बिजली की गर्जना और जीवन की संवेदना : संपादकीय राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति
बिजली की गर्जना और जीवन की संवेदना : संपादकीय
राणा संस्कृति मंजूषा की प्रस्तुति
Published by Naveen Singh Rana
प्राकृतिक आपदाओं की भयावहता और उनकी अप्रत्याशितता ने हमेशा मानव जाति को चौंकाया है। 24 जून को सैजना गांव में जो घटित हुआ, वह एक दर्दनाक त्रासदी थी जिसने न केवल एक परिवार को बल्कि पूरे समाज को हिला कर रख दिया। एक किसान परिवार के दो जवान बच्चे, 19 वर्षीय सुमित सिंह और 22 वर्षीय सुहावनी राणा, जब अपने खेत में रोपाई कर रहे थे, तब अचानक बिजली की चपेट में आ गए और उनकी ह्रदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई। यह घटना एक गहरा आघात थी, जिसने उन माता-पिता, भाई-बहनों और पूरे गांव को अपार दुःख में डुबो दिया।
एक और घटना में, 26 जून को मगर सड़ा गांव के निवासी सचिन राणा की भी बिजली गिरने से मृत्यु हो गई, जब वह अपने खेत में काम कर रहे थे। इस प्रकार की घटनाएँ हमें यह एहसास दिलाती हैं कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने हम कितने असहाय हैं, और हमें एहतियात बरतने की कितनी आवश्यकता है। सरकार ने पीड़ित परिवारों को आपदा राहत कोष से आर्थिक सहायता प्रदान की है, जो सराहनीय है, लेकिन यह उस अपार दुख को कम नहीं कर सकता जो इन परिवारों ने सहा है।
इस बरसात के मौसम में, हमें विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। जब आसमान में तेज गर्जना हो रही हो या बिजली चमक रही हो, तो हमें अपने घरों के अंदर रहना चाहिए और सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी चाहिए। जानकारी और उस पर अमल करना ही जीवन की सुरक्षा का आधार है।
इस त्रासदी ने हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है: हमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूक और सतर्क रहना चाहिए। यह हमारा कर्तव्य है कि हम न केवल अपनी सुरक्षा के लिए सावधानी बरतें, बल्कि अपने परिवार और समाज को भी सुरक्षित रखने के लिए प्रेरित करें। आइए, हम सभी मिलकर प्रण लें कि हम सचेत रहेंगे, सावधानी बरतेंगे और अपने प्रियजनों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
इन भावनाओं के साथ, हम उन परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है। उनके आंसुओं की कीमत कोई नहीं चुका सकता, लेकिन हम उनके दर्द को समझ सकते हैं और उनके साथ खड़े हो सकते हैं। इस प्रकार की घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि जीवन कितना मूल्यवान है, और हमें इसे सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।
संपादकीय
राणा संस्कृति मंजूषा
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