संघठन की सच्चाई एक कहानी
संगठन की सच्चाई
By Naveen Singh Rana
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव समाज में एक समाजसेवी संगठन का गठन हुआ जिसका मुख्य उद्देश्य गांव की उन्नति और भलाई करना था। इस संगठन के अध्यक्ष, मोहन, एक विनम्र और सज्जन व्यक्ति थे, जो सबके साथ प्रेम और सौहार्द से पेश आते थे। उनके नेतृत्व में संगठन ने कई सफल परियोजनाएं चलाईं और गांव के लोग खुशहाल जीवन जीने लगे।
एक दिन, मोहन ने अपने स्वास्थ्य कारणों से उच्च पद से इस्तीफा दे दिया। संगठन ने सर्वसम्मति से अमित को नया उच्च पद चुना। अमित पढ़े-लिखे और बुद्धिमान थे, लेकिन उनमें एक कमी थी—वे हमेशा अपने पद और शक्ति का दिखावा करते थे। और खुद को संघठन का कद्दावर पदाधिकारी समझता था।
अमित नेउच्च पद के बाद तुरंत ही अपने पद का रौब दिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने साथियों से कठोर व्यवहार करना शुरू कर दिया और अपने आदेशों को बिना किसी सलाह के लागू करना शुरू कर दिया। जहां पहले मीटिंग्स में सबकी राय ली जाती थी, अब वहां अमित के आदेश ही सबकुछ थे। और बात बात में अन्य सदस्यों को ठीक ढंग से काम न करने पर उनके पदों से हटाने की धमकियां दी जाने लगीं।
धीरे-धीरे संगठन के सदस्यों में असंतोष फैलने लगा। कोई भी सदस्य अपने विचार नहीं रख पाता था और सबका मनोबल गिरने लगा। जो कार्य पहले प्रेम और सहयोग से हो जाते थे, अब उनमें अड़चनें आने लगीं। गांव के लोग भी अब संगठन से दूरी बनाने लगे, और कई पदाधिकारी भी उनसे उनके कार्यों से सतुष्ट नही थे।उन्हें भी अमित का रुखा और अहंकारी व्यवहार पसंद नहीं था।
एक दिन, संगठन के कुछ वरिष्ठ सदस्य, जिनमें मोहन भी शामिल थे, ने अमित से बात करने का निर्णय लिया। उन्होंने अमित को बताया कि संगठन प्रेम और सहयोग पर आधारित होता है, न कि हेकड़ी और आदेशों पर। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि कैसे मोहन के नेतृत्व में संगठन ने सफलता पाई थी।
अमित को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने तुरंत ही अपनी व्यवहार में बदलाव लाने का निर्णय लिया। उसने सदस्यों से माफी मांगी और उनके विचारों को सुनना शुरू किया। धीरे-धीरे संगठन में फिर से प्रेम और सौहार्द का माहौल बन गया। सदस्यों ने एक बार फिर से अपने कार्यों में ऊर्जा और उत्साह से योगदान देना शुरू किया।
अमित ने सीखा कि सच्चा नेतृत्व केवल आदेश देने में नहीं, बल्कि अपने साथियों को प्रेरित करने और उनका सम्मान करने में होता है। संगठन ने फिर से सफलता की राह पकड़ी और गांव के लोग भी खुशहाल जीवन जीने लगे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संगठन में प्रेम और सहयोग से ही कार्य संभव हो पाते हैं, न कि हेकड़ी और अहंकार से।