थारू समाज के विभेद


थारू समाज के विभेद 
✍️ नवीन सिंह 

थारू समाज एक प्राचीन और विविधतापूर्ण जनजातीय समाज है, जो नेपाल और भारत के तराई क्षेत्रों में निवास करता है। इसके विभिन्न उप-समूह कठरिया थारू, राणा थारू, पश्चिमा थारू, डंगोरिया थारू और नवलपुरिया थारू के रूप में जाने जाते हैं। ये सभी उप-समूह सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक आधार पर एक-दूसरे से कुछ भिन्न हैं, हालांकि इनकी मूल पहचान एक जैसी है। इन उप-समूहों के बीच अंतर मुख्य रूप से उनके भौगोलिक स्थान, सांस्कृतिक परंपराएं, सामाजिक संरचना और जीवन-यापन के तरीकों पर आधारित है। आइए इन उप-समूहों के बीच के मुख्य अंतरों पर एक विस्तृत दृष्टि डालें।

1. कठरिया थारू

कठरिया थारू उप-समूह विशेष रूप से अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के लिए जाना जाता है। कठरिया नाम उनके सामंती अतीत और कठोर शासन प्रणाली से जुड़ा है।

भौगोलिक स्थान: कठरिया थारू मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश (भारत) के बहराइच, लखीमपुर खीरी, बलरामपुर और नेपाल के मध्य और पश्चिमी तराई क्षेत्रों में बसे हुए हैं।

सामाजिक स्थिति: ऐतिहासिक रूप से, कठरिया थारू जमींदारी और राजनीतिक प्रभुत्व के लिए जाने जाते थे। ये एक समय में अपने क्षेत्र के प्रमुख शासक थे और इनके पास बड़े पैमाने पर कृषि योग्य भूमि थी।

संस्कृति और परंपराएं: कठरिया थारू अपने विशेष परंपरागत रीति-रिवाजों के लिए जाने जाते हैं। इनके पारंपरिक नृत्य, गीत और त्योहार अन्य थारू समूहों से भिन्न हो सकते हैं। शादी-विवाह में कठोर नियम होते हैं और इन्हें सामंती परंपराओं से जोड़कर देखा जाता है।

धार्मिक मान्यताएं: कठरिया थारू हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, लेकिन इनके अनुष्ठानों में पूर्वजों और प्रकृति की पूजा भी महत्वपूर्ण है।


2. राणा थारू

राणा थारू उप-समूह थारू समाज का एक प्रतिष्ठित और विशिष्ट वर्ग है, जो अपने ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका और अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है।

भौगोलिक स्थान: राणा थारू मुख्यतः उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों (खासकर खटीमा, सितारगंज , नानकमता) और नेपाल के सुदूर पश्चिमी हिस्सों  में बसे हुए हैं।

सामाजिक स्थिति: राणा थारू समाज ऐतिहासिक रूप से अपने वीरतापूर्ण और राजसी जीवनशैली के लिए जाना जाता है। इन्हें एक समय में शासक के रूप में सम्मानित किया जाता था और ये क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव रखते थे।

संस्कृति: राणा थारू समाज सांस्कृतिक रूप से संपन्न है, जिसमें इनकी पारंपरिक पोशाक, गीत-संगीत, और धार्मिक अनुष्ठान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी महिलाएं बहुत ही सुंदर पारंपरिक आभूषण पहनती हैं, और सामाजिक रूप से इनकी अपनी विशेष पहचान है।

धार्मिक मान्यताएं: राणा थारू मुख्य रूप से हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। लेकिन इनके धार्मिक अनुष्ठानों में प्राकृतिक तत्वों और पूर्वजों की पूजा का भी खास महत्व है।


3. पश्चिमा थारू

पश्चिमा थारू, जिसे पश्चिमी थारू भी कहा जाता है, थारू समाज का एक विशिष्ट उप-समूह है जो नेपाल के पश्चिमी भाग और भारत के उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में निवास करता है।

भौगोलिक स्थान: पश्चिमा थारू नेपाल के कैलाली और कंचनपुर जिलों और भारत के उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में रहते हैं।

सामाजिक स्थिति: ये मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर होते हैं और इनके पास अधिक भूमि नहीं होती। सामाजिक रूप से ये अन्य थारू समूहों से मिलते-जुलते हैं, लेकिन इनका जीवन-यापन का तरीका और सांस्कृतिक धरोहर विशेष होती है।

संस्कृति: पश्चिमा थारू का जीवन कृषि पर आधारित होता है और वे पारंपरिक खेती के तरीके अपनाते हैं। इनके त्योहार, गीत-संगीत और नृत्य विशिष्ट होते हैं। इनके विवाह और अन्य रस्मों में भी एक अलग सांस्कृतिक छाप होती है।

धार्मिक मान्यताएं: पश्चिमा थारू हिंदू धर्म का पालन करते हैं और प्रकृति, पूर्वजों और देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।


4. डंगोरिया थारू

डंगोरिया थारू समाज भी थारू समाज का एक महत्वपूर्ण उप-समूह है, जो अपने विशिष्ट जीवनशैली और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है।

भौगोलिक स्थान: डंगोरिया थारू मुख्य रूप से नेपाल के तराई क्षेत्रों और भारत के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में निवास करते हैं।

सामाजिक स्थिति: डंगोरिया थारू पारंपरिक रूप से किसान होते हैं और इनके समाज में सामुदायिक जीवन का बड़ा महत्व है। ये अपने पारंपरिक जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं, जहां कृषि और प्रकृति का महत्वपूर्ण स्थान है।

संस्कृति: डंगोरिया थारू के पारंपरिक नृत्य और गीत इनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। इनके परिधान और आभूषण अन्य थारू उप-समूहों से भिन्न होते हैं।

धार्मिक मान्यताएं: ये लोग प्रकृति पूजा, पूर्वज पूजा और हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं।


5. नवलपुरिया थारू

नवलपुरिया थारू नेपाल के नवलपुर क्षेत्र में रहने वाला एक उप-समूह है। इनका समाज परंपरागत जीवनशैली और सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है।

भौगोलिक स्थान: नवलपुरिया थारू मुख्य रूप से नेपाल के नवलपुर जिले और आसपास के तराई क्षेत्र में बसे हुए हैं।

सामाजिक स्थिति: ये लोग भी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर होते हैं और अपने स्थानीय समुदाय के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं। नवलपुरिया थारू अपने पारंपरिक जीवनशैली को बनाए रखते हैं।

संस्कृति: नवलपुरिया थारू का समाज अपने पारंपरिक पहनावे, खानपान और नृत्य-संगीत के लिए जाना जाता है। इनके त्यौहार और धार्मिक अनुष्ठान इनके सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

धार्मिक मान्यताएं: नवलपुरिया थारू भी हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और इनके धार्मिक कर्मकांडों में प्रकृति और पूर्वजों की पूजा भी शामिल है।


मुख्य अंतर

1. भौगोलिक अंतर: ये उप-समूह नेपाल और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं। कठरिया थारू उत्तर प्रदेश और नेपाल के मध्य और पश्चिमी तराई में, राणा थारू उत्तराखंड और नेपाल के सुदूर पश्चिमी भाग में, पश्चिमा थारू नेपाल के पश्चिमी जिलों में, डंगोरिया थारू उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में, और नवलपुरिया थारू नेपाल के नवलपुर जिले में निवास करते हैं।


2. सामाजिक स्थिति: कठरिया और राणा थारू ऐतिहासिक रूप से शासक वर्ग माने जाते थे, जबकि पश्चिमा, डंगोरिया और नवलपुरिया थारू कृषि पर आधारित होते हैं और इनके पास शासक होने की परंपरा नहीं रही है।


3. संस्कृति और परंपराएं: प्रत्येक उप-समूह की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएं हैं। कठरिया थारू अपने सामंती रीति-रिवाजों के लिए, राणा थारू अपनी राजसी परंपराओं के लिए, जबकि अन्य उप-समूहों की अपनी पारंपरिक गीत, नृत्य और धार्मिक अनुष्ठान हैं।


4. धार्मिक मान्यताएं: ये सभी उप-समूह हिंदू धर्म के अनुयायी हैं, लेकिन इनके धार्मिक अनुष्ठानों में प्रकृति पूजा और पूर्वजों की आराधना का महत्व भी है।



इन उप-समूहों के बीच समानताएं होते हुए भी, उनके भौगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नताएं इन्हें विशिष्ट पहचान देती हैं, जो समृद्ध थारू संस्कृति को विविधता और गहराई प्रदान करती हैं।


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