**"प्रकृति का सम्मान: जीवन का नया आयाम"**एक कविता
नवीन सिंह राणा द्वार वर्तमान परिपेक्ष्य के आधार पर लिखी कविता
सूरज की तपती किरणों ने,
धरती को इतना तपाया है,
आह निकल रही जीव जगत की,
मानव कितना घबराया है।1।
स्वार्थ की पकड़ पग डंडी,
विकास के तीर चलाए हैं,
धरती का दोहन कर बरबाद किया,
फिर भी न आज सरमाये हैं ।2।
हरे भरे जंगल काट दिए,
नदियों का बहाव भी है रोका,
प्रकृति का संतुलन बिगाड़ कर,
इंसान ने खुद को दिया है धोका।3।
पहाड़ों का सीना चीर दिया,
खदानों में सोना पाया है
पर इस दौलत के बदले में,
पर्यावरण रूपी धन गंवाया है ।4।
पानी की बूँदें सूख गईं,
हवा रही नही है सुरीली,
जीवनदायिनी धरती माता,
प्राण वायु हो गई जहरीली।5।
पक्षियों की चहचहाहट थम गई,
जानवरों क उजड़ा संसार न्यारा,
कहीं जंगलों में आग लगी,
, कहीं सूखा जन हुआ बेसहारा।6।
शहरों की बढ़ती भीड़ ने,
गांवों का छीन लिया चैन,
शुद्ध हवा की खोज में,
मानव खुद हुआ बेचैन।7।
अब भी समय है कुछ चेतो
धरती का मान बढ़ाओ,
प्रकृति को संवारो ऐसा,
जीवन को सुखमय बनाओ।8।
पेड़ लगाओ, जल बचाओ,
हरियाली फिर से लाओ,
प्रकृति की गोद में रहकर,
सच्चे सुख का आनंद पाओ।9।
धरती मां की सेवा में,
स्वार्थ को त्यागो रह साथ,
सिर्फ विकास नहीं,
संरक्षण भी है जीवन का एक पाथ।10।
तपती किरणों से बचने का,
यही है एक मात्र उपाय,
प्रकृति का सम्मान करो,
ताकि प्रकृति न मुरझाए।11।
नवीन युग में अब "नवीन"
नवीनता का प्रचार कर,
प्रकृति की हरियाली में रहकर,
प्रकृति संरक्षण का प्रसार कर।12।
:नवीन सिंह राणा
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