्ष

राणा थारु किसान भाई सदियों से धरतीपुत्र के रूप में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जैविक खेती के माध्यम से न केवल वे पर्यावरण संरक्षण में योगदान देंगे, बल्कि अपनी पीढ़ियों के लिए स्वस्थ और उर्वर भूमि भी सुरक्षित रखेंगे। सरकारी योजनाओं और सहकारी प्रयासों से यह संभव है कि राणा थारु किसान अपनी परंपरागत खेती के साथ-साथ आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर आत्मनिर्भर बनें और नई ऊंचाइयों को छूएं।

जय जवान, जय किसान।


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