न्याय की पुकार

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न्याय की पुकार 
✍️ नवीन सिंह 

होते न यदि जय चंद देश में, 
तो देश न ऐसे लूटा जाता।
होते न यदि समाज लुटेरे, 
यह समाज अब तक संभल जाता।।

अपने होकर अपनो को लूटे,
कब तक लोग सहन कर पाते।
इनको लगते इतने जूते, 
खुद वो उनको न गिन पाते।।

मूंह लग गया, दूसरों की कमाई पर, 
कैसे वे बिन, इसके रह पाते। 
यह अच्छा काम नहीं है जग में,
लोग भला इनको कैसे समझाते।।

समझ न पाया मै इन दानव को,
 जो मानव के अन्दर करे निवास।
कर वे ईमानी अपने भरते खजाने, 
जिनके खातिर उड़ रहा परिहास।।

अब  न सभलेंगे ये दुष्ट, 
सत जन को कठोर कदम उठाना होगा। 
उदंडता रोकने को इनकी ,
इनके सीने में तीर चलाना होगा।।

जब तीर चले थे रामचंद्र जी के,
तब ही था रावन गया मारा। 
बन राम आज सभी को बेध तीर से,
मिटेगा पाप आज, तभी इस धरा से सारा।।

 सिर्फ दशहरा मनाने से, 
जग से न भ्रष्ट व्यवहार खत्म होगा। 
इनकी उदंडता मिटाने को, 
इनके सीने में तीर चलाना होगा।

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