नया सूरज
**नया सूरज**
Published by Naveen Singh Rana
एक समय की बात है, एक हरा-भरा और सुंदर जंगल था, जिसमें एक विशाल बरगद का पेड़ खड़ा था। इस पेड़ पर अनेक पक्षी रहते थे और इसे अपना घर मानते थे। पक्षियों के इस परिवार में एक बुजुर्ग और बुद्धिमान हंस भी था, जिसे सभी आदरपूर्वक 'दादा' कहते थे। दादा हंस की दूरदर्शिता और अनुभव का सभी सम्मान करते थे।
एक दिन दादा हंस ने देखा कि पेड़ के तने के पास एक छोटी सी बेल उग रही है। उसने तुरंत सभी पक्षियों को बुलाया और कहा, "देखो, इस बेल को नष्ट कर दो। यह एक दिन हम सबके लिए खतरा बन सकती है।"
एक युवा हंस, जिसका नाम गोलू हंस था, हंसते हुए बोला, "दादा, यह छोटी सी बेल हमें कैसे नुकसान पहुंचा सकती है?"
दादा हंस ने समझाया, "आज यह छोटी है, लेकिन धीरे-धीरे यह पेड़ को लपेटते हुए ऊपर चढ़ जाएगी और फिर यह पेड़ पर सीढ़ी बना देगी। इससे कोई भी शिकारी आसानी से पेड़ पर चढ़ सकता है और हमें पकड़ सकता है।"
गोलू हंस ने दादा की बात ध्यान से सुनी और उसने तय किया कि इस समस्या का समाधान स्वयं करेगा। उसने सभी पक्षियों से सहयोग मांगा और मिलकर उस बेल को नष्ट कर दिया।
समय बीतता गया और जंगल में शांति बनी रही। पक्षियों ने उसकी नेतृत्व क्षमता को पहचाना और उसे 'नेता' मान लिया। दादा हंस ने उस को आशीर्वाद दिया और कहा, "तुमने मेरे अनुभव का सही उपयोग किया और जिम्मेदारी संभाली। अब तुम्हारे कंधों पर यह भार है कि तुम इस परिवार का ख्याल रखो।"
उस ने भी समझा कि नेतृत्व का मतलब सिर्फ पद पर बने रहना नहीं, बल्कि जिम्मेदारी उठाना है। वह हर दिन नए-नए सुझाव और विचारों के साथ पक्षियों की समस्याओं का समाधान करता और दादा हंस से मार्गदर्शन लेता रहता।
एक दिन, जंगल में एक नई समस्या आई। जंगल के बाहर के शिकारी पक्षियों को पकड़ने के लिए नए तरीके अपनाने लगे। उसने एक बार फिर सभी पक्षियों को इकट्ठा किया और उन्हें सुझाव दिया, "हमें अपने रहने के तरीके में बदलाव करना होगा। हमें मिलकर एक सुरक्षित और अधिक सुरक्षित घोंसला बनाना होगा।"
दादा हंस ने उस की योजना का समर्थन किया और सभी पक्षियों ने मिलकर नए घोंसलों का निर्माण किया, जो शिकारी से सुरक्षित थे। गोलू हंस की नेतृत्व क्षमता और सभी पक्षियों के सामूहिक प्रयास ने उन्हें एक नई दिशा और सुरक्षा दी।
इस घटना के बाद, गोलू हंस ने समझा कि नेतृत्व का मतलब केवल पद पर बने रहना नहीं, बल्कि जिम्मेदारी उठाना है। और दादा हंस ने सभी को सिखाया कि जब एक नेतृत्वकर्ता सही दिशा में काम करता है, तो उसकी जगह लेने वाला नया नेतृत्वकर्ता भी उतना ही प्रभावी हो सकता है।
समय बीतता गया और गोलू हंस ने भी अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों के साथ बांटना शुरू किया। उसने युवा पक्षियों को भी अवसर दिए और उन्हें जिम्मेदारियों का हिस्सा बनाया।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि किसी भी दल में हमेशा एक ही बड़ा नहीं बना रहना चाहिए। हर किसी को मौका मिलना चाहिए और नेतृत्व का मतलब केवल पद नहीं, बल्कि जिम्मेदारी उठाना होता है। और जब आप बड़े हो, तो अपने अनुभव और ज्ञान से दूसरों का मार्गदर्शन करना चाहिए, क्योंकि पद से बड़ी जिम्मेदारी होती है।