कौन थे वीर शिरोमणि बप्पा रावल जिन्होंने सिसोदिया वंश की नीव रखी ?
### बप्पा रावल: ऐतिहासिक जीवनी
(ऐतिहासिक पुस्तकों पर आधारित जानकारी के अनुसार लिखित )
Published by Naveen Singh Rana
**बप्पा रावल**
भारतीय इतिहास में राजपूत योद्धा और सिसोदिया वंश के संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका वास्तविक नाम *कलभोज* था और वे मेवाड़ के आठवीं सदी के शासक थे। उनका जीवन वीरता, स्वतंत्रता, और धर्मनिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
प्रारंभिक जीवन
-: बप्पा रावल का जन्म 713 ईस्वी में मेवाड़ के गुहिलोत (गहलोत) वंश में हुआ था।
- गुहिलोत वंश के राजा नागादित्य के वंशज थे। बप्पा रावल के पिताजी का नाम नरपति रावल था।
सत्ता की प्राप्ति
- बप्पा रावल ने अपनी बहादुरी और कौशल से अपने राज्य को शत्रुओं से सुरक्षित किया। वे भील प्रमुखों के समर्थन से मेवाड़ की गद्दी पर बैठे।
- उन्होंने चित्तौड़ के मौर्य शासक मानमोरी को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार किया और इसे अपनी राजधानी बनाया।
शासनकाल
- रावल ने कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की, जिनमें मालवा, गुजरात, और कर्नाट शामिल थे।
- शासनकाल में मेवाड़ एक शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा और उन्होंने एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की।
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान
बप्पा रावल शैव धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण कराया और धार्मिक कार्यों में संलग्न रहे।
- : उनके शासनकाल में मंदिरों और अन्य स्थापत्य संरचनाओं का निर्माण हुआ, जिनमें से कई आज भी मेवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
व्यक्तिगत जीवन
- रावल ने अपने जीवन के अंत समय में राज-पाठ त्यागकर संन्यास ले लिया था और हरिद्वार चले गए थे।
- : उनके बाद उनके पुत्र खुमाण प्रथम ने शासन संभाला और बप्पा रावल की परंपराओं को आगे बढ़ाया।
मृत्यु और विरासत
- * बप्पा रावल की मृत्यु 753 ईस्वी में हुई मानी जाती है।
-*: बप्पा रावल की वीरता और शौर्य की कहानियाँ आज भी राजस्थान और मेवाड़ के लोकगीतों और लोककथाओं में जीवित हैं। उन्हें मेवाड़ का संस्थापक और महानायक माना जाता है।
बप्पा रावल का जीवन और शासनकाल मेवाड़ के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी वीरता, धार्मिकता, और नेतृत्व के गुणों ने मेवाड़ को एक सशक्त राज्य के रूप में स्थापित किया। भारतीय इतिहास में उनका स्थान एक महान योद्धा और सक्षम शासक के रूप में सदा अडिग रहेगा।महाराणा बप्पा रावल के जीवन से जुड़ी कई रोचक कहानियाँ हैं जो उनकी वीरता, धीरज, और धार्मिकता को दर्शाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कहानियाँ निम्नलिखित हैं:
1. **एकलिंगजी के दर्शन**:
एक बार, बप्पा रावल युवा अवस्था में अपनी माँ के साथ एक वन में गए थे। वहाँ उन्होंने एक गुफा में भगवान शिव (एकलिंगजी) के दर्शन किए। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं उन्हें दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे महान योद्धा और राजा बनेंगे। इस घटना के बाद, बप्पा ने भगवान एकलिंगजी की पूजा को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया।
2. **राज्याभिषेक की कहानी**:
जब बप्पा रावल ने चित्तौड़गढ़ को जीत लिया और राजा बने, तो उन्होंने अपने राज्याभिषेक के समय एक अनूठी घटना का आयोजन किया। उन्होंने सभी साधु-संतों को आमंत्रित किया और उनके चरण धोकर उनकी सेवा की। इस घटना ने उनकी विनम्रता और धर्मनिष्ठता को प्रकट किया, और उन्होंने अपनी प्रजा के दिलों में एक स्थायी स्थान बना लिया।
3. **नागमाता का आशीर्वाद**:
एक अन्य रोचक कहानी के अनुसार, बप्पा रावल को एक बार नागमाता (नागों की देवी) का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। एक दिन, जब वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, तब नागमाता ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे अपने शत्रुओं को पराजित करेंगे और एक महान राज्य की स्थापना करेंगे। इस आशीर्वाद से प्रोत्साहित होकर, बप्पा रावल ने कई युद्धों में विजय प्राप्त की।
4. **राजपूत संघ की स्थापना**:
बप्पा रावल ने राजपूत राजाओं को एकजुट करने का प्रयास किया। कहा जाता है कि उन्होंने एक महत्वपूर्ण सभा का आयोजन किया जिसमें विभिन्न राजपूत राजा शामिल हुए। इस सभा में, उन्होंने सबको एकजुट होकर विदेशी आक्रमणकारियों से मुकाबला करने का आह्वान किया। यह संघ उनके नेतृत्व में मजबूत हुआ और इसने कई विदेशी आक्रमणों को विफल किया।
5 **विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ विजय**:
कहा जाता है कि बप्पा रावल ने अरब आक्रमणकारियों के खिलाफ भी युद्ध लड़ा था। उन्होंने नागभट्ट प्रथम के साथ मिलकर अरब आक्रमणकारियों को हराया था, जिससे भारत के पश्चिमी क्षेत्रों की रक्षा की गई।
(ये कहानियाँ महाराणा बप्पा रावल के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं और उनकी महानता, वीरता, और धार्मिकता को स्पष्ट करती हैं।महाराणा बप्पा रावल के जीवन से जुड़ी कहानियाँ एकमात्र ऐतिहासिक सत्यता पर आधारित नही हैं। इन कहानियों का व्यापक रूप से इतिहासी प्रमाण उपलब्ध नहीं है, और कई घटनाएं व्यापक रूप से ऐतिहासिक रूप से एकाधिकृत नहीं हैं।
उनकी धार्मिकता, वीरता और राजनीतिक योग्यता की स्थापना वास्तविक है, लेकिन अधिकांश कहानियाँ ऐतिहासिक विश्वासयों और लोकप्रिय परंपराओं पर आधारित हैं। ऐतिहासिकता के संबंध में, इन कहानियों को विचारपूर्वक पढ़ना और समझना उचित होगा, और इन्हें शासकीय और सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में समझना चाहिए।)