धरोहर की सीख: परंपराओं की ओर वापसी की अवश्यकता(समाज की ज्वलंत और वर्तमान परिपेक्ष्य में लिखी गई प्रेरणादायक कहानी )
*धरोहर की सीख: परंपराओं की ओर वापसी की अवश्यकता(समाज की ज्वलंत और वर्तमान परिपेक्ष्य में लिखी गई प्रेरणादायक कहानी )
Written and published by Naveen Singh Rana
राणा थारू समाज, सदियों से प्रकृति पूजक और अपने इष्ट देवों और देवियों के प्रति आस्था रखने वाला समाज, धीरे-धीरे अपने मूल से दूर होता जा रहा है, जिसके प्रतिकूल प्रभाव समाज के उन लोगों पर पड़ रहा है जो कड़ी मेहनत से आजीविका कमा पाते हैं और उसका एक बड़ा हिस्सा ऐसे कार्यों में व्यर्थ हो जाता है जिसका लाभ उन बाबाओं, प्रवचन करने वाले लोगों अथवा ऐसे लोगों के पास चला जाता है जो लोगों को गुमराह कर अपनी आजीविका चलाते हैं।यह कहानी एक ऐसे परिवार की है जिसने अपनी पुरानी मान्यताओं और पूजा पद्धतियों को छोड़कर नए संप्रदायों और बाबाओं की संगत में अपना जीवन बिताना शुरू कर दिया था। निरंतर बाबाओं की संगत और प्रवचन से कहीं न कहीं उनका कीमती समय तो बरबाद होता ही, साथ ही आजीविका कमाने हेतु समय भी कम होने लगा। वे इस तरह से उन प्रवचनों में रमने लगे कि अन्य पूजा अर्चना अथवा मान्यताएं उनको निम्न स्तर की महसूस होती, जिसका प्रभाव उनके समाजिक और आर्थिक जीवन पर भी पड़ने लगा।
रामसिंह राणा का परिवार थारू समाज के उन परिवारों में से एक था जो हमेशा अपने इष्ट देवों की अर्चना करते थे। उनका घर गांव के जंगल की सीमा से लगता हुआ बसा था, जहां हर सुबह सूर्य देवता का स्वागत और हर शाम चंद्रमा का पूजन होता था। रामसिंह और उनका परिवार पेड़ों, नदियों, और पर्वतों की पूजा करता और अपनी प्राकृतिक धरोहर की रक्षा करता। जिससे सुबह शाम अपने इष्ट पितृ देवों की आराधना कर मन में संतोष और शांति की प्राप्ति होती। और उनका जीवन ऐसे ही चल रहा था।
समय के साथ, दूसरे शहरों से गांव में बाहर से आए संतों और बाबाओं के प्रवचन सुनने का प्रचलन बढ़ने लगा। लोग इधर उधर होने वाले बाबाओं के प्रवचन सुनने जाने लगे, खूब भीड़ लगती जिसे देखकर रामसिंह का बेटा, अजय, और उनकी पत्नी इन प्रवचनों से प्रभावित होकर नए संप्रदायों को अपनाने की सोचने लगे। अजय और उसकी मां उसके रिश्तेदारों के साथ बाबाओं की संगत में जाने लगे और उनका परिवार प्रवचनों को सुनकर धीरे-धीरे अपने परिवार की पुरानी पूजा पद्धतियों से दूर होता गया। और जहां कहीं भी बाबा की संगत और प्रवचन होते, दूसरे लोगों के साथ दूर दूर संगत और प्रवचन सुनने जाने लगे। यह सिलसिला लगातार चल रहा था जिसका प्रभाव उनके जीवन में भी झलकने लगा। वे उन प्रवचनों को ही जीवन का सार समझने लगे, और उसी के अनुरूप अपने जीवन को ढालने का प्रयास करने लगे।
गांव के अन्य लोग भी धीरे-धीरे बाबाओं की संगत में जाने लगे। बड़े-बड़े आयोजन होने लगे, जिनमें अनगिनत लोग शामिल होते। इससे न केवल समय और पैसे की बर्बादी होने लगी, बल्कि कई दुघटनाएं भी घटित होने लगीं। कभी कहीं भगदड़ मच जाती तो कभी बस या अन्य घटनाएं घटती तो वे इसे ईश्वर का कार्य समझ कर भुला देते।
एक दिन, बाबा के प्रवचन में शामिल होने के लिए दूर दूर शहर व गांव गांव के कई लोग एकत्रित हुए। बाबा का प्रवचन चल रहा था स्थान से अधिक लोगों की संख्या थी वहां भीड़ के कारण अचानक भगदड़ मच गई और कई लोग घायल हो गए। और कई महिलाओं और बच्चों की मृत्यु हो गई,इस दुघटना ने रामसिंह के परिवार को झकझोर दिया, आंखो के सामने बिलखते लोग और जमीन पर पड़ी लाशें देखकर अजय को एहसास हुआ कि उसने अपने परिवार की पुरानी मान्यताओं और पूजा पद्धतियों को त्यागकर कितनी बड़ी गलती की है। और आज इस तरह से भटक गया है अपना अमूल्य जीवन जिसमे उसे कठिन मेहनत कर परिवार, समाज और देश के लिय कुछ करना चाहिए था वह प्रवचन और बाबाओं के झमेले में पड़ कर अपना जीवन बरबाद कर रहा है।
इस घटना के बाद, अजय ने अपने परिवार और गांव के लोगों को समझाया कि हमें अपनी पुरानी पूजा पद्धतियों और धरोहरों की ओर लौटना चाहिए। रामसिंह के परिवार ने फिर से अपने इष्ट देवों की अर्चना शुरू की और गांव के लोगों को भी प्रेरित किया। धीरे-धीरे, गांव ने अपनी पुरानी मान्यताओं को अपनाना शुरू किया और बाबाओं की संगत से दूर रहने का संकल्प लिया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अपनी धरोहरों और पुरानी मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए और नए-नए संप्रदायों और प्रवचनों के पीछे भागने से बचना चाहिए। अपनी परंपराओं और पूजा पद्धतियों का पालन करने से न केवल हमारी आस्था मजबूत होती है, बल्कि हम सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध होते हैं।
राणा संस्कृति मंजूषा की समाज हित में प्रस्तुति