हिंदी दिवस: भाषा का इतिहास, महत्व, और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ संबंध**
**हिंदी दिवस: भाषा का इतिहास, महत्व, और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ संबंध**
:नवीन सिंह राणा
हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, जो हमारी राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के महत्व और उसकी समृद्ध परंपरा को समर्पित है। 1949 में इसी दिन भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस दिवस का उद्देश्य हिंदी के प्रचार-प्रसार और इसके प्रति जागरूकता फैलाना है। हिंदी की समृद्ध परंपरा और उसका विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के साथ गहरा संबंध हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक है।
### हिंदी का इतिहास:
हिंदी का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, जिसका उद्भव संस्कृत भाषा से हुआ। प्राचीनकाल में हिंदी की जड़ें 'खड़ी बोली' में देखी जा सकती हैं, जो धीरे-धीरे विकसित होकर आधुनिक हिंदी के रूप में उभरी। 11वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान यह भाषा अपभ्रंश से निकलकर एक व्यवस्थित रूप लेने लगी। 'आदिकाल' में हिंदी साहित्य ने वीर गाथाओं और धार्मिक काव्यों के रूप में एक नई दिशा प्राप्त की, जबकि 'भक्तिकाल' और 'रीतिकाल' में हिंदी साहित्य में भक्तिपूर्ण और शृंगारिक काव्य परंपराओं का विकास हुआ। आधुनिक काल में हिंदी ने एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में एक मजबूत पहचान बनाई और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसे एक सशक्त माध्यम के रूप में अपनाया गया।
### हिंदी का महत्व:
हिंदी न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक महत्वपूर्ण भाषा है। यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और लगभग 60 करोड़ लोग हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। हिंदी का साहित्य, कविता, फिल्म, संगीत और पत्रकारिता में व्यापक योगदान है। यह भाषा भारत के विभिन्न राज्यों और समुदायों को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है, खासकर उस समय जब भारत भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का देश है।
### क्षेत्रीय भाषाओं के साथ हिंदी का संबंध:
भारत में लगभग 22 आधिकारिक भाषाएं और सैकड़ों क्षेत्रीय बोलियां बोली जाती हैं, जिनमें से थारू बोली, कुमाऊंनी और गढ़वाली भी प्रमुख हैं। हिंदी और इन क्षेत्रीय भाषाओं का आपस में गहरा संबंध है, जो एक-दूसरे से व्याकरण, शब्दावली और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से समृद्ध हुई हैं।
#### 1. **थारू बोली**:
थारू समुदाय, जो उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्रों में निवास करता है, की बोली भी हिंदी के निकट है। थारू बोली में हिंदी के शब्द और वाक्य रचनाओं का बड़ा प्रभाव है। इसके अलावा, हिंदी और थारू बोली के माध्यम से इस समुदाय के लोग मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं और अपनी पहचान को सशक्त बना रहे हैं।
#### 2. **कुमाऊंनी**:
कुमाऊंनी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बोली जाती है और यह हिंदी की ही एक उपभाषा मानी जाती है। दोनों भाषाओं के बीच व्याकरणिक और शब्दावली संबंधी समानताएं हैं। कुमाऊंनी में हिंदी की तरह ही कई शब्द प्रयोग होते हैं, जो इसे हिंदी से नजदीकी संबंधों में बांधते हैं। शिक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में भी कुमाऊंनी लोगों ने हिंदी को माध्यम बनाकर अपनी प्रगति सुनिश्चित की है।
#### 3. **गढ़वाली**:
गढ़वाली, उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की प्रमुख बोली है। गढ़वाली भी हिंदी की तरह ही संस्कृत से प्रभावित रही है, और इसमें हिंदी के कई शब्द वाक्य संरचनाएं पाई जाती हैं। गढ़वाली और हिंदी में साहित्य और लोककथाओं का एक लंबा इतिहास है, जो दोनों भाषाओं को एकजुट करता है।
### हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ सामंजस्य:
हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के बीच आपसी संवाद और सामंजस्य से न केवल भाषाई आदान-प्रदान होता है, बल्कि भारतीय संस्कृति की विविधता भी सशक्त होती है। हिंदी का विकास और उसकी स्वीकृति क्षेत्रीय भाषाओं के साथ समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा और संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिंदी इन क्षेत्रीय बोलियों के लिए एक सेतु का कार्य करती है, जिससे एकता और समानता की भावना उत्पन्न होती है।
### निष्कर्ष:
हिंदी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हमारी भाषाएं सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सांस्कृतिक विरासत और पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। हिंदी का इतिहास, उसका महत्व, और उसका क्षेत्रीय भाषाओं के साथ संबंध इस तथ्य को स्थापित करते हैं कि भाषाएं न केवल हमारे जीवन को समृद्ध करती हैं, बल्कि हमें एकता और विविधता में जीने की प्रेरणा भी देती हैं।