मानसून की पहली बारिश: कविता Publised by Naveen Singh Rana
मानसून की पहली बारिश: कविता


Publised by Naveen Singh Rana
प्यासी धरती की पुकार सुन,
आया आषाढ का त्योहार।
बादल गहरे, काले-घने,
लेकर आए बारिश की झर झर धार।।1।।
पुष्प सुमनों ने भी ली अंगड़ाई,
कानन ने पाई नई जवानी।
हरियाली से भर गई दुनिया,
धुली धरा की बात पुरानी।।2।।
पहली बूँद गिरी जब ज़मीं पर,
मिट्टी की खुशबू से महकी फिज़ा।
झूमें बच्चे, नाचे बगिया, घर
दुनिया का हर कोना कोना सजा ।।3।।
नदी-नाले हुए अति सरसरे,
बगिया में अब आई नई महक।
कृषक के चेहरे पर मुस्कान,
फसलों में झलके जीवन की ललक।।4।।
पर्वत, जंगल, झील और झरने,
सब गाए बारिश का मधुर गीत।
प्रकृति का नर्तन, अद्भुत मेला,
आया जैसे कोई मधुर संगीत।।5।।
मानसून की पहली बारिश,
ले आई जीवन में नई उमंग।
सबके मन में बसी खुशी,
भर दिया जीवन में नया रंग।।6।।
नव उमंग अब छा गई हर दिशा,
"नवीन" जीवन का उल्लास भर।
धरती, अंबर, प्रकृति और प्राणी,
हर्षित हुए अपनी बांह फैलाकर।।7।।
आओ मिलकर करें स्वागत
नव आगंतुक को हो नतमस्तक।
प्रफुल्लित हो जीवन, न प्रलय हो,
हे मानसून ! बस ऐसी हो तेरी दस्तक।।8।।
:नवीन सिंह राणा द्वारा रचित
टिप्पणियाँ