सोच अलग और सफर एक : प्रेरणादायक कविता

"सोच अलग और सफर एक : प्रेरणादायक कविता 
Published by Naveen Singh Rana 

तुम्हारी सोच बड़ी है, और मेरी भी।  
पर तुम्हारे रास्ते में स्वार्थ की दीवार है,  
तुम जोड़ते हुए भी तोड़ देते हो,  
और मेरा नजरिया तो सिर्फ़ जोड़ने में ही है।  

मैं जोड़ता हूँ, तोड़ता नहीं,  
स्वार्थ की चिंगारी मेरे दिल में नहीं।  
तुम्हें किसी की परवाह नहीं, और मुझे भी,  
पर हमारी परवाहों में एक अलग कहानी है।

तुम दौड़कर आगे बढ़ना चाहते हो,  
तेज़ रफ़्तार से दुनिया को पीछे छोड़ते हो।  
मैं भी आगे बढ़ना चाहता हूँ,  
पर मेरे कदम धीरज से जुड़ते हैं।  

तुम्हारी होड़ है, दूसरों से आगे निकलने की,  
मेरी होड़ सिर्फ खुद से है,  
मैं नहीं चाहता किसी को पछाड़ना,  
मेरी चाहत है बस खुद को निखारना।

तुम्हारे लिए मंजिल सिर्फ जीत है,  
मेरे लिए सफर ही मेरी रीत है।  
तुम्हारी होड़ में चमक है, दौलत है,  
मेरी होड़ में सुकून है, मोहब्बत है।

तुम्हारे रास्ते अलग हैं, तेरे ख्वाब भी,  
मेरे सपने बस थोड़े अलग हैं।  
तुम्हें चाहिए वो मुकाम,  
जहाँ सब सिर झुकाएँ तुम्हारे नाम।

मुझे चाहिए वो पहचान,  
जहाँ दिलों में बस जाए मेरी आन।  
तुम्हारी जीत में है शोर,  
मेरी जीत में है बस चैन और गौर।

तुम्हारी सोच बड़ी है, और मेरी भी,  
हम दोनों की राहें अलग हैं।  
पर इतने से ही फर्क में,  
छिपी है हमारी कहानी का रंग।

बस यह सोच, जिसे मै अब 
तुझमें देखता हु निरंतर।
लगता है अब मै अकेला हुं 
और सब तेरी हां में हां हैं।

लेकिन मै अकेला ही सही 
लेकिन उस पेड़ की जड़ में, 
जिसे हमने मिलकर लगाया था 
मेरे ही विचार छिपे हैं।

कुछ निर्णय जो मैने लिय 
शायद वे सही होंगे कभी।
बस इसी आस के साथ 
इस पथ पर निरंतर चल रहा हुं।

भले ही जिधर भी जाय 
मंजिल तो जरूर मिलेगी।
भले ही पथ अलग हों,
पर लक्ष्य एक ही है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

*भावुक अपील –राणा थारू समाज के एक बच्चे की आंखों की रोशनी बचाइए* 🙏🖋️By Naveen Singh Rana #Rana Tharu #help #support #Rana Tharu yuva jagrti samiti #Rana Tharu parisad #

तराई की आत्मकथा और राणा थारू समाज

राणा थारु परिषद: एक गौरवशाली यात्रा